रुद्राक्ष का वैज्ञानिक/वैदिक महत्व

शास्त्रों व पौराणिक कथाओं के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। शिव का यही प्रिय रुद्राक्ष अब सारे विश्व के वैज्ञानिकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हो गया है और अब देश-विदेश में रूद्राक्ष पर शोध अनुसंधान कार्य प्रारम्भ हो चुका है।


    रुद्राक्ष को नीला संगमरमर भी कहा जाता है। इसके वृक्ष भारत (पूर्वी हिमालय व नीलगिरी) के साथ-साथ नेपाल,थाईलैंड, इंडोनेशिया, जकार्ता एवं जावा में भी पाए जाते हैं। वनस्पतिशास्त्र में इसे इलियोकार्पस गेनिट्रस कहते हैं। गोल, खुरदुरा, कठोर एवं लंबे समय तक खराब न होने वाला रुद्राक्ष एक बीज है। बीज पर धारियां पाई जाती हैं जिन्हें मुख कहा जाता है। पंचमुखी रुद्राक्ष बहुतायात पाए जाते हैं, जबकि एक व चौदह मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ हैं।


प्राचीन ग्रंथों में इसे चमत्कारिक तथा दिव्यशक्ति स्वरूप बताया गया है। मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष धारण करने से दिल की बीमारी, रक्तचाप एवं घबराहट आदि से मुक्ति मिलती है। रुद्राक्ष के बताए चमत्कारिक गुण वास्तविक हैं या नहीं यह जानने हेतु देश-विदेश मेंकई शोध कार्य किए गए एवं कई गुणों की पुष्टि भी हुई।


शिव पुराण के अनुसार शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को पहनने से ही भक्तों के सभी दुःख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाती हैं। रुद्राक्ष को चंद्रमा का कारक रत्न माना गया है। इसलिए एकाग्रता के लिए भी इसे पहना जाता है।


     आयुर्वेद के अनुसार रुद्राक्ष एक प्रकार का फल है। इसमें अनेक औषधीय गुण भी विद्यमान है। रुद्राक्ष को धारण करने से या इसे जल में कुछ घंटे रखकर उस पानी को ग्रहण करने से दिल से संबंधित बीमारियां दूर होती है व मानसिक रोगों के साथ ही नसों से जुड़े रोग भी समाप्त हो जाते हैं। साथ ही, स्मरणशक्ति में भी अपेक्षित अभिवृद्धि होती है।


रुद्राक्ष को विश्व भर में अलग-अलग विभिन्न नामों से जाना जाता है। इनमें से कुछ खास नाम हैं पावन शिवाक्ष, रुद्राक्ष, भूतनाशक, नीलकठाक्षा, हराक्ष, शिवप्रिय, तृणमेरु, अमर, पुष्पचामर, रुद्राक, रुद्राक्य, अक्कम, रुद्रचलू आदि।  


आयुर्वेद और पुराणों ने रुद्राक्ष को बहुत गुणकारी माना है। इसमें लोहा, जस्ता, निकल, मैंगनीज, एल्यूमिनियम, फास्फोरस, कैल्शियम, कोबाल्ट, पोटैशियम, सोडियम, सिलिका, गंधक आदि तत्व विद्यमान होते हैं। इस कारण ये लकड़ी का होने के बावजूद अपने भीतरी घनत्व के कारण पानी में डूब जाता है। रुद्राक्ष के दानों में गैसीय तत्व भी है। इसमें ताबा कोबाल्ट ताबा आयरन की मात्रा भी होती है। इसमें चुम्बकीय और विद्युत ऊर्जा से शरीर को रुद्राक्ष का अलग-अलग लाभ होता है।


     रुद्राक्ष को शुद्ध जल में तीन घंटे रखकर उसका पानी किसी अन्य पात्र में निकालकर, पहले निकाले गए पानी को पीने से बेचैनी, घबराहट, मिचली व आंखों का जलन शांत हो जाता है। दो बूंद रुद्राक्ष का जल दोनों कानों में डालने से सिरदर्द में आराम मिलता है। रुद्राक्ष का जल हृदय रोग के लिए भी लाभकारी है। चरणामृत की तरह प्रतिदिन दो घूंट इस जल को पीने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस प्रकार के अन्य बहुत से रोगों का उपचार आयुर्वेद में बताया गया है।


       सेंट्रल काउंसिल ऑफ आयुर्वेदिक रिसर्च नई दिल्ली में 1966 में आयुर्वेदिक औषधि में प्रकाशित किया गया जिसमें रुद्राक्ष थैरेपी की चर्चा की गई थी। अस्सी के दशक में बनारस के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने डॉ. एस. राय के नेतृत्व में रुद्राक्ष पर अध्ययन कर इसके विद्युत चुंबकीय, अर्धचुंबकीय तथा औषधीय गुणों को सही पाया।


    वैज्ञानिकों ने माना है कि इसकी औषधीय क्षमता विद्युत चुंबकीय प्रभाव से पैदा होती है। रुद्राक्ष के विद्युत चुंबकीय क्षेत्र एवं तेज गति की कंपन आवृत्ति स्पंदन से वैज्ञानिक भी आश्चर्य चकित हैं। इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी फ्लोरिडा के वैज्ञानिक डॉ. डेविड ली ने अनुसंधान कर बताया कि रुद्राक्ष विद्युत ऊर्जा के आवेश को संचित करता है जिससे इसमें चुंबकीय गुण विकसित होताहै। इसे डाय इलेक्ट्रिक प्रापर्टी कहा गया। इसकी प्रकृति इलेक्ट्रोमैग्नेटिक व पैरामैग्नेटिक है एवं इसकी डायनामिक पोलेरिटी विशेषता अद्भुत है। इस रुद्राक्ष से विभिन्न ग्रहों के कारक रत्नों के भी शुद्धता का परीक्षण किया जाता है ।


  भारतीय वैज्ञानिक डॉ. एस.के. भट्टाचार्य ने 1975 में रुद्राक्ष के फार्माकोलॉजिकल गुणों का अध्ययन कर बताया कि कीमोफार्माकोलॉजिकल विशेषताओं के कारण यह हृदयरोग, रक्तचाप एवं कोलेस्ट्रॉल स्तर नियंत्रण करने में प्रभावशाली माना जाता है। स्नायुतंत्र (नर्वस सिस्टम) पर भी यह अपेक्षित  प्रभाव डालता है एवं संभवत: न्यूरोट्रांसमीटर्स के प्रवाह को संतुलित करता है।


वैज्ञानिकों द्वारा इसका जैव-रासायनिक (बायो कैमिकल) विश्लेषण कर इसमें कोबाल्ट, जस्ता, निकल, लोहा, मैग्नीज़, फास्फोरस, एल्युमिनियम, कैल्शियम, सोडियम, पोटैशियम, सिलिका एवं गंधक तत्वों की उपस्थिति देखी गई। इन तत्वों की उपस्थिति से घनत्व बढ़ जाता है एवं इसी के फलस्वरूप पानीमें रखने पर यह डूब जाता है।


पानी में डूबने वाले रुद्राक्ष को असली माना जाता है, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि दो तांबों के सिक्कों के मध्यरखने पर यदि इसमें कंपन होता है, तो यह असली है। यथार्थ में इस कंपन का कारण विद्युत चुंबकीय गुण तथा डायनामिक पोलेरिटी हो सकता है। जैव वैज्ञानिकों ने रुद्राक्ष में जीवाणु (बैक्टीरिया), विषाणु (वायरस), फफूंद(फंगाई) प्रतिरोधी गुणों को पाया है। कुछ कैंसर प्रतिरोधी क्षमता का आकलन भी किया गया है।


चीन में हुए खोज कार्य दर्शाते हैं कि रुद्राक्ष यिन-यांग एनर्जी का संतुलन बनाए रखने में कारगर है। दुनियाभर के वैज्ञानिक रुद्राक्ष के इतने सारे गुणों को एक साथ देखकर आश्चर्यचकित हैं।


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