जानिए कैसा रहेगा "प्रमादी" नामक संवतसर ओर विक्रम संवतसर 2077 का फल भारत देश के लिए--पंडित दयानंद शास्त्री



हिंदू नव वर्ष नवसंवत्सर विक्रम संवत 2077 का आरंभ 25 मार्च 2020 (बुधवार) से होगा। 


उज्जैन के पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि नव संवत्सर में नवग्रहों के बीच मंत्रिमंडल में इस बार राजा बुध और मंत्री चंद्रमा रहेंगे। पूरे वर्ष बुद्धदेव का आधिपत्य रहेगा। बुद्ध कन्या राशि का स्वामी है। अंग्रेजी नववर्ष की शुरुआत कन्या लग्न में ही होगी। इस लग्न पर भी बुध का आधिपत्य है। यह राशि महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए पूरे वर्ष में महिलाओं का प्रभाव देखने को मिलेगा। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि बुध के राजा रहते धर्म और अध्यात्म के क्षेत्रों का विस्तार व लोगों का इसमें जुड़ाव बढ़ेगा। लेकिन राजनीतिक हालात संतोषजनक नहीं रहेंगे। रवि व सिद्धि योग भी इस दिन की शुभता में बढ़ोतरी करने वाले होंगे।इस संवत्सर का नाम प्रमादी है तथा वर्ष 2077 है, श्री शालीवाहन शकसंवत 1942  है और इस शक संवत का नाम शार्वरी है।
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जानिए नव संवत के राजा का चयन कैसे होता है--


किसी भी नए संवत्सर में राजा का चयन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के वार के अनुसार होता है, अर्थात इस दिन जो वार होता है उस वार के स्वामी को संवत का राजा माना जाता है.


2077 के सम्वत में ग्रहों को निम्न अधिकार प्राप्त होंगे जिनके अनुरुप यह पूरा वर्ष प्रभावित रहेगा।
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सम्वत राजा बुध--


इस सम्वत वर्ष के राजा बुध होंगे. बुध के प्रभाव से शुभ एवं मांगलिक कार्यों का आयोजन बना रहेगा पर इसके साथ ही इसमें दूसरों के कारण परेशानी भी उत्पन्न की जा सकती हैं. मानसिक रुप से उत्सुकता और उत्साह की स्थिति अधिक दिखाई देती है. बड़े बुजुर्गों के साथ विरोधाभास भी अधिक रह सकता है. मनोरंजन के क्षेत्र में लोगों का झुकाव अधिक रहने वाला है. धन धान्य और सुख सुविधाओं के प्रति भी अधिक इच्छाएं होंगी।


अप्रत्याशित घटनाओं से देश की छवि धूमिल संभावित। इस वर्ष झूँठ का बोलबाला रह सकता हैं। नामी गिरामी लोगों के कारनामे प्रकट होना सम्भावित।बनावटी,दिखावटी सन्तों एवम पंडितों के वर्चव्य बढ़ेगा।


नूतन संवत्सर के प्रवेश के समय कर्क लगना का उदय हो रहा है। वर्ष लग्न बलवान होने से यह वर्ष विशेष परिवर्तनकारी सिद्ध हो रहा है। इस योग से देश को नई कार्य योजनाओं का लाभ प्राप्त होगा। विश्व में भारत का गौरव बढ़ेगा। धन-धान्य की सुख सुविधाएं प्राप्त होंगी। शासन तंत्र मजबूत होगा जनता जनार्दन का मनोबल बढ़ेगा। अमन शांति का वातावरण बनेगा ।


लग्न में चंद्रमा की राशि तथा नवम भाव में चंद्रमा एवं सूर्य की युति होने से। अंतरिक्ष विज्ञान में अद्भुत सफलता को दर्शाता है। तकनीकी क्षेत्र में विशेष उन्नति होगी चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष उन्नति होगी ।


अष्टम भाव में बुध की शुभ दृष्टि होने से आर्थिक व्यवस्था मजबूत होगी और शेयर मार्केट में मंदी से तेजी का रुख रहेगा। तृतीय भाव में बुध की देव दृष्टि होने से औद्योगिक जगत कृषि जगत और व्यापार जगत में वृद्धि होगी द्वादश भाव में राहु की अवस्था खनिज तत्व और भूगर्भीय भंडार को प्राप्ति के योग भी बनता है। बाढ़ के कारण भारत के पूर्वी एवम उत्तरी क्षेत्र में जनधन की हानि के योग भी बनते हैं। यह योग अधिक वर्षा का कारक है शनि और मंगल ग्रहों की युति यान और रेल दुर्घटनाओं में वृद्धि को दर्शाता है। 


बुध और शुक्र ग्रहों की कृपा से कृषक वर्ग पूर्णतया सुखी अनुभव करेगा पैदावार अच्छी होगी। चंद्रमा मंगल एवं शनि ग्रहों के प्रभाव से विदेश नीति में कामयाबी हासिल होगी लेकिन राहु ग्रह के कारण कुछ अड़चनें भी पैदा हो सकती है ।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि भाग्य में स्थान चंद्रमा और सूर्य ग्रह होने से बड़े देशों से व्यापारिक संधियाँ और सहयोग प्राप्त होने की संभावना है। शुक्र ग्रह दशम भाव में होने से स्मार्ट सिटी के कार्य विशेष फलीभूत होंगें। सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटेंगें। संसद में विपक्ष का बोलबाला नहीं के बराबर होगा। सुख सुविधाओं का विस्तार होगा। भारत को आर्थिक स्थिति मजबूत बनेगी।


बुध का प्रभाव लोगों के मध्य चालाकी से काम करने की प्रवृत्ति को बढ़ाने वाला होगा. एक दूसरे के साथ झूठ और छल करने की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी. कला और संगीत के क्षेत्र में अधिक विकास होगा. व्यापारी वर्ग के लिए थोड़ा बेहतर समय होगा. साधु संतों का भी इस समय प्रभाव अधिक रहने वाला होगा. कानून विरोधी काम भी अधिक होंगे।
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नव संवतसर 2077 किसानों के लिए रहेगा शुभ --


पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार अगले साल 25 मार्च को विक्रम नवसंवत्सर 2077 का शुभारंभ बुधवार को होगा। बुध का संबंध पर्यावरण से भी है, जिस कारण पर्यावरण के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए प्रयासों में तेजी आएगी। पहले दिन कुंभ चंद्रमा होने से किसान परिवारों में धन-धन्य की आवक में बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा फसल का उत्पादन भी अच्छा होगा।
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25 मार्च 2020 को नव विक्रम संवत का आरंभ होगा. 2077 का नव संवत्सर प्रमादी नाम से पुकारा और जाना जाएगा. इस वर्ष संवत के राजा बुध होंगे और मंत्री चंद्रमा होंगे. प्रमादी नामक संवत के प्रभाव से कृषी के क्षेत्र में विकास देखने को मिल सकता है. अनाज का अच्छा उत्पादन होगा. रस से भरपूर पदार्थों के मूल्यों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. गुड़ और चीनी जैसे मीठे पदार्थ भी महंगे होने लगेंगे.
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आषाढ़ माह का समय कम वर्षा हो सकती है और भाद्रपद के महीने में अधिक बारिश होने की संभावना रहेगी. इस नव संवत में राज और मंत्र के मध्य मित्रता की कमी के कारण सरकार की ओर से कुछ कठोर कानून भी लाए जा सकते हैं. विरोधाभास की स्थिति बनी रहने वाली है. नियम एवं कानून में कठोरता और सख्ती के कारण क्रोध बढ़ सकता है.
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जरुरी सामान महंगा हो सकती है. कुछ कारणों से , राजनीतिक उथल पुथल भी देखने को मिल सकती है. जातगत हिंसा भी बढ़ सकती है. नव सम्वत्सर का स्थान इस वर्ष वैश्य के घर पर होने के कारण, व्यापारिक और आर्थिक क्षेत्र में तेजी देखने को मिलेगी. मौसम में बदलाव दिखाई देगा. दूध जैसे पेय पदार्थ महंगे हो सकते हैं. इस समय लोभ व स्वार्थ की स्थिति अधिक दिखाई देगी. व्यापारियों के लिए थोड़ा अधिक लाभ और बेहतर जीवन शैली दिखाई देगी.
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देश के दक्षिण प्रांत में अव्यवस्था दिखाई दे सकती है. शासन परिवर्तन और राजनैतिक उतार-चढा़व दिखाई देते हैं. कहीं-कहीं अनाज की कमी भी देखने को मिल सकती है. इस समय लड़ाई झगड़े और एक दूसरे के प्रति असंतोष भी लोगों में बहुत अधिक होगा.
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युवाओं को मिलेंगे रोजगार के अवसर --


पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि बुध का अधिपत्य रहने से विभिन्ना क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं के सम्मान व प्रभाव में बढ़ोतरी होगी। बुध को नवग्रहों में राजकुमार का दर्जा है। युवाओं को इस साल रोजगार के अवसर मिलना शुरू होंगे। शतिभषा नक्षत्र में नया साल 2020 की शुभ शुरू होने होने से पूरे वर्ष बुधवार के दिन कई अहम फैसले होते भी दिखाई दे सकते हैं।
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सम्वत मंत्री चंद्रमा--


चंद्रमा के मंत्री होने के कारण भौतिक सुख सुविधाओं का बोलबाला होगा. लोगों का ध्यान भी इस ओर अधिक रह सकता है. वर्षा अच्छी होने की उम्मिद भी की जा सकती है. दूध और सफेद वस्तुओं का उत्पादन भी अच्छा होगा. रस और अनाज में वृद्धि होगी. बाजार में मूल्यों में उतार-चढा़व जल्दी दिखाई देगा. कोई भी स्थिति लम्बे समय तक नहीं रह पाए. असंतोष और दुविधा आम व्यक्ति के मन में बहुत अधिक रहने वाली है।अपराधों में कमी आएगी। अनाज, दूध,घी,दाल,धातुओं में मन्दी बनी रह सकती हैं। इस सम्वत का मंत्री चन्द्रमा होने से कर्मचारी वर्ग,महिला वर्ग के साथ साथ बुद्दिजीवी वर्ग की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
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सस्येश (फसलों) का स्वामी गुरु--


इस समय सस्येश गुरु का प्रभाव होने से रस और दूध और फलों की वृद्धि अच्छी होगी। फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी होगी। इस समय वेद और धर्म के मार्ग पर जीवन जीने से लोगों का कल्याण होता है। इस वर्ष का सस्येश देवगुरु वृहस्पति है इसके फलस्वरूप व्यर्थ के विवाद शान्त होंगें। षड्यंत्रकारी ताकते कमजोर होगीं। रोगों से मुक्ति मिलेगी, कमी आएगी। शासन द्वारा जनहित में कानून व्यवस्था में आपेक्षित सुधार सम्भव होंगें।
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नीरसेश गुरु का प्रभाव--


नीरसेश अर्थात ठोस धातुओं का स्वामी. इनका स्वामी गुरु है. गुरु के प्रभाव से तांबा, सोना या अन्य पीले रंग की वस्तुओं के प्रति लोगों का झुकाव और अधिक बढ़ सकता है. इनकी मांग बढ़ सकती है।
कृषि के क्षेत्र में अच्छा रुख दिखाई दे सकता है. पशुओं से लाभ मिलने की उम्मीद भी दिखाई देती है. खेती से जुड़े व्यापारियों को भी लाभ मिलने की अच्छी उम्मिद दिखाई देती है।
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धान्येश मंगल का प्रभाव--


धान्येश अर्थात अनाज और धान्य जो हैं उनके स्वामी मंगल होंगे. मंगल के प्रभाव से गेहूं,ज्वर, बाजरा, गन्ना,तिल्ली, अलसी,मसूर, मूंगफली,चना, सरसों आदि के मूल्य में वृद्धि देखने को मिल सकती है. तेल जैसे पदार्थों में तेजी आएगी ये वस्तुएं महंगी हो सकती है।धार्मिक एवम शुभ उत्सव जैसे आयोजनों वृद्धि होगी।
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मेघश सूर्य का प्रभाव--


इस वर्ष का मेघेश सूर्य होने से वर्षा में कमी सम्भावित। मेघेश यानी के वर्षा का स्वामी. इस वर्ष सूर्य मेघेश होंगे. सूर्य के प्रभाव गेहूं, जौ, चने, बाजरा की पैदावार अच्छी होगी. दूध, गुड़ भी अच्छे होंगे, उत्पादन में वृद्धि होगी. सूर्य का प्रभाव कई स्थानों पर वर्षा में कमी ला सकता है. नदी और तालाब जल्द सूख भी सकते हैं। अकाल की सम्भवना बनती हैं। आम लोगों में क्रोध की अधिकता बढ़ेगी। वहीं दुर्घटनाओं में वृध्दि के साथ साथ प्राकृतिक आपदाओं की सम्भवना बनती हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार मसालों के बाजार भावों में वृद्धि सम्भावित। फलों, फूलों, सब्जियों और औषधियों  की उपज अच्छी होंगी।व्यापारी वर्ग तथा जनता सुख का अनुभव करेगी।
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फलेश सूर्य का प्रभाव--


फलेश अर्थात फलों का स्वामी. सूर्य के फलों का स्वामी होने के कारण इस समय वृक्षों पर फल बहुत अच्छी मात्रा में रहेंगे. फल और फूलों की अच्छी पैदावार भी होगी ओर उत्पादन भी बढ़ेगा. पर कुछ स्थान पर इसमें विरोधाभास भी दिखाई देगा जैसे की कही अच्छा होना और कहीं अचानक से कम हो जाना.
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रसेश शनि का प्रभाव--


रसेश अर्थात रसों का स्वामी, रस का स्वामी शनि होने के कारण भूमी का जलस्तर कम हो सकता है. वर्षा होने पर भी जल का संचय भूमि पर नहीं हो पाए।प्रशासन बलवान होगा। जनता जनार्दन जागरूक बनेगी।बेमौसमी और प्रतिकूल वर्षा के कारण अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं. कुछ ऎसे रोग भी बढ़ सकते हैं जो लम्बे चलें और आसानी से ठीक न हो पाएं। इस वर्ष का रसेश शनि होने से भौतिक सुख सुविधाओं का विस्तार होगा।
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धनेश बुध का प्रभाव--


धनेश अर्थात धन का स्वामी राज्य के कोश का स्वामी. बुध के धनेश होने के कारण वस्तुओं का संग्रह अच्छे से हो सकता है. व्यापार से भी लाभ मिलेगा और सरकारी खजाने में धन आएगा. धार्मिक कार्य कलापों से भी धन की अच्छी प्राप्ति होगी.चीनी,चावल,गुड़,गेहूं ,चना, मूंग,उड़द,सरसों, बाजरा एवम तिल्ली की फसल अच्छी होगी।
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दुर्गेश सूर्य का प्रभाव---


दुर्गेश अर्थात सेना का स्वामी. सूर्य के दुर्गेश होने से सैन्य कार्य अच्छे से हो सकेंगे. न्याय पालन करने में लोगों का असहयोग रहेगा. पर कई मामलों में कुछ लोग निड़र होकर कई प्रकार के खतरनाक हथियारों का निर्माण करने में भी लगे रह सकते हैं. सरकारी तंत्र से जुड़े लोग नियमों को अधिक न मानें और अपनी मन मर्जी ज्यादा कर सकते हैं।
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रोहिणी का निवास - 
इस "प्रमादी" नामक संवतसर में रोहिणी का निवास समुद्र तट पर होने से समय का वास, वैश्य के घर होने से मध्यम वर्षा के योग बनते हैं।बाजार भाव तेज। रहेंगें।अनाज की कमी सम्भावित।कृषक, जनता और पशु पक्षी वर्ग परेशान होंगें।राजनीतिक उथल पुथल रहेगी।इस वर्ष चतुरमेघों में "आवर्त" नामक मेघ हैं जिसके कारण वर्षा माध्यम होगी।खण्ड वृष्टि की सम्भवना। तेज हवा, ओलावर्ष्टि तथा कम वर्षा से फसलों को नुकसान सम्भव। जन धन की हानि के योग भी बनते हैं।समुद्र तटों पर तूफान एवम चक्रवात जैसी विभिशिकाएँ पैदा होने की सम्भवना बनती हैं।
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ज्योतिषी पण्डित दयानन्द शास्त्री जी का कहना है कि नवसंवत्सर में 9 ग्रहों के बीच बनने वाले मंत्रिमंडल में इस बार राजा बुध और मंत्री चंद्रमा रहेंगे। इस तरह पूरे वर्ष पर बुधदेव का अधिपत्य रहेगा। बुध कन्या राशि का स्वामी है। यह अजब संयोग है कि अंग्रेजी नववर्ष 1 जनवरी 2020 का कुल योग भी 6 है।


चंद्रमास अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 'वर्ष प्रतिपदा' कहलाती है। इस दिन से ही नया वर्ष अर्थात संवत्सर प्रारंभ होता है।
 
हिन्दी पंचांगनुसार वर्ष को संवत्सर कहा जाता है। जैसे प्रत्येक माह के नाम होते हैं उसी तरह प्रत्येक वर्ष के नाम अलग-अलग होते हैं। जैसे बारह माह होते हैं उसी तरह 60 संवत्सर होते हैं। संवत्सर अर्थात बारह महीने का कालविशेष। सूर्य सिद्धान्त अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। हालांकि इसे विस्तृत रूप से समझाने के लिए अलग से जानकारी दी जा रही हैं।
 
60 संवत्सरों में 20-20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं।विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवीं पूर्व से हुआ है। यानि अभी ग्रिगैरियन कैलेण्डर के हिसाब से 2019 चल रहा है तो यदि इसमें 57 वर्ष जोड़ देंगे तो वो विक्रम सम्वत कहलायेगा। जैसे हर महीने या दिन का नाम होता है उसी तरह हर संवत्सर का भी नाम होता है जो संख्या में कुल साठ हैं जो बीस-बीस की श्रेणी में बांटे गए हैं। प्रथम बीस संवत ब्रह्मविंशति संवत कहलाते हैं, 21 से 40 तक विष्णुविंशति संवत और अंतिम बीस संवतों के समूह का नाम रूद्रविंशति रखा गया है।
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संवत्सर का राजा (वर्षेश) नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का स्वामी भी मानते हैं। 2020 में हिन्दू नव वर्ष बुधवार से आरंभ हो रहा है, अतः नए सम्वत् का स्वामी बुध है। मंत्रिमंडल में इस बार राजा बुध और मंत्री चंद्रमा रहेंगे।
युवा वर्ग और महिला शक्ति के लिए यह वर्ष बहुत ही शुभ होगा।


ज्योतिष गणना के अनुसार 2020 के स्वामी बुध देव हैं। मंत्रिमंडल के राजा बुध और मंत्री चंद्रमा रहेंगे। बुध कन्या राशि के स्वामी हैं। अंग्रेजी न्यू इयर का शुभ आरंभ कन्या लग्न में हुआ है। साल 2020 महिलाओं के लिए बहुत शुभ फलदाई रहने वाला है।


वर्ष 2020 से पहले 2014 में बुधवार से नए वर्ष का शुभारंभ हुआ था। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार इस वर्ष 2020 में अंग्रेजी और हिंदू नववर्ष गजब का संयोग लेकर आया है।


नए साल 2020 का आगाज रवि और सिद्धि योग में हुआ है, जिससे साल 2020 मंगलमय रहने वाला है।


साल 2020 में बुध के राजा बनने से पूरे साल धर्म और अध्यात्म का जोर रहेगा। बुध का संबंध तरक्की और वैभव से होता है।
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह वर्ष 12 नहीं बल्कि 13 महीनों का होगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इस साल अश्विन का अधिक मास रहेगा, जो 17 सितंबर 2020 से 16 अक्टूबर 2020 तक रहेगा। 


इस अवधि में अश्विन मास होने से श्राद्ध और नवरात्रि के बीच 1 महीने का अंतर रहेगा।इस बार 25 मार्च, बुधवार से हिंदू नववर्ष 2077 की शुरूआत होगी।
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जानिए क्यों शुभ होता हो अधिक मास--
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं की जिस वर्ष अधिक मास होता है वो साल देश और जनता के लिए शुभ फल वाला होता है। अधिक यानी पुरुषोत्तम मास होने से धर्म और कर्म और अर्थ यानी आर्थिक मामलों में तरक्की होती है। हिंदू कैलेंडर और पंचांग गणना के अनुसार 3 साल में एक बार आधिक मास होता है। इस माह के प्रभाव से देश में शांति होती है एवं देश प्रगति करता है। देश की जनता ईमानदारी से धर्म और अपने कर्तव्यों का पालन करती है।
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क्यों आता है अधिक मास?


सौरमास 365 दिन का होता है जबकि चंद्रमास 354 दिन का होता है। इससे हर साल 11 दिन का अंतर आता है, जो तीन साल में बढ़कर एक माह से कुछ अधिक हो जाता है। यह 32 माह 16 दिन के अंतराल से हर तीसरे साल में होता है। इस अंतर को सही करने के लिए अधिमास की व्यवस्था की गई है।
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समझें अधिक मास की पौराणिक मान्यता को---
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस अधिमास का कोई स्वामी न होने से देवताओं ने इसे अशुद्ध माना और इसमें कोई भी मांगलिक कार्य कैसे करें, इस संशय में पड़ गए। तब वे भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने कहा कि आज से मैं इस अधिमास को अपना नाम देता हूं। उन्होंने इसे पुरुषोत्तम मास कहा। तब से इस माह में भागवत कथा व अन्य मांगलिक कार्यों का शुभारंभ हुआ।
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भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्रचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है।


जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिध्दांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है।


नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।


इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। और तो और, देश के बडे से बडे राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुध्द रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है।


भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है।
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कालगणना की हमारी पद्धति ज्यादा जीवंत और सूक्ष्म है। उसे समझें, तो आनंद आएगा।


जिसे संवत्सर कहा गया है वह मोटे तौर पर ऋतुओं के एक पूरे चक्र का लेखाजोखा है। सामान्य धारणा है कि ऋतुएँ सूर्य और पृथ्वी की स्थिति और अंतर्संबंधों के कारण आती-जाती है। पिछली शताब्दी तक विज्ञान भी यही प्रतिपादित करता था। भारत की मनीषा के निष्कर्ष अलग और सूक्ष्म हैं। कुछ वर्षों से ज्योतिर्विज्ञान भी इन निष्कर्षों के करीब पहुँच रहा है। उनके अनुसार ऋतुओं का निर्धारण सूर्य और पृथ्वी के अंतर्संबंध ही नहीं चंद्रमा, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र और शनि के अलावा आकाश में स्थित तारों के सत्ताईस समूह(नक्षत्र) भी होते हैं।


वर्षों की गणना करते हुए संवत्सर का उपयोग दो हजार साल से ज्यादा पुराना नहीं है। प्राचीनतम उल्लेख विक्रम संवत्‌ का ही मिलता है। इस संवत्‌ का प्रवर्तन सम्राट विक्रमादित्य द्वारा किए जाने की मान्यता पर संदेह है। इतिहास की दृष्टि में तो इस नाम के किसी सम्राट या राजा का कभी अस्तित्व ही नहीं था।


पुराण, साहित्य और लोकस्मृति ने इस तरह के संदेह को महत्व नहीं दिया है। इन स्रोतों और संदर्भों के अनुसार मर्यादा, चरित्र, शौर्य पराक्रम, नीति और न्यायनिष्ठा में विक्रमादित्य का स्थान राम के बाद निश्चित होता है। लोकस्मृति में महानायक की तरह जीवंत रहने वाले विक्रमादित्य ने ईसा से 57 वर्ष पूर्व इस संवत्‌ की स्थापना की। इतिहास की दृष्टि में विक्रम संवत चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375-413 ईस्वी) नाम के राजा ने शुरू किया था। उससे पहले यह संवत्‌ मालव और कृतसंवत के नाम से भी प्रचलित था।


शालिवाहन या शक संवत का उल्लेख भी ज्योतिष ग्रंथों में मिलता है। विक्रमीय संवत से यह 165 वर्ष बाद या ईस्वी सन 78 में आरंभ हुआ। कश्मीर में सप्तर्षि संवत का उल्लेख मिलता है। इस संवत का उपयोग करते समय शताब्दियों का उल्लेख नहीं किया जाता। संवत और भी हैं।


वर्धमान, बुद्ध निर्वाण, गुप्त, चेदि, हर्ष, बंग, कोल्लम आदि करीब तीस तरह के संवतों का उल्लेख आता है। इनमें कई नाम के लिए है। प्रचलित और लोकप्रिय संवतों में विक्रमीय और शालिवाहन ही मुख्य हैं। शालिवाहन या शक संवत का उल्लेख विक्रमीय संवत के साथ ही आता है। स्वतंत्र रूप से इसे ज्योतिष के कुछ ग्रंथों में गणना के लिए किया गया है।
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भारतीय कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। माना जाता है कि दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। मान्यता तो यह भी है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारतीयों द्वारा ही कैलेंडर यानि कि पंचाग का विकास हुआ। इसना ही 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है। कहा जाता है कि भारत से नकल कर युनानियों ने इसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया।
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सप्तर्षि संवत है सबसे प्राचीन
माना जाता है कि विक्रमी संवत से भी पहले लगभग सड़सठ सौ ई.पू. हिंदूओं का प्राचीन सप्तर्षि संवत अस्तित्व में आ चुका था। हालांकि इसकी विधिवत शुरूआत लगभग इक्कतीस सौ ई. पू. मानी जाती है। इसके अलावा इसी दौर में भगवान श्री कृष्ण के जन्म से कृष्ण कैलेंडर की शुरुआत भी बतायी जाती है। तत्पश्चात कलियुगी संवत की शुरुआत भी हुई।
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विक्रमी संवत या नव संवत्सर
विक्रम संवत को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच तरह का होता है जिसमें सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास आते हैं। विक्रम संवत में यह सब शामिल रहते हैं। हालांकि विक्रमी संवत के उद्भव को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं लेकिन अधितर 57 ईसवीं पूर्व ही इसकी शुरुआत मानते हैं।


सौर वर्ष के महीने 12 राशियों के नाम पर हैं इसका आरंभ मेष राशि में सूर्य की संक्राति से होता है। यह 365 दिनों का होता है। वहीं चंद्र वर्ष के मास चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ आदि हैं इन महीनों का नाम नक्षत्रों के आधार पर रखा गया है। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है इसी कारण जो बढ़े हुए दस दिन होते हैं वे चंद्रमास ही माने जाते हैं लेकिन दिन बढ़ने के कारण इन्हें अधिमास कहा जाता है। नक्षत्रों की संख्या 27 है इस प्रकार एक नक्षत्र मास भी 27 दिन का ही माना जाता है। वहीं सावन वर्ष की अवधि लगभग 360 दिन की होती है। इसमें हर महीना 30 दिन का होता है।
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समझें हिंदू नव वर्ष का महत्व--
भले ही आज अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन उससे भारतीय कलैंडर की महता कम नहीं हुई है। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा तो आंध्र प्रदेश में उगादी पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र की शुरुआत भी होती है। एक अहम बात और कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। अत: कुल मिलाकर कह सकते हैं कि हिंदू नव वर्ष हमें धूमधाम से मनाना चाहिये।
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आइये इस दिन की महानता के प्रसंगों को देखते हैं :-


ऐतिहासिक महत्व के कारण---


वर्षों पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। प्रभु श्री राम, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य व धर्म राज युधिष्ठिर का राज्यभिषेक राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।* शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है।* प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन का श्री राम महोत्सव मनाने का प्रथम दिन।* आर्य समाज स्थापना दिवस, सिख परंपरा के द्वितीय गुरू अंगददेव जी, संत झूलेलाल व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा0 केशव राव बलीराम हैडगेवार का जन्मदिवस।
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प्राकृतिक महत्व---
वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।* फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।* ज्योतिष शास्त्र के अनुसर इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये शुभ मुहूर्त होता है।


क्या आपको एक जनवरी के साथ जुड़ा हुआ ऐसा एक भी प्रसंग ध्यान है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ?
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आइये! 
विदेशी को फैंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।


भारत देश में समस्त त्योहार विशेष महत्व रखते हैं , हर त्योहार के पीछे गहरा संदेश रहता है , हम जानते हैं कि हमारे सभी अच्छे कार्य भारतीय दर्शन पर आधारित होते हैं जिसका प्राकृतिक सामंजस्य भी होता है , हमारे देश में शुभ घड़ी देखने की परम्परा है हम यह भी जानते हैं वो शुभ घड़ी भारतीय पंचांग से ही निकाली जाती है ! आज तक के इतिहास में ऐसा कभी भी सुनने को नहीं मिला है कि शुभ घड़ी देखने के लिए अग्रेजी कैलेंडर का प्रयोग किया गया हों, वास्तविकता यह है कि अंग्रेजी महीना घड़ी मुहूर्त के मिलान के अनुसार नहीं चलते! वह कैसे चलते है इस बात पर गज़ब का विरोधाभास है !


भारत में हर दिन त्योहार का दिन होता है लेकिन यह सारे त्योहार भारतीय पंचांग पर आधारित होते हैं ! यह सारा खेल गृह नक्षत्रों पर मिलान के आधार पर होता है , भारत के सारे त्योहार का प्रकृति साथ देती है ! जो त्योहार प्राकृतिक तालमेल के साथ मनाये जाते हैं उनके साथ परिणाम बेहतर होते है !


एक जनवरी वाले नव वर्ष में ऐसा कोई भी प्राकृतिक संदेश नहीं होता जिससे समाज को खुशी का अहसास होता हों , वातावरण में कड़ाके की ठंड रंगीन मौसम का परिचायक नहीं है इसके विपरीत हमारे भारत के नव वर्ष पर बसंत का सुहावना मौसम होता है !


किसानों के चेहरे पर उल्लास होता है गृह नक्षत्र अनुकूल हों जाते हैं ! सबसे बड़ी बात तो यह है कि जनवरी वाले नव वर्ष पर समाज किस प्रकार की कार्यशैली अपनाता है कहीं शराब के दौर चलते हैं तो कहीं युवा वर्ग पूरी मस्ती के साथ झूमते हैं , क्या यही भारत है क्या यह भारत की संस्कृति है ! हम नव वर्ष मनाते समय अपने देश की परिपाटी का भी ध्यान रखें तो अच्छा है!


हम भारतवासी आज भी अंग्रेजों द्वारा प्रवाहित की गयी धारा में जीवन यापन कर रहे हैं . क्या हमारे देश में सांस्कृतिक धारा का अभाव है वास्तव में हमारी सांस्कृतिक विरासत विश्व की महान विरासत है पूरे विश्व में हमारी संस्कृति का कोइ मुकाबला नहीं .....
लेकिन हम अन्धानुकरण की आंधी में ऐसे दौड़ रहे हैं कि हम अपना वजूद ही भूल रहे हैं ......


मेरा कहना यह है कि जनवरी में 1 तारीख को मनाया जाने वाला नव वर्ष भारत का नव वर्ष नहीं है.......
यह अंग्रेजों द्वारा थोपा गया नया साल है,
आज भी हम मानसिक रूप से उसी विचार के साथ जी रहे हैं जो विचार गुलामी में दिया गया था ... हालाँकि यह बात सही है कि लम्बे समय तक एक धारा में जीने का मतलब है उसी को अंगीकार करना , लेकिन आज हमारे ऊपर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम आज भी उसी नव वर्ष को मनाने को बाध्य हो रहे हैं जो गुलामी का प्रतीक है........ 
हमारे देश के सारे त्यौहार हम भारतीय काल पद्धति से मनाते आ रहे हैं आज भी मनाते हैं .....


भारत का कोइ भी पर्व अंग्रेजी महीने से नहीं होता... क्योंकि प्रकृति इसका साथ नहीं देती ....... 
हम प्रकृति का साथ देंगे तो प्रकृति भी हमारा साथ देगी. हमारे सारे त्यौहार धार्मिक मान्यतायों पर आधारित हैं., यानी एक धार्मिक त्यौहार है लेकिन क्या हम बता सकते हैं कि एक जनवरी को किस आधार पर हम नव वर्ष मनाएं जबकि भारतीय नव वर्ष जो चैत्र में शुरू होता है उस पर गृह नक्षत्र साथ देते हैं ...
इसलिए मेरा आग्रह है कि हम अपना भारतीय नव वर्ष मनाएं।


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