कब और कैसे करें चैत्र नवरात्रि के लिए घट स्थापना !

जानिए की कब और कैसे करें चैत्र नवरात्रि 2020 के लिए घट स्‍थापना..?


चैत्र नवरात्रि के लिए घट स्थापना 25 मार्च को होगी। इसके लिए शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 19 मिनट से लेकर 07 बजकर 17 मिनट तक है। हिंदी पंचांग के मुताबित भारतीय नववर्ष की शुरू भी चैत्र प्रतिपदा से होती है। इसके अलावा चैत्र महीने में ही नवसंवत्सर की भी शुरुआत होती है। वहीं रामनवमी 02 अप्रैल को मनाई जाएगी।प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 24 मार्च मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 57 मिनट से शुरू हो जायेगा। घटस्थापना का मुहूर्त, 25 मार्च को सुबह 6 बजकर 19 मिनट से 7 बजकर 17 मिनट तक है। मीन लग्न सुबह 6 बजकर 19 मिनट से 7 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
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भारतीय शास्त्रानुसार  नवरात्रि पूजन तथा कलश स्थापना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्योदय  के पश्चात 10 घड़ी तक अथवा अभिजीत मुहूर्त में करना चाहिए। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र  आरम्भ हो जाता है। यदि प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र हो तथा वैधृति योग हो तो वह दिन दूषित होता है। इस बार 25 मार्च 2020 को न ही चित्रा नक्षत्र हो और न ही वैधृति योग है। इस दिन रेवती नक्षत्र और ब्रह्म योग बन रहा है।


शास्त्रानुसार यदि प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग बन रही हो तो उसका परवाह न करते हुए “अभिजीत मुहूर्त” में घट स्थापना तथा नवरात्र पूजन कर लेना चाहिए।
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निर्णयसिन्धु के अनुसार —


सम्पूर्णप्रतिपद्येव चित्रायुक्तायदा भवेत। 
वैधृत्यावापियुक्तास्यात्तदामध्यदिनेरावौ।।
अभिजितमुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते।


अर्थात अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना कर लेना चाहिए। 
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 भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना शुभ होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या,धनु तथा कुम्भ राशि द्विस्वभाव राशि है अतः इसी लग्न में पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। 25 मार्च प्रतिपदा के दिन रेवती नक्षत्र  और ब्रह्म योग होने के कारण सूर्योदय के बाद तथा अभिजीत मुहूर्त में  घट/कलश स्थापना  करना चाहिए।
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चैत्र नवरात्र घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त दिनांक 25 मार्च 2020 को सुबह 06:10 मिनट से सुबह 10:20 मिनट तक रहेगा इसकी कुल अवधि 4 घंटे 9 मिनट की है। प्रथम(प्रतिपदा) नवरात्र हेतु पंचांग विचार


दिनांक 25-03-2020
दिन बुधवार
तिथि प्रतिपदा
नक्षत्र- रेवती
योग ब्रह्मा
करण भव बालव
पक्ष शुक्ल
मास चैत्र
लग्न मिथुन (द्विस्वभाव)
लग्न समय 10:49 से 13:15
मुहूर्त अभिजीत
मुहूर्त समय 11:58 से 12:49 तक
राहु काल 12:27 से 13:59 तक
विक्रम संवत 2077
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इस वर्ष अभिजीत मुहूर्त (11:58 से 12:49)  जो ज्योतिष शास्त्र में स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया परन्तु मिथुन लग्न  में पड़ रहा है अतः इस लग्न में पूजा तथा कलश स्थापना शुभ होगा अतः घट स्थापना 10:49 से 13:15 तक कर ले तो शुभ होगा।


 पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार घट स्‍थापना के स्‍थान को शुद्ध जल से साफ करके गंगाजल का छिड़काव करें। फिर अष्टदल बनाएं। उसके ऊपर एक लकड़ी का पाटा रखें और उस पर लाल रंग का वस्‍त्र बिछाएं। लाल वस्‍त्र के ऊपर अंकित चित्र की तरह पांच स्‍थान पर थोड़े-थोड़े चावल रखें। 


जिन पर क्रमशः गणेशजी, मातृका, लोकपाल, नवग्रह तथा वरुण देव को स्‍थान दें। सर्वप्रथम थोड़े चावल रखकर श्रीगणेजी का स्मरण करते हुए स्‍थान ग्रहण करने का आग्रह करें।


इसके बाद मातृका, लोकपाल, नवग्रह और वरुण देव को स्‍थापित करें और स्‍थान लेने का आह्वान करें। फिर गंगाजल से सभी को स्नान कराएं। स्नान के बाद तीन बार कलावा लपेटकर प्रत्येक देव को वस्‍त्र के रूप में अर्पित करें। अब हाथ जोड़कर देवों का आह्वान करें। 


देवों को स्‍थान देने के बाद अब आप अपने कलश के अनुसार जौ मिली मिट्टी बिछाएं। 


कलश में जल भरें। अब कलश में थोड़ा और जल-गंगाजल डालते हुए 'ॐ वरुणाय नमः' मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें।इसके बाद आम की टहनी (पल्लव) डालें। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। 


फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्‍चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर रोली से ॐ या स्वास्तिक लिखें। 


मां भगवती का ध्यान करते हुए अब आप मां भगवती की तस्वीर या मूर्ति को स्‍थान दें। एक नंबर पर थोड़े से चावल डालें। दुर्गा मां की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अब यदि सामान्य द्वीप अर्पित करना चाहते हैं, तो दीपक प्रज्‍ज्वलित करें।


 पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार यदि आप अखंड दीप अर्पित करना चाहते हैं, तो सूर्य देव का ध्यान करते हुए उन्हें अखंड ज्योति का गवाह रहने का निवेदन करते हुए जोत को प्रज्‍ज्वलित करें। यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। इसके बाद पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा/रही हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके इष्ट कार्य को सिद्ध करो।
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पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है। आपके पास जो भी यथा संभव सामग्री हो, उसी से आराधना करें। संभव हो तो श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं।


इस वर्ष गुड़ी पडवां के दिन सर्वार्थसिद्ध योग भी बन रहा है | जो अति लाभ दायक है | अगर किसी व्यक्ति माता राणी के नवरात्री में कलशा स्थापना में देरी हो जाती है तो उसका कोई दुष प्रभाव नहीं पड़ता है |
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2020 में घटस्थापना कब है ??
25 मार्च, 2020 (बुधवार) को घटस्थापना मुहूर्त ---
घटस्थापना मुहूर्त : 06:18:53 से 07:17:07 तक
अवधि : 0 घंटे 58 मिनट
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ऐसे करें दुर्गा सप्तशती का पाठ--- 
 पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार यदि आप दुर्गा सप्तशती पाठ करते हैं, तो संकल्प लेकर पाठ आरंभ करें। सिर्फ कवच आदि का पाठ कर व्रत रखना चाहते हैं, तो माता के नौ रूपों का ध्यान करके कवच और स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद आरती करें। दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ एक दिन में नहीं करना चाहते हैं, तो दुर्गा सप्तशती में दिए श्रीदुर्गा सप्तश्लोकी का 11 बार पाठ करके अंतिम दिन 108 आहुति देकर नवरात्र में श्री नवचंडी जपकर माता का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।


माता दुर्गा के प्रथम रूप “शैलपुत्री” की उपासना के साथ नवरात्रि आरम्भ हो जाती है। शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण, माता दुर्गा के इस रूप का नाम शैलपुत्री पड़ा है। पार्वती और हेमवती भी इन्हीं के अन्य नाम हैं। माता के दाएँ हाथ में त्रिशूल तथा बाएँ हाथ में कमल पुष्प है। माता का वाहन वृषभ है। माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना निम्नलिखित मंत्रोच्चारण के साथ करनी चाहिए-


वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
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नवरात्रि 2020 हेतु पूजन सामग्री --


माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, कलश/ घाट, लाल वस्त्र , नारियल फल, पञ्चपल्लव आम का,अक्षत, मौली, रोली, पुष्प, पूजा हेतु थाली , धुप और अगरबती, गंगाजल, कुमकुम, गुलाल पान, दीप, सुपारी, नैवेद्य, कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती का किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घृत किसी भी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।


 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन 


अर्थात केवल कर्म करते रहे, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। फिर भी प्रयोजनम् अनुदिश्य मन्दो अपि न प्रवर्तते सिद्धांतानुसार विना कारण मुर्ख भी कोई कार्य नहीं करता है तो भक्त कारण शून्य कैसे हो सकता है। माता सर्व्यापिनी तथा सब कुछ जानने वाली है इस ऐसी मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है तथा भक्त कभी रोगी नहीं होता अर्थात निरोगी हो जाता है। इस कारण आपको पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास के साथ माता शैलपुत्री स्वरूप की पूजा अर्चना करनी चाहिए।


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