भारतीय कृषि में प्रौद्योगिकी का महत्व - कैलाश चौधरी, केन्द्रीय कृषि  राज्यमंत्री,

भारतीय कृषि में प्रौद्योगिकी का महत्व - कैलाश चौधरी, केन्द्रीय कृषि  राज्यमंत्री, 



भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है और उसी प्रकार भारतीय कृषि भी उतनी ही प्राचीन है। प्राचीन भारतीय किसान बहुत अमीर थे क्योंकि उस वक्त कृषि अपने आप में सबसे उन्नत 


एवं सम्मानित व्यवसाय था। आज भी आबादी का पच्चास प्रतिशत हिस्सा कृषि एवं संबंधित व्यवसायों पर ही निर्भर है। विदेशी आक्रमणकारियों एवं शासकों के कारण भारतीय परंपरायें, रीति-रिवाज, धार्मिक प्रथायें और इनके साथ साथ कृषि भी प्रतिकूल तरीके से प्रभावित हुई और हमारी उन्नत कृषि अन्य देशों की तुलना में पिछड़ गयी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पिछली सदी में हमारा देश हमारे किसानों और कृषि क्षेत्र से संबंद्ध कार्यशक्ति के कारण खाद्यान्न, कपास, चीनी, दूध, मांस और पॉल्ट्री उत्पादों के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। आज भारत अनाज, दूध, चीनी, फल-सब्जियां, मसालों, अंडे आदि का प्रमुख उत्पादक बन गया है। चावल, मांस और समुद्री उत्पादों का कुल निर्यात में 52 प्रतिशत हिस्सा है। यद्यपि भारत के पास दुनिया की भूमि का सिर्फ 


2.4 प्रतिशत हिस्सा ही है लेकिन हमारे पास दुनिया में अनुपातिक रूप से अधिक कृषि योग्य भूमि है जो देशवासियों की खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है। साथ ही हम अपने निर्यात के माध्यम से दुनिया 


भर में खाद्य उत्पादों की आपूर्ति भी कर सकते हैं। 



किसान हितैषी मोदी सरकार ने 2022 तक निर्यात मूल्य को दोगुना करने के लिये नई निर्यात नीति का शुभारंभ किया है। सरकार यूएसडी के निर्यात मूल्य को तीस बिलियन से बढाकर 60 बिलियन अमेरीकी डॉलर 


करने की योजना बना रही है। कृषि से संबंधित मुद्दों का ध्यान रखने के लिये एक व्यापक कृषि नीति का आगाज किया गया है और इसी के तहत कई भारतीय दूतावासों में एग्री सेल बनाये गये हैं। सरकार ने कृषि संबंधित 


उत्पादों की माल ढुलाई एवं कोरियर सेवाओं के क्षेत्र में नवाचारों के माध्यम से इनका विकास करने का निश्चय किया है। वर्तमान सरकार के प्रयासों के कारण कृषि और कृषित्तर उत्पादों का निर्यात बढकर 2.73 लाख करोड़ 


हो गया है। आज भारत के पास दुनिया को खाद्य आपूर्ति करने की क्षमता है। भारत का अनुकूल जलवायु क्षेत्र, विशाल कृषि योग्य भूमि, हमारे मेहनती कृषक आदि ऐसे कारक हैं जो निश्चित ही हमारे कृषि निर्यात को बढावा 


देंगे। भारतीय किसानों को अन्य देशों के किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा हेतु बेहतर रूप से तैयार करने के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों के सहयोग से नई और उन्नत तकनीकों को अपनाने के अवसर प्रदान किये जा रहें हैं और इस क्षेत्र में और भी अधिक विकास की आवश्यकता है। अधिक उत्पादन करने वाली विभिन्न किस्मों के विकास के लिये अनुसंधान को प्राथमिकता देना समय की आवश्यकता है। हमारा औसत राष्ट्रीय उत्पाद 


अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम है और इसे बढाने के लिये हमें निश्चित ही प्रौद्योगिकी का सहारा लेना पड़ेगा। दुनिया की उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग कर उत्पादन के मामले में दुनिया के साथ कदमताल मिलाने के लिये हमारे किसान भाइयों को उन्नत तकनीकी कौशलों का प्रयोग करना आवश्यक है। निजी निवेशकों को भी निर्यातोन्मुखी गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। आधारभूत ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण 


कार्य करने होंगे। गोदाम, शीत भंडारगृह, मार्केट यार्ड आदि जैसे ढांचागत विकास कार्यों से खाद्य पदार्थां की क्षति में कमी जा सकेगी। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढावा देकर हम मूल्य संवर्धित सेवाओं को प्रोत्साहन 


दे सकते हैं। हमारे उत्पादों की गुणवत्ता बढाकर हम अन्य देशों को हमारे खाद्य पदार्थ आयात करने के लिये आकर्षित कर सकते हैं। इस प्रकार के विभिन्न उपायों से ‘ब्रांड इंडिया’ को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी। निर्यात बाधाओं में चुनौतियों का सामना करने के लिये राज्य और केन्द्र के समवेत प्रयासों की आवश्यकता है। केन्द्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में नये वित्तीय पैकेज की भी व्यवस्था की गई है ताकि किसानों को हरसंभव मदद 


मिल सके और उनकी आय दूगुनी करने का सरकार का लक्ष्य पूर्ण हो सके। 



किसानों को अधिक लाभ देने के लिये सरकार कृषि व्यवसाय को बढावा दे रही है। अमेजन, अलीबाबा, ई-बे, वालमार्ट जैसी ई-कॉमर्स ऐजेंसियों ने आर्टीफिसियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग के माध्यम से व्यापार की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं। ई-कॉमर्स की इस क्रांति की तरह ही ई-कृषि/डिजीटल एग्रीकल्चर का एक प्लेटफॉर्म तैयार किया जा रहा है जिससे कृषि व्यवसाय योजना प्रमुख शहरी एवं कस्बाई क्षेत्रों में भी पहुंच जायेगी। बिग बास्केट एवं ग्रोफर्स जैसी होम डिलीवरी ऐजेंसियों ने कृषि विशेषज्ञों की मदद से अपने स्वयं के लाभदायक कृषि व्यवसाय विकसित करने की राह प्रशस्त की है। ग्रीन फार्म हाउस, पॉलीहाउस, विशेष सब्जियां उगाने के लिये छोटे जैविक फार्म आदि जैसे कृषि नवाचार गुणवत्ता एवं उचित मूल्य के कारण किसानों के लिये लाभदायक बन रहें हैं। जैविक खेती आजकल महिला कृषकों में भी लोकप्रिय हो रही है। आज कृषि व्यवसाय योजना को कृषक एक व्यवसायी के तौर पर एक स्टार्ट-अप के रूप में आरंभ कर सकता है और स्थायी आय के स्रोत के रूप में इनका विकास कर अपने उत्पादों को खुल बाजार में बेच सकता है। औषधीय पौधों जैसे कि ऐलोवेरा, नीम, तुलसी आदि का चिकित्सकीय एवं फार्माक्यूटिकल क्षेत्रों के लिये बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। सरकार की तरफ से वो हरसंभव प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे किसानों को उपने उत्पाद उनकी इच्छानुसार बेचने की आजादी और सुविधा मिल सके। भारत सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार और ग्रामीण विकास के लिये बेहतर मार्ग बनाने के लिये नवाचारों और उन्नत वैज्ञानिक कृषि तकनीकों को बढावा दे रही है जिससे समावेशी विकास हो सके। कुछ महत्वपूर्ण उन्नत कृषि तकनीकें जो भारतीय कृषि का कायापलट कर सकती हैं वे इस प्रकार हैं-


1. जैव प्रौद्योगिकी- यह ऐसी तकनीक है जो किसानों को उन्नत कृषि पद्धतियों का उपयोग कर कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन में सहयोग करती है। यह पर्यावरण के अनुकूल तकनीक भी है और इससे पौधों एवं पशु अपशिष्ट का उपयोग कर खाद्य उत्पादन को बढावा देने में सहयोग मिलता है। 


2. नैनो विज्ञान- यह एक ऐसी तकनीक है जो स्मार्ट डिलीवरी सिस्टम और नैनो सेंसर के माध्यम से किसानों को इस बात की जानकारी देती है कि पानी और आवश्यक तत्व पौधों को पर्याप्त रूप से मिल रहे हैं या नहीं। साथ ही यह उत्पादित भोजन की गुणवत्ता की जानकारी भी देती है।


3. भू-स्थानिक खेती की सहायता से बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन को बढाया जा सकता है। खरपतवार, मिट्टी की गुणवत्ता एवं नमी, बीज की उत्पादन दर, उर्वरक आवश्यकताओं एवं अन्य कारकों के आधार पर उच्च उत्पादन किया जा सकता है।


4. बिग डेटा- बिग डाटा से स्मार्ट कृषि होगी और किसानों को समय पर सही निर्णय लेने में सहायता प्राप्त होगी। इससे पूर्वानुमान में मदद मिलेगी जिससे कृषि विकास मजबूत होगा।


5. ड्रोन्स- ये निगरानी कार्य के माध्यम से कम लागत एवं कम नुकसान का काम कर उत्पादन बढाने में सहायता करते हैं। उन्नत सेंसर, डिजिटल इमेजिंग की क्षमता, मिट्टी का विश्लेषण, फसल स्प्रेंइंग, फसल निगरानी, फंगस संक्रमण सहित फसलों के स्वास्थ्य का विश्लेषण ड्रोन तकनीक के माध्यम से संभव है। कृषि और अन्य कार्यां के लिये आवश्यक अनुमति केन्द्र सरकार से अभी मिलनी बाकी है। 


 


अभी हाल ही में राजस्थान में हुए टिड्डी हमलों जैसी आपदाओं में भी ड्रोन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दुनियाभर में व्याप्त कोरोना महामारी के संकट को हम एक अवसर के रूप में प्रयुक्त कर सकते हैं क्योंकि इस महामारी के कारण पूरे विश्व में खाद्य पदार्थां की कमी को लेकर चिंता है। इसी चिंता की वजह से मांग और आपूर्ति में भारी अंतर आने लगा है क्योंकि लोग खाद्य पदार्थों का भंडारण करने लग गये हैं। ऐसी स्थिति को हम भारतीय एक अवसर के रूप में काम में लेकर इस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे हमारे किसानों की आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो। यह उपाय हमें स्वतः ही सन 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने का अवसर प्रदान करेंगे और भारत को कृषि क्षेत्र में भी एक अहम स्थान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। आज का जमाना विज्ञान एवं तकनीक का जमाना है। हमें भी समय के साथ चलते हुए तकनीकों का इस्तेमाल कर हमारी कृषि का इस तरह विकास करना चाहिये ताकि प्रौद्योगिकी हमारी मददगार बन सके और प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम समावेशी कृषि विकास का वांछित लक्ष्य प्राप्त कर सके।


 


(लेखक भारत सरकार में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री है।)


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