बदलते परिवेश में बदलता बचपना

बदलते परिवेश में बदलता बचपना



   (लेखिका दीप्ति डागें मुम्बई)                                            आज,परिवार का मतलब माता पिता और एक या 2 बच्चे यानी एकल परिवार है।संयुक्त परिवार जो कभी भारती य सामाजिक व्यवस्था की नींव हुआ करते थे।जिसमे दादी दादा घर के मुखिया होते थे।


जो पूरे परिवार की देखभाल करते थे।


चाचा चाची, ताई ताऊ, बुआ, 7-8 चचेरे ममेरे भाई बहन जो एक छत के नीचे रहते थे।एक साथ खेलते, खाते एक दूसरे के सुख दुख के साथी होते थे।पर अब धीरे धीरे संयुक्त परिवार एक इतिहास बनते जा रहे है। और संयुक्त परिवार एकल परिवार बनते जा रहे है।इसका कारण पाश्चात्य संस्कार, बदलती जीवन शैली और महत्वकांशा है।


जरूरते बढ़ती जा रही, परिवार छोटा होते जा रहे है । अभिवावक सिर्फ नोट छापने की मशीन बन चुके है जहां पहले बच्चे प्यारमें पलते थे।आज पैसों से पल रहे है।माता पिता के पास बच्चों के लिए घड़ी दो घड़ी बैठने का समय भी नही। एक ही घर में एक ही छत के नीचे रहते हुए पराये कि तरह रह रहे है। जहां पहले बच्चो के लिए परिवार मतलब प्यार, डांट, खुशिया, हँसना, खेलना, बातें करना, साथ भोजन करना, सुख दुख बाँटना आज सिर्फ मोबाइल, TV, लैपटॉप, पैसा ही रह गया है। जिसके कारण बच्चो में न तो धीरज रह गया है और न ही माता-पिता से लगाव। इसका सबसे बड़ा कारण है माता-पिता का बच्चों के प्रति जिम्मेदारियों को बखूबी से न निभा पाना। 


विडंबना ये है कि, आज के अभिभावक खुद को एक अच्छे माता पिता साबित करने के चलते, अपने बच्चो को हर वो चीज मुहैया करवाते है जो उन्हें खुद के समय हासिल नहीं हुई थी।बच्चों को बिना मांगे सबकुछ देना ही अभिभावक अपना दायित्व की इति श्री समझ लेते है। ऐसा करने से बच्चे के अंदर से भावनाएं खत्म होने लगती हैं व वह भी मशीनी जीवन जीने लगता है। परिवार से रिश्ता सिर्फ जरूरत का ही रह जाता है। और वो भावनात्मक रिश्ता दोस्तो से जोड़ने लगते है।


कहावत है "जैसा खाए अन्न वैसा होए मन" पहले जहां पूरा परिवार एक साथ बैठ घर के बने भारतीय व्यजनों का स्वाद लेता था आज उसकी जगह फ़ास्ट फ़ूड या जंक फ़ूड ने ले ली है। बच्चों के भोजन चाकलेट, चाऊमीन, तमाम तरह के चिप्स, स्नैक्स, बर्गर, ब्रेड आदि हो गए है या बाहर से खाना मंगाए जाने का चलन आ गया।जिससे पौष्टिक आहार जैसे फ़ल हरी सब्जी ,साग दूध, दालें से बच्चे दूर होते जा रहे है। साथ मे माँ के हाथ का स्वाद, प्यार भी खत्म होता जा रहा है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि बच्चे कम उम्र में ही मोटापे, रक्तचाप, आखों की कमजोरी,मधुमेह और उदर से संबंधित कई रोगों का शिकार बनते जा रहे हैं। 


पहले नैतिकता, व्यवहार कुशलता स्वाभाविक रूप से बच्चो मे आ जाती थी क्योंकि रिश्तेदारों का आपस मे मिलना जुलना लगा रहता था। परिवार बड़े होते थे जिसमें छोटो से प्यार, बड़ो का सम्मान, परिवार का सुख दुख,परिवार को लेकर एक दायित्व और अपनापन अपने आप विकसित हो जाता था। एकसाथ बैठ कर भोजन करना, साथ खडे हो पूजा प्रार्थना करना,पर्व त्योहार मिल कर मनाना जो अब दुर्लभ हो गयी है।आज इन सब की जगह TV, कंप्यूटर और मोबाइल ने ली है। रिश्ते निभाना एक दायित्व या औपचारिकता बन गया है। घर में रहते है तो हर कोई मोबाइल से चिपका रहता है। अब तो आलम ये है 1 साल का बच्चा भी मोबाइल से चिपक गया है क्योंकि अभिभावक रोते बच्चों को चुप कराने के लिए, खाना खिलाने के लिए जहा तक बच्चे को सुलाने तक के लिए बच्चो को मोबाइल दे देते है।ताकि वो अपने दायित्व से मुक्त हो सके। जहां पहले बच्चे बाहर जाकर खेलते थे दोस्तो के साथ बैठते थे।वो अब मोबाइल पर खेलते है। जिससे बच्चे न केवल मानसिक रूप से कमजोर होते है बल्कि वो धीरे धीरे असली जिंदगी से दूर होकर वर्चुअल लाइफ मे जीने लगें है। कई बार ऐसी जिंदगी बच्चो के भविष्य के लिए घातक हो जाती है। 


एक चीनी कहावत है—जितनी सावधानी से छोटी मछली के व्यजंन पकाए जाते हैं, उतनी ही नजाकत से संभालना पड़ता है एक परिवार को।


ईश्वर ने मनुष्य को एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है माता पिता बना कर।जो बच्चे को न सिर्फ जन्म देते बल्कि उनके सम्पूर्ण जीवन को दिशा देते है।इसलिए हर इंसान को अपना यह कर्तव्य पूरी सतर्कता से निभाना चाहिए।


जितनी जरूरत पैसे कमाने की है, उतनी ही जरूरत बच्चों को अपनेपन का अहसास देने की है इसके लिए माता पिता को बच्चे के जन्म से ही ध्यान देना होगा।बच्चा सबसे पहले अपने अभिभवकों से सीखता है ।इसलिए बच्चे को "क्वालिटी टाइम’ न देकर ‘बच्चों को पूरा वक्त' देना चाहिए। वो समय पूरा परिवार एक साथ बैठ कर खाना खाएं, टीवी देखें या कुछ पढ़ें खेले


उन्हें हर बात के लिए रोके नही,उनकी उम्र की हर जरूरत को सुने और समझे, अभिभावक बच्चो को प्यार तो करते है लेकिन समय -समय पर उनको इस प्यार का अहसास कराए।बच्चो के अंदर यह विश्वास बनाये कि किसी भी परिस्थिति में आप उनके साथ हो। बच्चो को रिश्तों की महत्ता,परिवार की पंरपरा और संस्कारो की के बारे मे बच्चो को बताये।बच्चो को ग्रैंड पेरेंट्स के साथ ज्यादा समय बिताने का मौका दे। ये छोटी छोटी बाते से बच्चो की सोच को सकारात्मक बनायेगी ओर उनके अच्छे भविष्य के निर्माण मे सहायक होगी।


(चंद्रकांत सी पुजारी)                                                                     रिपोर्टर


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