अराजकता के माहौल में बेटियों को “निर्भया” बनने से रोकना होगा

अराजकता के माहौल में बेटियों को “निर्भया” बनने से रोकना होगा



जयपुर। आजाद भारत के कई दशक गुजर गए है, लेकिन आजादी सही मायने में ना हमने महसूस की है और ना ही हम उसके हकदार बने है। शायद परतंत्रता की बेड़ियों से हमनें यही सीखा कि आजादी और खुलापन हमारे संस्कारों और विचारों से परे है। इसी का नतीजा है कि एक तरफ हम भारतीय वायुसेना में पहली महिला फ्लाइट कमांडर शालीजा धामी को देखकर गौरवांवित महसूस करते है वहीं दूसरी तरफ दूर-दराज के किसी गांव में नाबालिग बच्ची की शादी की खबर पढ़ कर मन अशांति से भर जाता है। इस विभेदीकरण और अंतरबोध के शायद हम आदि हो चुके है, तभी तो आजादी के 70 सालों में हमने बस परिवर्तन करने की महज शुरूआत ही की। शायद हमने बेटी को एक जाति समझ लिया है। सरकार के प्रयासों में लोगों की सहभागिता होने से इस अंतर को पाटा जा सकता है।


बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ अभियान के जरिए एक बड़े स्तर पर लोगों की मानसिकता और समाज में बेटियों को लेकर उनकी सोच को बदलने का प्रयास किया गया है। हालांकि सरकार के प्रयासों में जनसहभागिता होने से हम बेटियों का खोया हुआ हक उन्हें वापस दिला सकते है। अन्तर्राष्ट्रीय गर्ल चाइल्ड डे पर हम सिर्फ उन्हीं बेटियों की बात करते है, जिन्होंने समाज, देश और दुनिया में एक बेहतर मुकाम हासिल किया है, लेकिन जरूरत है उन बेटियों की आवाज बनने की जो सुदूर किसी जाति- जनजाति में अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है। 


देश के हर कोने में हमें सावित्रीबाई फुले जैसी शिक्षक और महान समाज सुधारक के तौर पर बेटियों को जिम्मेदारी देकर पदस्थापित करना होगा, ताकि हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर पाने में सक्षम बन सके।


दुनिया के किसी भी कोने में महिला शक्ति की प्रखर आवाज को बुलंद करने की शुरूआत हम सभी को अपने-अपने घरों से करनी होगी। आज असुरक्षा और अराजकता के माहौल में हमें हमारी बेटियों को निर्भया बनने से रोकना होगा। साथ ही उनकी रक्षा के लिए प्रणबद्ध होना पड़ेगा। हाल ही में हाथरस में हुए एक गैंगरेप और भीषण यातनाओं का शिकार हुई 19 साल की एक लड़की ने 15 दिनों तक मौत से जूझने के बाद दम तोड़ दिया। इस वीभत्स घटना से समूचा देश अशांत और शर्मसार हुआ। हम सभी जानते है कि नारी की अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई नई नहीं है, लेकिन हम सबकों मिलकर ही यह लड़ाई लड़नी होगी। दिल्ली के निर्भया मामले के बाद जैसी जनक्रांति हुई ठीक वैसे ही देश को एकजुट होकर बलात्कर कानूनों की सख्ती के लिए आवाज उठानी होगी, ताकि बेटियां भी इस खुले आसमां के नीचे खुलकर जिदंगी जी सके।   


अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने के पीछे की वजह भी यही है कि समाज में बालिकाओं के प्रति असमानताओं के विभेद को दूर किया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि बालिकाओं कि शिक्षा में समानता, पोषण, कानूनी अधिकार , चिकित्सीय देख रेख, सुरक्षा और सम्मान के साथ जिंदगी जीने का हक दिलाना होगा। हम सभी की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि हम बच्चियों को स्कूली शिक्षा के दौरान ही घरेलू हिंसा की धारा 2009, बाल- विवाह रोकथाम एक्ट 2009 और दहेज रोकथाम एक्ट 2006 जैसे कानूनों से अवगत करवाएं, ताकि उन्हें अपने अधिकारों से वंचित ना रहना पड़े।


 


- डॉ. अनुपमा सोनी


(ब्रांड एंबेसडर- बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ अभियान, राजस्थान सरकार)


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