नशे मे डूबता आज का भविष्य

नशे मे डूबता आज का भविष्य



        (लेखिका दिप्ती डांगे)


मुंबई । भारत विश्व में सबसे युवा आबादी वाला देश है! युवा, जो किसी भी देश की प्रगति के लिए सबसे महत्वपूर्ण है और इसी युवा शक्ति के बलबूते पर भारत दुनिया की “आर्थिक महाशक्ति”बनना चाहता हैं, पर जिस युवा पीढ़ी के बल पर भारत विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दंभ भर रहा है , क्या वो युवा पीढ़ी सच मे भारत को आर्थिक महाशक्ति बना सकती है? सच्चाई ये है कि आज के युवा नशे की दलदल में धसते जा रहे है। युवाओं में नशा अब इस कदर हावी हो गया है कि अब वो मौजमस्ती का सामान नहीं अपितु आवश्यकता बनती जा रहा है! 'चाइल्ड लाइन इंडिया फॉउन्डेशन' की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में पेंसठ प्रतिशत नशाखोरी से वे युवा ग्रस्त है ,जिनकी उम्र अठारह वर्ष से भी कम है। युवायों में सिगरेट, शराब व गुटखा का सेवन करना एक आम बात है।एक सर्वे के अनुसार देश में प्रतिदिन लगभग छह हजार युवा तम्बाकू उत्पादों के सेवन करने वालों में बढ़ोतरी कर रहा है! नशे के सेवन में महिलायें भी पीछे नहीं है ,सिगरेट पीने के मामले में भारत की लड़कियां अमेरिका के बाद पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं!                               


ज्यादातर युवक मादक पदार्थों का सेवन शौक तथा फैशन के लिए या तनाव के कारण या दोस्तो के देख देखी में शुरू करते हैं पर धीरे-धीरे उन्हें कब इसकी आदत लग जाती है, पता भी नहीं चलता | महँगा नशा अपनी संपन्नता दिखाने का जरिया यानी के स्टेटस सिंबल बन गया है ।


स्कूल भी नशे से अछूते नहीं रहे। हालात यह हैं कि नौंवी से लेकर बारहवीं कक्षा तक के बच्चे सामान्यतः सिगरेट एवं गुटखा का सेवन चोरी-छिपे शुरू कर देते हैं और कॉलेज आते -आते नशे का दायरा और भी बढ़ता चला जाता है और गुटखे एवं सिगरेट का सेवन करने वाले बच्चे अब वयस्कता के साथ ही अफीम, गांजा, शराब के साथ साथ सिंथेटिक ड्रग्स तक लेने लगते है। सिंथेटिक ड्रग्स की चपेट में आने से देश के कई युवा अपनी जान गंवा चुके ।



नशीले पदार्थों को आमतौर पर तीन भागों में बांटा जाता है- प्राकृतिक नशा (अफीम, गांजा,चरस व तंबाकू)


अर्ध सिंथेटिक (अफीम से बने मारफिन, कोडीन, हेरोइन व ब्राउन शुगर, गांजा व गांजे से बने चरस व हशीश, कोकीन) सिंथेटिक ड्रग्स (एलएसडी, मैंड्रोक्स व पीसीपी आदि) 


 


अफ़ीम 


अफीम, पैपेवर सोमनिफेरम नामक पौधे के 'दूध' (latex) को सुखा कर बनाई जाती है। जिसके सेवन से मादकता आती है। इसका उपयोग कई दवाईया बनाने मे भी किया जाता है।हृदयकी धमनियोंं में अफीम दौड़ता है तो इसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। जिससे शरीर अंगों को काफी नुकसान होता है। यदि कोई व्यक्ति तीस ग्राम से अधिक अफीम खा लेता है तो उसकी मौत भी हो सकती । गांवों में शादियों के समय अफीम का उपयोग अधिक मात्रा में होता है। गांव के नौजवानों में ये बहुत लोकप्रिय है।



गांजा


इस पौधे के कई नाम हैं, जैसे- मैरीजुआना, केनेबीस और सबसे ज्यादा लोकप्रिय नाम है ‘वीड’ जिसे देशी भाषा में गांजा कहा जाता है।


होली पर जिस भांग को मिलाकर ठंडाई में पी जाती है, वो और गांजा दोनों एक ही मां के दो बेटे हैं।बस थोड़ा सा अंतर है इन दोनों में।भांग को जहां हम त्यौहार के दिन थोड़ी मस्ती के लिए इस्तेमाल करते हैं, वहीं लोग गांजे को रोजाना नशे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. युवाओं को यह इसलिए पसंद आता है, क्योंकि महज़ पचास रूपए में इसकी पुड़िया मिल जाती है. सस्ते दाम के कारण कॉलेज और स्कूली बच्चों में इसकी लत ज्यादा देखी जाती है. गांजा शराब की तरह महकता भी नहीं व आपकी चाल में भी इससे कोई ख़ास बदलाव नहीं देखा जाता।


प्रत्यक्ष रूप से या सामाजिक छवि पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ता पर कई बार यह नशा लोगों की जान के लिए घातक बन जाता है.


 


चरस 


गाँजे के पेड़ से निकला हुआ एक प्रकार का गोद या चेप है जो देखने में प्रायः मोम की तरह का और हरे अथवा कुछ पीले रंग का होता है और जिसे लोग गाँजे या तम्बाकू की तरह पीते हैं। नशे में यह प्रायः गाँजे के समान ही होता है।तेल और गाँजे की पत्तियों के चूर्ण की मिलावट भी देते हैं । इसे पीते ही तुरंत नशा होता है और आँखें बहुत लाल हो जाती हैं ।ये बहुत अधिक हानिकारक होता है।मानसिक संतुलन स्थायी रूप से खराब हो सकता है। एक शोध के अनुसार इससे दिमाग के काम करने और सोचने-समझने की शक्ति भी खत्म हो सकती है। इसकी खपत अमेरिका और पाकिस्तान के बाद भारत में होती है।



तम्बाकू


तंबाकू निकोटिया टैबेकम पौधे से प्राप्त होता है ये एक मीठा जहर है जो धीरे धीरे आदमी की जान लेता है।इसकी लत छुड़ाने पर भी नहीं छूटती है। तम्बाकू को जब गुल, गुड़ाकु,पान मसाला या खैनी, के रूप में प्रयोग करते है तो इसके कारण मुंह मे अनेक रोग उत्पन्न हो सकते है। सफेद दाग, मुँह का नहीं खुल पाना, तथा कैंसर रोग भी हो सकता है। बीड़ी-सिगरेट के पीने से शरीर में व्यापक प्रभाव पड़ता है। साँस की बीमारी जैसे ब्रोंकाइटीस, दमा, तथा फेफड़ो का कैंसर हो सकता है। इसके अतिरिक्त इसका प्रभाव शरीर के स्नायुतंत्र में पड़ता है।


किशोरावस्था में उत्सुकता वश या मित्रों के साथ इन पदार्थो का सेवन शुरू होता है फिर अन्य मादक पदार्थो की तरह इसकी भी आदत लग जाती है।इसकी नियमित सेवन इंसान की मजबूरी हो जाती है। भारत में अधिकतर लोग इस नशे के आदि है।



शराब


शराब इतना लोकप्रिय है कि दुनिया में हर तीसरे इंसान को शराब की लत है। शराब एक सामाजिक मान्यता प्राप्त नशा माना जाता है।


शराब अक्सर हमारे समाज में आनन्द के लिए पी जाती है। ज्यादातर शुरूआत दोस्तों के प्रभाव या दबाव के कारण होता है फिर बोरियत मिटाने के लिए, खुशी मनाने के लिए, अवसाद में, चिन्ता में, तीव्र क्रोध या आवेग आने पर, आत्माविश्वास लाने के लिए या मूड बनाने के लिए आदि। इसके अतिरिक्त शराब के सेवन को कई समाज में धार्मिक व अन्य सामाजिक अनुष्ठानों से भी जोड़ा जाता है। परन्तु कोई भी समाज या धर्म इसके दुरूपयोग की स्वीकृति नहीं देता है।अगर ये सीमित मात्रा में ली जाए तो इसका प्रभाव ज्यादा नही होता पर इसकी लत लग जाये तो यह मादक पदार्थ अन्य नशीले पदार्थो की तुलना सबसे घातक है। क्योंकि ये धीरे-धीरे किडनी और लीवर को सीधा नुकसान पहुंचाती है। एक कड़वा सच ये है कि बहुत से देश की अर्थव्यवस्था में शराब बिक्री का बड़ा योगदान होता है। इसलिये कोई भी सरकार इसको बैन करने की सोच भी नही सकती।


 


हीरोइन


नशे की दुनिया में हेरोइन को ड्रग्स की रानी कहा जाता है। इसे लेने से आदमी एक बार तो बहुत खुश होता है।ये सबसे घातक मादक पदार्थो में एक नशा है। एक बार इसकी गिरफ्त में आने के बाद उसका बचना मुश्किल है। क्योंकि यह सीधे नशा करने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क पर असर डालता है। दोबारा नशा नहीं मिलने पर व्यक्ति तड़पता रहता है।रिसर्च के अनुसार भारत में एक मिलियन हेरोइन नशे के आदि रजिस्टर किये गए हैं। 


 


कोकीन


यह खतरनाक और लोकप्रिय पार्टी ड्रग में से एक है। इसके रसायन सीधे दिमाग पर असर डालते हैं जिससे आपकी याद रखने की क्षमता कम हो जाती है। इस ड्रग को लेते ही इंसान के दिमाग की संरचना बदलने लगती है।


 


एलएसडी


एलएसडी एक शक्तिशाली साइकेडेलिक ड्रग है।ये एक प्रकार की फफूंद है। जिसको अमीरों का नशा कहा जाता है। इसको लेने वाले इस मादक पदार्थ को स्वर्ग का टिकट भी कहते हैं। पार्टीज में यंगस्टर्स का यह सबसे पसंदीदा नशा बनता जा रहा है। एलएसडी लिक्विड और पेपर दोनों फॉर्म में मिलती है। भारत में भी इसका चलन लगातार बढ़ रहा है। ये दुनिया का सबसे घातक मादक पदार्थ है कि इसका नशा करीब बाहर घंटे तक होता है। ये आपके दिमाग पर असर डालता है।इसको लेने वाला भ्रम की दुनिया मे रहने लगता है, उसको देखने की समस्या होने लगती है,पैनिक अटैक आते है,डिप्रेशन मे चला जाता है और आत्महत्या तक कर लेता है।


 


स्पीड बॉल


स्पीड बॉल हेरोइन और कोकीन का घातक मेल है। हेरोइन का नशा करने वाले जब हेरोइन से संतुष्ट नहीं होते हैं तो वो आनंद के लिए स्पीड बॉल का सहारा लेते हैं। इस ड्रग के ओवर डोज से कई लोगों की मौत हो चुकी है।


 


केटामाइन


यह नशीली दवा होती है जो कि भारत में होने वाली रेव पार्टियों में सप्लाई की जाती है। दुनिया में सबसे हानिकारक नशीले पदार्थ की सूची में इसका स्थान दूसरे नंबर पर है। इसका ज्यादा सेवन आपका दिमाग खराब कर सकता है।


 


क्रिस्टल मेथ


क्रिस्टलल मेथ यानी मेथेम्फेटामाईन जो कि सीधा दिमाग पर असर करता है। इसे लेने से शरीर की ऊर्जा और गतिविधियां बढ़ती है। इससे आत्मविश्वास और स्वस्थ्य होने का एहसास भी होता है। बताया जाता है कि इसकी क्रिस्टल मेथ की लत आसानी से नहीं छूटती है।ड्रग्‍स से बहुत अधिक नशा होता है और एक शक्तिशाली केंद्रीय तंत्रिका उत्तेजक है। क्रिस्टल मेथ अवैध रूप से निर्मित होती है।


 


म्याऊ म्याऊ 


म्याऊ-म्याऊ नाम से चर्चित एमडी ड्रग हैं।


म्याऊं-म्याऊं नशा स्मैक की तरह प्रयोग होता है और ये चीन से आता है। छिपकली को सूखा कर उसका पाउडर बना कर तंबाकू के रूप में प्रयोग करते हैं। कोकीन के मुकाबले सस्ती ये ड्रग कोकीन जैसा नशा कराती है।शुरू शुरू मे आनंद, उत्‍साह, आत्‍मविश्‍वास, मानसिक और शारीरिक उत्‍तेजना की अनुभूति होती है। लगातार इसका सेवन करने से एक लत बन जाती है और फिर दूसरे नशो की तरह मांसपेशियों में खिंचाव, शरीर कांपना, सिरदर्द, घबराट, हाई बल्‍ड प्रेशर, पेशाब में कठिनाई, शरीर के तापमान में बदलाव और हाथ नील पड़ने जैसे दुष्‍प्रभाव होते हैं।ज्यादा मात्रा मे लेने पर वह डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।और आत्महत्या तक कर लेते है।


 


ड्रग्स के अलावा घातक सांप के जहर ‘कोबरा ड्रग्स ’ भी ले रहे हैं।कोबरा ड्रग्स को के-72 और के-76 के नाम से जाना जाता है। नए साल के जश्न के मौके पर युवाओं की पार्टियों में इस खतरनाक ड्रग्स की सबसे ज्यादा मांग रहती है। पार्टियों में लड़के-लड़कियों द्वारा शीतल पेय और शराब में के-72 और के-76 के पाउडर को डाल कर उसका सेवन किया जाता है। इसकी एक खुराक के लिए उच्च तबके के युवक युवतियां पच्चीस हजार से चालीस हजार रुपये तक खर्च कर डालते हैं।


 


नशे से बॉलीवुड भी अछूता नही है , दोनो का आपस मे बहुत पुराना रिश्ता है जो गुरुदत्त से शुरू होकर तमाम अभिनेत्रियों के साथ होते हुए संजय दत्त,फरदीन खान, रणबीर कपूर, समेत अनेकों नामों से होता हुआ आज रिया चक्रवर्ती व सुशांत सिंह राजपूत तक पहुंचते-पहुंचते बहुत काला व डरावना हो गया है जिससे यह भी पता चलता है जिन कलाकारों को बड़े पर्दे पर हम युवाओं के रोल मॉडल मानते हैं, वो असल जिंदगी में ऐसी आदतों के गुलाम होते हैं, जिसकी कल्पना भी सभ्य समाज के लिए कलंक की तरह है।शायद नशा इनके लिए मजबूरी, शौक, पसंद, जीवनशैली समेत अन्य भावों को समेटे है।सच ये है कि इस चकाचोंध की दुनिया में नशे का अलग ही साम्राज्य बन चुका है।यहां ड्रग्स बहुत मामूली चीज है। छोटे आर्टिस्ट हों या बड़े कलाकार, सब इसकी चपेट मे है।


26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस मनाया जाता है।संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से चलने वाली संस्था अंतर्राष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (INCB) की 2018 की रिपोर्ट को माने तो भारत ड्रग्स के अवैध कारोबार का प्रमुख केंद्र है. देश में चौसठ फीसदी लोग ऐसे हैं,जो 18 वर्ष की आयु से नशे की आदत में पड़ जाते हैं। नशा करने वाले खुद ड्रग पैडलर बन कर दुसरो को इस नर्क मे झोंक रहे है।जो एक चिंताजनक स्थिति बन गयी है।


भारत में ड्रग्स का सबसे बड़ा सप्लायर अमेरिका है।वहीं अफगानिस्तान, बोलिविया, म्यांमार, कोलंबिया में भी ड्रग्स तस्करी का बड़ा नेटवर्क है. इसके अलावा मैक्सिको, पनामा, पेरु, वेनेज्युएला जैसे देश भी बड़े सप्लायर माने जाते है। जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल, चीन और नाइजीरिया से गैरकानूनी ढंग


से दिल्ली तक पहुंचता है। देश के उत्तर


पूर्वी राज्यों से नशे का सामान ट्रकों के जरिए देश के दूसरे हिस्से में पहुंचाया जाता है। भारत, नेपाल, मोरक्को और अफगानिस्तान अफीम के गढ़ हैं। चिकित्सीय प्रयोग के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पदार्थों व वस्तुओं के उपयोग को निषिद्ध करने केलिए 1985 में नशीली दवाएं व मनोविकारी पदार्थ कानून- एनडीपीएस ऐक्स बनाया।इस कानून को लागू करने के साथ ही मादक पदार्थों का सेवन करने वालों की पहचान, इलाज, शिक्षा, बीमारी के बाद देखरेख, पुनर्वास व समाज में पुनर्स्थापना के लिए जोरदार प्रयास किए जा रहे हैं, किंतु समाज में नशाखोरों की बढ़ती संख्या इन पर पानी फेर रही है।सबसे अहम् एवं जरूरी बात यह है कि शासन द्वारा जब इन नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध है तो आखिर ये धड़ल्ले से बॉलीवुड की बड़ी पार्टियों से गांव-गांव, गली-मुहल्ले, गुमटियों, तक कैसे पहुंचती है?आसानी से युवाओं के लिए उपलब्ध कैसे हो जाती हैं? ड्रग्स तस्करी पर काबू पाने वाली सरकारी एजेंसियां नशीले पदार्थो की धरपकड़ के साथ साथ इनमें लगे विदेशी और देशी नागरिकों को हिरासत में लेती रही है, कई तरह सख्तियां बरत रही है पर इसके बावजूद नशे का कारोबार और साम्राज्य पहले से कई गुना ज्यादा बड़ा होता जा रहा है। बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार और नेपाल से होने वाली मादक पदार्थो की सप्लाई रुक नहीं रही है और यहां नशे के कारोबारियों का नेटवर्क खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है।क्योंकि नशे का कारोबार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर 'सरकारी तंत्र-नशा कारोबारी-राजनैतिक संरक्षण’ इन्हीं की मिलीभगत से ही संचालित होता है।पूरी युवा पीढ़ी एवं समाज को मौत के मुंह में झोंकने वाले नरपिशाचों पर कभी भी कोई कार्रवाई नहीं होती है, बल्कि नोटों के वजन के आगे आंख मूदकर सबकुछ सही बतला दिया जाता है। अब ऐसे में कार्रवाई कौन और किस पर करे? सुशांत सिंह केस के बाद नारकोटिक्स ब्यूरो फिल्मी दुनिया में मादक पदार्थों के तार तलाशने में जुटा है, परन्तु इस मामले में तब तक सफल नही हो पाएंगे जब तक वह असली माफिया तक नहीं पहुंच जाती। ड्रग्स सिंडीकेट की कमर तब टूटेगी जब ड्रग्स की तस्करी रोक कर छोटे-छोटे आपूर्तिकर्ताओं की सप्लाई को रोका जाए। ड्रग्स के असली स्रोत को बंद किया जाए। 


 


विज्ञान की नजर से देखें तो नशे की लत एक बीमारी है, जिसमें व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता। इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि ऐसे हालात में वह क्या कर गुजरे। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत की सुई भी इसी ओर झुक रही है।


मादक पदार्थों के मामले में खरीद-बिक्री का तंत्र बहुत जटिल है। यह कारोबार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत संगठित रूप से चलाया जा रहा है। कई प्रभावशाली लोग इसमें शामिल हैं। जब तक बड़ी मछलियों को नहीं पकड़ा जाता तब तक समस्या की जड़ पर प्रहार नहीं हो पाएगा। चिन्तन इस बात पर होना चाहिये कि युवा पीढ़ी को नशों से दूर कैसे रखा जाए? कैसे अपनी संतानों को इस काली दुनिया से बचाया जाए? जब तक अभिभावक अपने बच्चों को बचाने का संकल्प नहीं लेंगे तब तक हमारा भविष्य नशे के दलदल मे डूबता जाएगा।


रिपोटर चंद्रकांत सी पूजारी


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