कांग्रेस में संगठन व नीति को लेकर शीर्ष नेताओं में पड़ी दरार

कांग्रेस में संगठन व नीति को लेकर शीर्ष नेताओं में पड़ी दरार 



प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़


(वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)


बिहार और मप्र के चुनाव के बाद कांग्रेस को मिली करारी हार को पार्टी के आलाकमान के कई शीर्ष नेताओं को हार पच नहीं पा रही हैं। कांग्रेस संगठन में अब चारों तरफ से उनकी ही पार्टी के बड़े रसूकदार नेताओं ने शाब्दिक बाण चलाना आरंभ कर दिए हैं। कपिल सिब्बल जैसे कई नेता हैं जो पहले भी पार्टी अध्यक्ष को चिट्टी लिखकर अपनी मानसिक वेदनाओं से अवगत करा चुकें हैं। अशोक गेहलोत के बाद अब तो अधीर रंजन जैसे बड़बोले नेता ने भी नाराज सहयोगी नेताओं को दो टूक नसीहत दे दी है कि कांग्रेस में रहते हुए पार्टी संगठन पर अंगुली ना उठाएं और ना ही राहूल व सोनिया गांधी पर कोई टिप्पणी करें!


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आजादी के बाद देश की एकमेव सबसे बड़ी और कई दशकों तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी अब पिछले एक दशक के अदंर ही देश में कई टुकड़ों में खंडित और सबसे ज्यादा जनाधार खोने वाली पार्टी बन चुकी हैं। कई राज्यों में तो कांग्रेस की गिनती अब दो तीन सीटों पर आकर अटक गई हैं। यदि कांग्रेस के इस गिरते हुए ग्राफ का सही और न्यायसंगत चिंतन,मनन और शोध किया जाएं तो स्पष्ट रूप से एक ही कारण सबसे बड़ा उभर कर सामने आएगा कि पार्टी के कई बड़े नेताओं में बेहत्तर वैचारिक समन्वयन का नितांत अभाव हैं। जो अब कई टुकड़ों में वर्चस्व की लड़ाई में बंट चुका हैं। कांग्रेस ने जिन्हें सबकुछ दिया उनकी जमीन को मजबूती प्रदान की आज वे ही पार्टी से किनारा करके अन्य दलों में जाकर लगभग हर राज्यों की सरकारों में मंत्री बनें बैठे हुए हैं। कांग्रेस ना केवल जमीनी स्तर पर अपना जमा जमाया जनाधार खो रही हैं वरन जमीनी स्तर पर पार्टी संगठन को भी बेहत्तर तरीके से मजबूत नहीं कर पा रही हैं। काग्रेस की जितनी भी सहयोगी संगठन इकाईयां सेवादल, एनएसयूआई, अन्य प्रकोष्ठ,मंडल, और ठेरो कार्यकारी संगठन समितियां हैं इनमें सबसे बड़ी लचर कार्यशैली और भाई भतीजावाद,पक्षपात व सतत मूल्यांकन अभाव के चलते कांग्रेस के शीर्ष संगठकों को हर बार अतिविश्वास और दलबदलूओं के कारण मुंह की खाना पड़ रही हैं।कांग्रेस जब केन्द्र और कई राज्यों में सतासीन थी तब बुद्धिजीवी कांग्रेस के नेताओं ने भविष्य के लिए नेताओं का वैचारिक मंथन और उचित शोध नहीं किया वहीं पार्टी ने सत्ता चलाते हुए राज्यों की मानिटरिंग पर कभी मजबूत पकड़ नहीं बनाई जिसके चलते राज्यों में कई बड़े उद्ययीमान प्रखर नेताओं को खोना पड़ा हैं। जो असंतुष्टि के शिकार होकर दलबदल करके अन्य पार्टियों में जाकर कांग्रेस के लिए ही एक बड़ा खतरा बन बैठे। राजनीति दिग्गज विश्लेषकों का भी यही मानना हैं कि कांग्रेस संगठन में जबतक ठोस रणनीति और जवाबदेही का विश्वसीय और सही मूल्यांकन नहीं होता तबतक कांग्रेस को केवल कांग्रेस वाले ही आपस में पलिता लगाकर तोड़ते रहेगें। यह आज की एक सबसे बड़ी गंभीर समस्या बनकर देश के लिए सभी पार्टियों के सबसे बड़ा खतरा बनती जा रही हैं। कई कांग्रेस के बड़े नेताओं ने अब मुखर होकर बोलना आरंभ कर दिया हैं। ये वे ही नेता जो पहले कांग्रेस में ही रहकर खूब मलाई खा चुकें हैं आज जब कांग्रेस संगठन में इनकी कोई पूछपरख नहीं हो रही हैं तो अब ये चारों तरफ से शाब्दिक और वैचारिक बाणों से प्रहार कर रहे हैं। आज कांग्रेस अपनों के ही कारण कमजोर,असहाय और कई अलग अलग प्रभावकारी नेताओं के चलते टुकड़ों में बंट चुकी हैं। गुलामनबी आजाद को कांग्रेस ने क्या नहीं दिया? आज सबसे पहले पार्टी और संगठन पर तीखे प्रहार करने वालों में उनका पहले नाम आता हैं। ऐसे सैंकड़ों कांग्रेसी नेता हैं जो आज सोनिया और राहूल गांधी के नेतृत्व पर अंगूली उठा रहें हैं।लेखन ने इसके पूर्व भी कांग्रेस संगठन को लेकर पद मे बदलाव और वैचारिक धमासान करके बहुत ही गंभीरता से विश्लेषण करके लिखा था। आज कई बातें सामने आ रही हैं। यदि दलबदल का यहीं दौर चलता रहा तो कांग्रेस में केवल एक ही परिवार के चंद लोगों के अलावा संगठन और पार्टी में कुछ ही निष्ठावादी लोग बचे रहेगें। राजस्थान में जो नौटंकी हुई उसमें सचिन पायलट भले ही लौट आएं हो परन्तु उनका पद ओर कद धूमिल जरूर हो चुका हैं। सत्ता के गलियारों और कांग्रेस के ही बड़े नेताओं के दरबारों में आज सर्वत्र एक ही चर्चा जोरों पर हैं कि कांग्रेस में आजकल बिल्कुल सब ठीक नहीं चल रहा हैं। देश के आम लोगों को भी अब यहीं लगने लगा हैं कि कांग्रेस में आखिर हो क्या रहा हैं ? पार्टी के नेता बैठकर मंथन करके कांग्रेस को बचाने के बजाय कांग्रेस को तोड़ने पर आमादा हो चुके हैं! कांग्रेस के इतने बूरे हालात इससे पहले ना कभी किसी ने देखें थे! ना किसी ने पढ़े थे! और ना ही किसी ने सुने थे ! सच तो यह हैं कि पार्टी संगठन स्तर पर जबतक कठोर निर्णय लेकर अविश्वसनीय नेताओं,दागदार प्रत्याशियों और निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता नहीं दिखाती तबतक कांग्रेस में दलबदल और छल झपट की राजनीति करने वाले बड़े नेता,मंत्री या कांग्रेस संगठन के केन्द्र व राज्यों के पदधिकारी कांग्रेस का बेडा गर्त करते रहेगें! अब समय आ गया हैं कि कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े पार्टी के संगठन को बचाने के लिए हर स्तर पर बेरोक टोक कड़े कदम उठाकर उन लोगों को बाहर करना होगा जो पार्टी संगठन और सत्ता में मंत्री बनकर पार्टी को ही गुमराह कर रहे हैं। इसके लिए किसी ज्योतिषी या विदेशी एजेन्सी से मूल्यांकन कराने कि जरूरत नहीं हैं। कांग्रेस को चाहिए कि हार के कारणों का गंभीरता से सही, संवैधानिक और ईमानदारी से मूल्यांकन कराया जाएं ताकि भविष्य में कांग्रेस के निष्ठावान नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं को हार से निराशा नहीं वरन उन्हें निर्णय लेने और परखने की ठोस वैचारिक पैदा हो सके। यह भी एक कटू सत्य हैं कि चुनाव के समय कांग्रेस के पास नीति नियोजक और जमीनी परख रखने वालों की भी एक बहुत बड़ी कमी हैं। परिणाम स्वरूप सही प्रत्याशी का आंकलन ना होने और दबाव की राजनीति के चलते बड़ी संख्या में लोकसभा व राज्यों में विधानसभाओं, महानगरपालिकाओं, नगरपालिकाओं,नगरपरिषदों,नगर पंचायतों और ग्राम पंचायत स्तरों पर सीटें हारते आ रहे हैं। कांग्रेस संगठन ने वर्तमान के हालात को देखते हुए जल्दी ठोस कदम यदि नहीं उठाएं तो सच मानिए कि कांग्रेस कहीं देश द्रोही अन्य पार्टियों के साथ मिलकर अपनी राष्ट्रीय छवि को भी धूमिल कर जनाथार को खोने के अलावा कुछ भी हासील नहीं कर पा सकेगी। जहां तक राहूल को नैतृत्व ना देने के सवाल उठाए जा रहें हैं ऐसे लोगों ने और संगठन के पदाधिकारियों आपस में चिंतन करके पार्टी की स्थिति पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए ना कि किसी के बदलने या नेतृत्व ना देने पर सवाल खड़े करने चाहिए। संगठन ने पहले कड़े कदम उठाकर उन्हें बाहर करना होगा जो पार्टी और संगठन के लिए सिरदर्द बनकर सबको कमजोर करने पर आमादा हो चुके हैं।


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