कहीं भ्रम व विरोध तो कहीं एकजुट किसान

        कहीं भ्रम व विरोध तो कहीं एकजुट  किसान

             


                                                                                                     प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़

              (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)

ये आग कब बुझेगी ! ये मुद्दे कब सुलझेगें ! ये नासमझी कब खत्म होगी ! किसानों के कंधों से कब तक चलती रहेगी राजनीति रणनीति! आखिर कब तक दिल्ली के चारों और से जमा किसानों का जमावड़ा हटेगा !  विरोध और भ्रम के वैचारिक जाल से कब  मुक्त होगा किसान ! टुकड़े-  टुकड़े हो चुका किसान संगठन आखिर कब तक राजनेताओं से गुमराह होकर केन्द्र की किसान हितैषी नीतियों से दूर भागता रहेगा! यह एक गंभीर चिंतन का विषय हैं कि आज देश का किसान कृषि कार्यों को छोड़कर  उनके ही हितों से जुड़े कानूनों का विरोधी बनकर क्यों सड़क पर उतर कर राजनीति की नीतियों का शिकार हो रहा हैं ?

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह ऐसा पहला अवसर आज देश और दुनिया के सामने एक प्रश्नचिन्ह बनकर खड़ा हो गया हैं कि देश के करोड़ों किसानों के सर्वांगीण हितेषों को ध्यान में रखकर बनाए कृषि कानून बिल पर किसान को बेवजह एक हथियार बनाकर कुछ राजनैतिक पार्टियों ने सरासर गुमराह कर दिया हैं। देश का प्रगतिशील किसान आखिर क्यों अपनी हितैषी सरकार के विरोध में सड़क पर उतरने के लिए मजबूर हुआ हैं। तमाम मीडिया तंत्रों ने हर किसी राजनीति पार्टी का हाथ थाम रखा हैं जो आज लोकतंत्र के लिए सबसे घातक बनता जा रहा हैं। मीडिया सच्चाई के साथ प्रसारण तंत्र का दायित्व भी बखुबी निभाएं इस और करोड़ों लोगों की आंखें लगी हुई हैं। किसान और किसान संगठनों के साथ जब केन्द्र सरकार खुली बातचीत करने के लिए हर तरह से तैयार हैं तो फिर अन्य पार्टियों को पास हो चुकें कृषि कानून पर ऐतराज क्यों हैं? यह एक बहुत ही गंभीर और चिंतनीय  मुद्दा हैं। आज किसान,किसान संगठन और केन्द्र सरकार के बीच एक त्रिकोणी वैचारिक विरोधाभाष बना हुआ हैं। किसानों का विरोध और आन्दोलन के 29वें दिन पूर्ण होने पर भी स्थिति जस की तस बनी हुई हैं। यदि किसानों के आंदोलन के पहले दिन का मूल्यांकन किया जाएं तो स्वत:ही स्पष्ट हो जाएगा कि किसानों के कंधों का उपयोग अन्य पार्टियों द्वारा किया जाने  की राजनीति नजर आने लगेगी। केन्द्र सरकार ने इस आंदोलन को आरंभ में बिल्कुल ही हल्के से लिया और जब दुनिया के कई देशों से भारतीय किसानों और संगठनों के नेताओं को फंडिंग होने लगी और भारत विरोधी के नारे लगने तब देश का मीडिया और केन्द्र की सरकार की आंखें खुली कि किसानों को गुमराह करके भाजपा विरोधी तमाम पार्टियां राजनीति की रोटियां सेंक रही हैं। मोदीजी के विश्वसनीय व सिपहसालार केन्द्रीय मंत्रियों ने इस स्थिति की परिभाषा को समझा तबतक बहुत देर हो चुकी थी। खबर तो यह भी हैं कि भाजपा ने किसानों के मुद्दों को नजर अंदाज करके पश्चिम बंगाल पर पूरा फोकस कर रखा था। टीएमसी व ममता बनर्जी को घेरने के चक्कर में किसान कड़ाके की  ठंड में उन्तीस दिनों से दिल्ली सीमाओं पर डटे हुए है। कांग्रेस और लेफ्ट ने अपना पूरा समर्थन किसानों और किसान नेताओं को देकर कृषि कानून बिलों को एक नया तूल दे दिया है। जमीनी स्तर के आम लोगों को आज तक यह नहीं समझ में आ रहा हैं कि किसानों की चिंता क्या हैं और किसान क्यों इतना आक्रोशित होकर सड़कों पर बिस्तर डाले ठंड में अलाव के सामने बैठकर हाथ सेक रहा हैं ? एक तरफ कोरोना के सत्तर प्रतिशत शक्तिशाली रिटर्न होकर लौटने ने पूरी दुनिया के देशों की  सरकारों की नींद हराम कर दी हैं। वैक्सीन अभी आम लोगों तक पहुंची भी नहीं हैं और कोरोना का नया स्वरूप सामने आ चुका हैं। ऐसे में किसानों का दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल कर पड़े रहना कोरोना के गंभीर खतरें को बढ़ा भी सकता हैं। दिल्ली में 948 लोग ब्रिटेन से आएं  हैं उनमें 11 लोग नये कोरोना वायरस के पाए गये हैं। ठंड का मौसम और कोरोना के तेजी से फैलने के खतरों को सरकार ने गंभीरता से लिया हैं। किसानों के नेताओं को ना कोरोना का कोई खौफ हैं और ना ही सरकार से बातचीत करने में कोई विश्वास नजर आ रहा हैं। ऐसे में किसान और उनके संगठन के नेतागणों पर अब राजनीति करने के सरासर गंभीर आरोप भी लग रहे हैं। इस तरह किसान और उनके संगठनों को आम जनता अब अलग रूप से देख रही हैं। किसान ने अपनी समस्याएं स्वयं अपने बलबूते पर हल कराने के बजाएं राजनीति पार्टियों का सहारा लेकर एक बहुत बड़ी गलती के शिकार हो चुके हैं। ऐसे में आम लोगों की सहानुभूति से दूर हो रहे  किसान और उनके संघर्षशील नेतागणों को स्थिति को समझते हुए सीधें बिना राजनीति पार्टियों को केन्द्र से मिलना चाहिए। इसे विडम्बना ही कहां जाएगा कि किसानों के संगठनों में पूरी तरह फूट पड़ चुकी हैं और कई संगठन केन्द्र के कृषि कानून के समर्थन में खड़े हो चुके हैं। अब कौन से किसानों को आम जनता सही मानेगी और किसको गलत कहेगी ! आज हर एक मीडिया किसानों की खबरों को बढ़ा चढ़ा कर बता रहा हैं। किन्तु किसानों और उनके नेताओं की सच्चाई और असलियत से आम जनता को खबरों से दूर रखा जा रहा हैं। कहीं भ्रम,कहीं विरोध,कहीं सहानुभूति तो कहीं मार्ग बंद होने से किसानों के प्रति आम जनता का आक्रोश के नजारे रोज नए नए रूप में देखने को मिल रहे हैं। वहीं किसानों और उनके संगठनों का एक बहुत बड़ा वर्ग केन्द्र सरकार को पूर्ण  समर्थन करके सड़कों पर बैठे अपने ही किसान भाई- बहनों के साथ दोयम दर्जे के शिकार बनते जा रहे हैं। देश की आम जनता किसानों के समाधान के लिए कई तरह से उम्मीदें लगाएं बैठी हैं। ताकि देश के आम लोगों को कोरोना के नए स्वरूप की महत्ती जानकारी देश व दुनिया से सतत सबको मिलती रहे। किसानों के खातों में उनको किसान सहयोग निधि के रूप में पीएम ने अटल जयंती के उपलक्ष्य में 18 हजार करोड़ रूपये सीधे सीधे 9 करोड़ किसानों के खातें में डालकर एक नया विश्व रिकार्ड बना दिया हैं। इतनी बड़ी राशि आजतक किसी देश ने अपने किसानों को उनके खातों में नहीं डाली हैं। प बंगाल में दीदी किसानों की राशि स्वयं लेकर किसानों के खातों में डालने की बातें कर रही हैं। केन्द्र प बंगाल के किसानों को लाभ देना चाहती हैं परन्तु चुनाव को देखते हुए किसानों को केन्द्र के इस लाभ से महरूम कर रही हैं। प बंगाल के गवर्नर ने दीदी को काफी फटकार भी लगाई हैं कि किसानों को लाभ से वंचित क्यों कर रही हैं। देश का किसान यह बेहत्तर समझ चुका हैं कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने सदैव किसानों के हितो को ध्यान में रखकर ही बड़े और कड़े फैसलें लिए हैं। देश का तमाम विपक्ष मोदीजी की अभी से घेराबंदी करके 2024 के चुनाव की तैयारु हेतू लामबंद हो रहा हैं। यह तो वक्त ही बताएगा कि विपक्ष अपने मनसूबों में सफल होता हैं या देश का किसान केन्द्र की नीतियों को सही मानता हैं।

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