विद्या भारती द्वारा ‘संस्कृति महासंगम’ कार्यक्रम का आयोजन

विद्या भारती द्वारा ‘संस्कृति महासंगम’ कार्यक्रम का आयोजन.      


कुरुक्षेत्र। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को ‘संस्कृति महासंगम’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी ने की। उद्बोधन विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय मंत्री एवं संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर का रहा। कार्यक्रम में देशभर से क्षेत्र एवं प्रांत प्रमुख सहित अनेक संस्कृति प्रेमियों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने आज देव दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा एवं गुरुनानक देव जयंती पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज के दिन संस्थान द्वारा ‘संस्कृति महोत्सव’ का बड़ा आयोजन किया जाता था, लेकिन कोरोनाकाल के कारण ऑनलाइन ही इस कार्यक्रम में ‘संस्कृति महासंगम’ के रूप में देशभर के सभी राज्यों के 550 से अधिक जनपदों के संस्कृति प्रेमी जुड़े हुए हैं। संस्कृति बोध परियोजना के राष्ट्रीय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने अतिथि परिचय कराया। इस अवसर पर ऑनलाइन संस्कृति ज्ञान परीक्षा में पंजीकरण किस प्रकार किया जाए, इसे देशभर के प्रतिभागियों को पी.पी.टी. के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में विद्या भारती उत्तर क्षेत्र से  अनिल कुलश्रेष्ठ, पश्चिम उत्तर प्रदेश क्षेत्र से  यशपाल सिंह, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र से  राजकुमार, उत्तर पूर्व क्षेत्र से  अजय कुमार तिवारी पूर्वोत्तर क्षेत्र से  मनमोहन कलिता, पूर्व क्षेत्र से  कैलाश चन्द्र मिश्र, दक्षिण मध्य क्षेत्र से  अशोक पाटिल, पश्चिम क्षेत्र से  शेषाद्री व्यंकटेश डांगे, राजस्थान क्षेत्र से  रमेश शुक्ला, मध्य क्षेत्र से  अंबिकादत्त कुंडल की सक्रिय सहभागिता रही।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर ने कहा कि भारत की संस्कृति महान एवं विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। इसका गौरव हमारी अगली पीढ़ी को होना चाहिए क्योंकि बहुत तेजी से सांस्कृतिक मूल्यों में, सांस्कृतिक जीवन पद्धति में गिरावट आज समाज में दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि संस्कृति में गिरावट नहीं आती बल्कि संस्कृति तो शाश्वत होती है। गिरावट हमारे व्यवहार में आती है। हम जब अपने सांस्कृतिक मूल्यांे को भूल जाते हैं तो फिर व्यवहार से विरत हो जाते हैं। हमारे जीवन में वह संस्कृति का व्यवहार दिखाई नहीं देता। अतः संस्कृति पर गौरव प्राचीन संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को जानने से ही होगा। 

अवनीश भटनागर ने कहा कि प्रायः कह दिया जाता है कि सभ्यता और संस्कृति में गिरावट आ रही है। इसे उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि गिरावट सभ्यता में आती है, संस्कृति तो शाश्वत तत्व है, व्यवहार का तत्व संस्कृति है। धर्म अर्थात् जीवन जीने की दृष्टि, उसे कैसे जीवन के व्यवहार में लाया जाए, उस संस्कृति के स्रोत को जानना, उनसे परिचय प्राप्त करना, यह अगली पीढ़ी के लिए आवश्यक है। सभ्यताएं बनती हैं, बदल जाती हैं, समाप्त भी हो जाती हैं। भारतीय संस्कृति शाश्वत है, स्थायी है, चिरंतन है और बदलती नहीं है। उसके मूल तत्व नहीं बदलते। उन्होंने कहा कि अन्य विश्व भर की संस्कृतियांे की तुलना में भारतीय संस्कृति हिन्दू संस्कृति है। इसकी विशिष्टता है। हमारी संस्कृति ने ही बताया कि जिनसे हमें कुछ प्राप्त हुआ, उनके प्रति श्रद्धा का भाव रखना चाहिए। इसलिए हमारे यहां तुलसी माता बन गईं, गंगा माता बन गईं, गऊ माता बन गईं। यह जो प्रकृति, जीव जगत, वनस्पति के साथ सम्बन्ध है, वह हमारी संस्कृति की विशेषता है। यह प्राचीन है परन्तु चिर-नवीन भी है। उन्होंने संस्कृति ज्ञान परीक्षा के महत्व को बताते हुए कहा कि यह केवल परीक्षा नहीं है अपितु हमारे गौरवशाली इतिहास, हमारे पूर्वजों, हमारे ऋषि-मनीषियों की, भारत के भूगोल, इतिहास, संस्कृति की जानकारी जन-जन तक पहुंचाना है। इसके लिए कक्षा 4 से 12 तक के लिए कक्षानुसार पुस्तिका में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। उन्होंने कहा कि यह परीक्षा अब तक ऑफलाइन होती थी, लेकिन अब से ऑनलाइन भी शुरू हो गई है। ऐसे में भारतीय संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने का क्रम अब विदेश में चले गए भारतीयों तक भी पहुंच गया है। अब कोई भी व्यक्ति विदेश में होते हुए भी इस परीक्षा में प्रतिभागिता कर सकता है। 

अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी ने कहा कि कुरुक्षेत्र वास्तव में कर्मभूमि है। आज कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान, दान का बड़ा महत्व है। विद्वान मनीषी अन्नदान से भी अधिक विद्या दान को प्रमुख मानते हैं। लेकिन संस्कृति दान तो उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। हम क्या हैं, अपने स्वरूप को जान लेना, अपने व्यक्तित्व और आत्मा को जानना नहीं, अपने सामाजिक स्वरूप को जान लेना, अपनी परम्पराओं को जान लेना अपनी संस्कृति को जानना है। संस्कृति दान एक तरह से स्मृति को प्राप्त कर लेना ही है। अपने इतिहास को, अपने विचार को जान लेना, उसे समेकित रूप में अपने भीतर दर्शन कर लेना यह संस्कृति का दान है। यह दान ही तो विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान करता आया है। विद्या भारती विद्या का दान करती है, संस्कृति शिक्षा संस्थान ‘संस्कृति’ का दान करता है। उन्होंने कहा कि शुद्ध होना हमारे यहां मान्यता प्राप्त है। शरीर जल से शुद्ध होता है, मन भावनाओं और संवेदनाओं से शुद्ध होता है, हमारी बुद्धि सद्विचार से शुद्ध होती है और हमारी आत्मा आध्यात्मिकता से शुद्ध होती है। डॉ. रामेन्द्र सिंह ने बताया कि ऑनलाइन संस्कृति ज्ञान परीक्षा हेतु किसी भी प्रकार की जानकारी 2 दिसम्बर तक प्रतिदिन 11 से 12 बजे संस्थान के यू-ट्यूब चैनल वीबीएसएसएस केकेआर पर प्रश्न पूछकर प्राप्त की जा सकती है।

कार्यक्रम के अंत में दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।

रिपोटर चंद्रकांत सी पूजारी

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