टीएमसी का टूटता कुणबा और बौखलाहट से परेशान जनता

 टीएमसी का टूटता कुणबा और बौखलाहट से परेशान जनता



                     प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़

               (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)

अति सर्वत्र वर्जयते! कहते हैं कि अति कि सदैव और सर्वत्र घोर निंदा ही होती हैं। इतिहास गवाह हैं कि अति मोह,अति बड़बोलवचन,अति सत्ताई नशा और अति उत्साही कार्य ये सब पतन के कारण बन ही जाते हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने विगत दो वर्षों में अपने शासनकाल में जो राज्य की जनता के साथ छलावा किया हैं उससे जनता और उन्हीं के सिपाहसालार विधायक भी अब साथ छोड़कर अन्य पार्टियों का रूख कर रहे हैं। यह एक ऐसा संकेत हैं जो आने वाले समय में पश्चिम बंगाल में बहुत बड़ा कुछ नया घटने का संकेत दे रहा हैं।  टीएमसी के इस टूटते कुणबे की सच्चाई को सबने जानना चाहिए!

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का सत्ताई कुणबा अब हर राजनैतिक स्तर के नेताओं से टूटकर बिखर रहा हैं। देश के राजनीति इतिहास में यह एक ऐसा पहला मौका हैं जहां किसी पार्टी को रोकने को लेकर एक सीएम अपनी पूरी ताकत लगाकर राज्य में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को कुचलने की हर एक रणनीति अपनाई जा रही हैं। ममता दीदी ने विगत साडेचार वर्षों से अधिक समय तक अपनी सत्ताई हठधर्मिता के चलते केन्द्र की योजनाओं को सरासर दरकिनार कर करोड़ों -अरबों रूपयों की जनकल्याणकारी  योजनाओं का पैसा सही मायनों में उपयोग ना करके अन्य में खर्च कर जनता के साथ छलावा किया हैं। छल,बल और एकला चलो रे कि  नीति आज ममता दीदी को अपने ही राज्य में बहुत भारी पड़ती नजर आ रही हैं। उनका सत्ताई कुणबा आज उनकी नीति के चलते टूटकर भाजपा का दामन थामने को तैयार हो रहा हैं। अब तक एक सासंद, नौ विधायक, एक पूर्व मंत्री, उन्नीस पार्षद,हजारों टीएमसी के जमीनी कार्यकर्तागण भाजपा का डंडा और झंडा तेजी से थामते जा रहे हैं। एक समय था जब ममता की तूती के आगे कोई भी पार्टी बेबस नजर आती थी। किन्तु मोदी,  शाह और विजयवर्गीय की तिकड़ी ने प बंगाल में वह कर दिखाया जो इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। आज देश दुनिया में बस एक ही चर्चा तेजी से वायरल हो रही हैं कि चुनाव आते आते कहीं ममता दीदी अकेली ही टीएमसी के बैनर का एक मात्र चेहरा मोहरा ना रह जाएं! प बंगाल में  तीन सीटों से सीधे अब दो सौ सीटों के शंखनाद ने  कांग्रेस,लेफ्ट और औवेसी की पार्टी की भी नींद उड़ा दी हैं। देश की अन्य पार्टियों की कोई भी  हलचल प. बंगाल में  दिखाई नहीं दे रही हैं। आगामी चुनाव में अब सत्ताई लड़ाई सीधे- सीधे भाजपा और टीएमसी  के बीच की बन चुकी हैं। कांग्रेस और लेफ्ट की कोई हलचल ना होने से एक बड़ी निराशा दोनों पार्टियों के खेमों में सबको चूभ रही हैं। प बंगाल में यदि औवसी कम से कम एक या दो सीट की जीत से आगाज करते हैं तो औवेसी की पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाएगा। ऐसे में देश के राजनीति इतिहास में एक नई राष्ट्रीय पार्टी का अभ्योदय हो चुका होगा। जहां देश में पहले से जीवित कई पुरानी राजनीति पार्टियों का आज अस्तित्व ही खतरें में बना हुआ हैं वहीं औवेसी की (AIMIM) पार्टी केवल जातिगत समीकरणों को लेकर देश में कई राज्यों में जनमत की जुगाड़ में बढ़ने की सोच रही हैं। राजनीति में किसी पार्टी को जातिगत कट्टरवादिता के कारण सदैव भारी नुकसान ही हुआ हैं। वसुदेवकुटुम्बकम की भावना वाले भारतीय लोकतंत्र में जातिगत समीकरण फलीभूत नहीं हो सके हैं। बिहार में यादववंशियों की बड़ी हार वहीं दक्षिण में डीएमके,लेफ्ट और टीएमसी जैसी पार्टियों ने बड़ा नुकसान उठाकर जनाधार खोया हैं। क्योंकि राष्ट्रहित में जनकल्याण करनेवाली राष्ट्रीय पार्टियों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां आज सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास ही आज लोकतंत्र की सबसे बड़ी जरूरत और ताकत भी हैं। जातिगत आधार पर चुनाव आज देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन रहे हैं। हम सब नई शिक्षा नीति की बहुत बातें करते रहे हैं किन्तु देश के लोकतंत्र की मजबूती के लिए कोई राजनीति की शिक्षा और समझ को आम लोगों के लिए विकसित नहीं कर पा रहे हैं। जय जवान! जय किसान!और जय विज्ञान की भी बहुत दुहाई दे रहे हैं किन्तु जवानों की भावना और किसानों की समस्याओं को भी जय विज्ञान के लिए  बारिकी से समझना होगा। जम्मू काश्मीर,पंजाब और प बंगाल मे देशद्रोही ताकतों की बढ़ती हिम्मत को  समूल नष्ट करके एक राष्ट्रवाद,एक ही नारा और एक ही ध्वज के साथ एक मजबूत लोकतंत्र भारतवासियों के लिए बना रहे इस यज्ञ में सभी राजनीति पार्टियों को जातिगत और वैमनस्यवादी राजनीति को तिलांजली देना होगी। नई पीढ़ी के लिए जम्मू कश्मीर आज सबसे बड़ा उदाहरण बन चुका हैं। प बंगाल में जिस तरह राजनीति को लेकर मारकाट और खून खराबा चरम पर पहुंच चुका हैं इससे साफ जाहीर हो रहा हैं कि ममता बनर्जी को देश हित से ज्यादा सत्ता का परिवार का मोह उनकी बहुत बड़ी राजनीति बौखलाहट बन चुका हैं। उनका कुणबा रेत के ढेर की तरह बिखर रहा हैं। वरना उनके ही विधायक इस तरह ममता का साध बीच मझदार में से छोड़कर नहीं जाते। ममता पर आज परिवारवाद और तानाशाही की नीति बहुत भारी पड़ चुकी हैं। एक समय महागठबंधन की नींव डालने में साथ देने वाली ममता आज प बंगाल में अपने ही कुणबें को बचाने में संघर्ष कर रही हैं। आज ना तो ममता को सहानुभूति देने वालों में कहीं राहूल गांधी दिखाई दे रहे हैं और ना ही शरद पवार साथ खड़े हैं और ना ही सपा,आप, आरजेडी और बसपा ये सब  ममता के साथ कुछ बोल पा रहे हैं। प बंगाल में टीएमसी के डूबते जहाज पर  अब कोई भी अन्य पार्टियां गठबंधन करने को राज नहीं हैं। ममता को उनका बड़बोलापन ही आज उनके राज्य में सबसे भारी पड़ चुका हैं।अमित शाह के दो सौ सीटों के शंखनाद ने तमाम राजनीति पार्टियों की नींद उड़ा दी हैं। प बंगाल में जिस तरह से हमलें हो रहे और राजनीति वैमनस्यता उभर रही हैं इसकी जड़ों तक पहुंचकर पत्रकारिता करने की आज सबसे बड़ी जरूरत हैं। क्योंकि ममता भाजपा के तमाम आरोपों का सिरे से खंडन कर रही हैं। कहीं यह ममता को हताश और निराश करके चारो तरफ से घेरने वाली चाणक्य नीति के हथकंडों की नई राजनतिक परिभाषा तो नहीं हैं? इसे भी लोकतंत्र में बखुबी समझना होगा।

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