सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए नए विकल्प खोजना जरूरी

                       राष्ट्रीय बालिका दिवस 

सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए नए विकल्प खोजना जरूरी


देश भर में रविवार, 24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाएगा। यह दिवस हमें इस बात पर भी चिंतन एवं मनन करने का मौका देता है कि देश में महिलाओं की सही स्थिति का एक जायजा लें। आजादी के सात दशकों बाद भी लैंगिक समानता के लक्ष्य के मद्देनजर इसकी चुनौतियां कम नहीं हैं। इस दिवस का आगाज भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास ने साल 2008 में किया था। इसका मकसद समाज में बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इतना ही नहीं उनकी सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए नए विकल्प खोजना भी है। बालिका शिक्षा व जेंडर के मुद्दे पर काम करने वाली संस्थाएं व सरकारी विभाग भी इस दिवस को पुरजोर मानते है। 


बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की ब्रैंड एम्बेसेडर बतौर कह सकती हूं कि राजस्थान में गर्ल चाइल्ड को लेकर उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा  पर बहुत सी योजना कारगर साबित हो रही हैं। फिर भी उनकी उन्नति की  राह में चुनौतियां बहुत हैं। फिलहाल राजस्थान में साल 2018-19 की जनगणना के मुताबिक चाइल्ड लिंगानुपात 1000 लड़कों के मुकाबले 948 लड़कियां हैं। यह अनुपात 2011 के 888 व 2015 के 861 अनुपात से कहीं ज्यादा है।बालिकाओं की बेहतरी और प्रोत्साहत को लेकर राजस्थान सरकार ने कई योजनाएं भी संचालित कर रखी हैं। मसलन   इनमें सुकन्या समृद्धि योजना, मुख्यमंत्री राजश्री योजना प्रमुख है। मुख्यमंत्री राजश्री योजना के तहत लड़की के जन्म पर 2500 रुपए, वैक्सीनेशन के बाद ढाई हजार रुपए और  स्कूल एडमिशन के लिए 4 हजार रुपए दिए जाते हैं। इसी प्रकार छठी और ग्यारहवीं कक्षा के लिए क्रमश: 5 हजार और 11 हजार रुपए दिए जाते हैं। भारत में केरल व अन्य राज्यों के मुकाबले राजस्थान में महिला साक्षरता दर 52.7 फीसदी है जो सबसे कम है। इसी प्रकार चाइल्ड मैरिज  के मामले में भी राजस्थान भारत में दूसरे स्थान पर है। राजस्थान में एडॉलेसंस क्लब भी बने हुए हैं जो पढ़ाई छोड़ चुकीं गर्ल्स को फिर से स्कूल से जोड़ने का काम करती हैं। इतना ही नहीं राजस्थान सरकार देवनारायण स्कूटी योजना के तहत स्कॉलर गर्ल्स को स्कूटी देने के अलावा उसकी हायर स्टडीज में भी मदद करती रही है। स्वच्छता और बेहतर स्वास्थ्य के मद्देनजर सैनेटरी नैपकिन डिस्ट्रीब्यूशन भी किया जा रहा है।

मौजूदा दौर में कोविड-19 के चलते पूरी दुनिया के सामने पारंपरिक जीवन और बदले जीवन में सामजंस्य बैठना भी बड़ी चुनौती है। भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी ने मौजूदा सूरतेहाल के मद्देनजर आत्मनिर्भर भारत का पैगाम दिया है जो देश की तस्वीर बदलने की कुव्वत रखता है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में भी शिक्षा की अहम भूमिका है। इससे न केवल महिलाओं के कौशल और क्षमताओं का विकास होगा, बल्कि विभिन्न अवसरों का लाभ उठाने समेत गरिमापूर्ण जीवन का आधार मजबूत होगा।


यह सही है कि  शिक्षा के क्षेत्र में गरीबी, स्थान, लिंग और जातीयता के आधार पर विषमता विश्वव्यापी है, लेकिन  विकासशील और अविकसित देशों में यह बड़ी समस्या है। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी लैंगिक विषमता है। भारत की जनगणना साल 2011 के मुताबिक देश में पुरुषों की साक्षरता दर 82.14 फीसदी है,जबकि महिलाओं की साक्षरता दर केवल 65.46 फीसद ही है। यह फर्क करीब 17 फीसद है। इसी प्रकार भारत की जनगणना साल 2011  के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की साक्षरता दर 50.6 फीसदी है जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 74.1 फीसद है। हाल में जारी एनएसएस रिपोर्ट 2017-18 के अनुसार महिला शिक्षा में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में राजस्थान सबसे टॉप पर है, जहां शिक्षा में जेंडर गैप लगभग 23.2 फीसदी है। उत्तर प्रदेश व बिहार का प्रदर्शन राजस्थान के मुकाबले बेहतर है। गौरतलब है कि यूनेस्को की साल 2016 में प्रकाशित एक यूआईएस रिपोर्ट के अनुसार सम्पन्न देशों के तीन चौथाई बच्चों की तुलना में निम्न आय वाले देशों के गरीब परिवारों के लगभग एक चौथाई बच्चे ही विद्यालयों में हैं।  

भारत में गुणवत्तायुक्त विद्यालयी शिक्षा प्रणाली के मद्देनजर बदलाव के संकट से जूझ रही है। विश्व विकास रिपोर्ट  साल 2018 के अनुसार ग्रामीण भारत में कक्षा 3 के करीब तीन-चौथाई छात्र तो दो अंकों की मायनस (बाकी) वाले सवाल हल नहीं कर सके। इसके अलावा 11 से 14 वर्ष की बालिकाएं विद्यालयों से निकाल लेने व पढ़ाई छुड़वा देने के मामले मे ज्यादा जोखिमपूर्ण हालत में हैं। 11 से 14 वर्ष की 4.1 फीसद भारतीय लड़कियां विद्यालय से बाहर हैं। एएसईआर-2018 के अनुसार राजस्थान में यह दर 7.4 फीसदी है।विद्यालयों में किशोरियों के लिए मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक सलाह एवं सहायता प्रदान करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। यदि हम गंभीरता पूर्वक शिक्षा में लैंगिक विषमता को दूर करना चाहते हैं तो विद्यालयी शिक्षा में बदलाव करने होंगे। बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने वाली नीतियां बनानी होंगी। सबसे पहली जरूरत स्नातक स्तर तक बालिकाओं के लिए नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान तथा विद्यालयी वातावरण व पाठ्यक्रम को जेंडर संवेदी बनाना है। बालिका शिक्षा को प्रभावित करने वाले सभी कारकों पर काम करके ही समाज में व्याप्त लैगिक विषमता से पार पायी जा सकती है और सही अर्थों में बालिका दिवस मनाने के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री आयरन लैडी इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर देश का कार्यभार संभाला था। इसलिए इस दिवस को नारी शक्ति के रूप में याद रखने के लिए प्रति वर्ष राष्ट्रीय बालिका दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 



डॉ.अनुपमा सोनी

(लेखिका बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की ब्रैंड एम्बेसेडर है।)

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