लोकतंत्र की मर्यादा

 लोकतंत्र की मर्यादा



लोकतंत्र जब तक मर्यादा में हो तभी तक वह देश और जनता के लिए लाभप्रद होता है किंतु यदि यही लोकतंत्र अमर्यादित हो जाए तो यह देश के लिए संकट भी पैदा कर सकता है। लोकतंत्र का मुख्य उद्देश्य है कि सरकारें जनता का शोषण न कर सकें और जनता के हितों के लिए कार्य करें। हमारे लोकतांत्रिक देश में सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने और अपनी मांगे मनवाने के लिए संविधान से जनता को अनेकों अधिकार प्राप्त हैं जिसके तहत वह आंदोलन और धरना आदि कर सकती है। किंतु जब राजनीतिक स्वार्थ और विदेशी ताकतों की साजिश के तहत सरकार के देश के हित में लिए गए सही फैसलों और सही नीतियों का विरोध करने के लिए इन अधिकारों का गलत प्रयोग होने लगे तो समझना चाहिए कि देश का लोकतंत्र गलत दिशा में जा रहा है जो पूरे देश के लिए गहरा संकट बन सकता है।
            क्यों आज हमारे देश में हर नए कानून, हर नई बात का विरोध आरंभ हो जाता है? हम किसी भी गंभीर समस्या का निदान करने के लिए हो हल्ला तो बहुत मचाते हैं पर जब उसमें सुधार करने की बारी आती है तो उसका विरोध करना शुरू कर देते हैं। हमारे देश के कुछ लोग वास्तव में इन समस्याओं का हल चाहते ही नहीं ताकि उन्हें सरकार और उसकी नीतियों पर आरोप लगाने का मौका मिलता रहे। हमारे देश में चाहे पार्लियामेंट की नई बिल्डिंग बननी हो, नये शस्त्र खरीदने हों, नये फाइटर जेट्स खरीदने हों, नई सड़कें बननी हों या नए बांध बनने हों इन सब का विरोध प्रारंभ हो जाता है। ऐसा लगता है कि विरोध करना ही हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है और यदि हम विरोध नहीं करेंगे तो हम लोकतांत्रिक देश की आजाद जनता नहीं रह जाएंगे।
           1947 में आजादी मिलने के बाद 1950 में लागू हुए संविधान में भारत को एक लोकतांत्रिक गणतंत्र घोषित किया गया था, यानी एक ऐसा देश, जहां जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन होता है।
          2300 वर्ष पूर्व ग्रीस की राजधानी एथेंस में भी ऐसी ही व्यवस्था थी।इसलिए एथेंस को लोकतंत्र का जन्म स्थल माना जाता है, किंतु एथेंस में इसके शुरुआती दौर में ही लोकतंत्र का स्वरूप इतना विकृत हो गया था कि लोकतंत्र और जनता के फैसले की आड़ में सुकरात जैसे दार्शनिक को मौत की सजा दे दी गई थी। उन पर युवाओं को भ्रष्ट करने का आरोप था और उनकी मौत की सजा पर उस देश की लोकतांत्रिक प्रजा ने ही मुहर लगाई थी‌, जिसके परिणाम स्वरूप सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा था। तब सुकरात ने इसे लोकतंत्र की बहुत बड़ी खामी बताया था।
          जब लोकतंत्र में जनता देश के बड़े-बड़े फैसले अपनी मर्जी के हिसाब से करवाना चाहे तो फिर बड़े-बड़े मुद्दों पर सख्त सुधारों की गुंजाइश ही नहीं बच पाती। जनता द्वारा सरकार को अपने हठ के आगे झुकाना ही क्याअसली लोकतंत्र है? कोई देश जनता के मूड से नहीं चल सकता। हमें यदि वोट डालने का अधिकार मिला है तो सरकार द्वारा देश हित में लिए गए  कड़े फैसलों का समर्थन करने की समझदारी भी दिखानी होगी। विरोधी पार्टियों का भी उद्देश्य सर्वप्रथम देशहित होना चाहिए न कि केवल सरकार और सरकार के फैसलों का विरोध करना।
        यदि हमारे देश में लोकतंत्र का स्वरूप विकृत होता चला गया तो इसका हश्र भी लोकतंत्र के जन्मदाता एथेंस जैसा ही होगा।एथेंस में जिस एरेना में लोकतांत्रिक फैसले लिए जाते थे उसे पार्थेनन कहा जाता है। इसे लोकतंत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। दुनिया के कई बड़े लोकतांत्रिक देशों के नेता यहां जाकर अपनी तस्वीरें खिंचवाते हैं। ग्रीस के दर्शन शास्त्र में लोकतंत्र की बहुत आलोचना की गई है। जिस एरेना से ग्रीस का लोकतंत्र चलाया जाता था वहां सिर्फ लुभावने भाषण दिए जाते थे, जिनका तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं था।
        बीसवीं सदी की शुरुआत में दुनिया में सिर्फ 11 लोकतांत्रिक देश थे। वर्ष 1920 में इनकी संख्या बढ़कर 20 हो गई 1974 में इनकी संख्या 74 हो गई। 2006 तक इनकी संख्या 86 तक पहुंच गई और अब वर्तमान में 5 लाख से ज्यादा आबादी वाले दुनिया के 167 देशों में से 57% यानी 96 देश खुद को लोकतांत्रिक देश बताते हैं। 21 देशों में किसी न किसी प्रकार की तानाशाही आज भी है,जबकि 28 देशों में लोकतंत्र और तानाशाही दोनों का मिश्रण है। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट डेमोक्रेसी इंडेक्स के मुताबिक दुनिया के केवल 20 देशों में ही सही मायने में लोकतंत्र है जबकि 55 देशों में लोकतंत्र तो है किंतु इन देशों के लोकतंत्र में बहुत सी खामियां हैं। खामियों वाले लोकतांत्रिक देशों में दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश भारत भी शामिल है।
         हम लोकतंत्र को तानाशाही के विपरीत अर्थ में नहीं ले सकते क्योंकि कई बार तानाशाह देशों में जनता सत्ता बदल डालती है और कई बार लोकतंत्र वाले देशों में भी नेता वर्षों तक सत्ता से चिपके रहते हैं, अर्थात तानाशाह देशों में भी तानाशाही शासकों का अंत करके भी सही लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो पाई है।
         96 लोकतांत्रिक देशों में ज्यादातर देशों की जनता अपने देश के लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं है। पिउ रिसर्च की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार मैक्सिको, ग्रीस, ब्राज़ील और स्पेन जैसे देशों की जनता की 80% से ज्यादा आबादी और अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देशों की 50% से ज्यादा आबादी अपने देशों के लोकतंत्र से असंतुष्ट है। भारत के 54% लोग ही अपने देश के लोकतंत्र से संतुष्ट थे।
         अधिकतर देशों में लोकतंत्र के नाम पर दी जाने वाली जरूरत से ज्यादा आजादी उस देश के लिए हानिकारक ही साबित हुई है। क्योंकि भारत जैसे बड़े देशों में इसकी आड़ में बात-बात पर आंदोलन और बंद किए जाते हैं। जिनके कारण देश हित में कड़े कानून बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है और राजनीतिक स्वार्थों के चलते सरकार के हर कदम, हर फैसले का विरोध और केवल विरोध ही किया जाता है।
         ग्रीस के दर्शन शास्त्री प्लेटो के अनुसार दुनिया में पांच प्रकार की शासन व्यवस्थायें पाई जाती हैं। जिनमें पहले प्रकार की शासन व्यवस्था एरेस्ट्रोकेसी है। जिसमें एक दार्शनिक राजा शासन चलाता है और फैसला लेने का हक लोगों की योग्यता पर आधारित होता है।इसमें भीड़ फैसला नहीं लेती बल्कि पढ़े-लिखे अनुभवी व समझदार व्यक्ति फैसला लेते हैं। दूसरी शासन व्यवस्था टाइमोक्रेसी का जन्म एरेस्ट्रोकेसी का स्वरूप बिगड़ने पर होता है। इसमें सत्ता में बैठे लोग ताकत के भूखे होते हैं और इसके शासक हर समय युद्ध के लिए तैयार रहते हैं। इस व्यवस्था का भी स्वरूप बिगड़ने पर ओलिगार्की व्यवस्था का जन्म होता है। इसमें पैसा ही नेताओं के लिए सब कुछ होता है और इसी आधार पर वे फैसले लेते हैं जिससे उनकी संपत्ति में वृद्धि हो। उसके बाद लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का नंबर आता है,जहां स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा महत्व होता है, किंतु यही आजादी मानसिक गुलामी बन जाती है और आजादी के नाम पर लोग कानून तोड़ने लगते हैं जिससे स्थितियां अराजक हो जाती हैं और अंत में निरंकुश शासन व्यवस्था का स्वरूप सामने आता है। इसमें पहले तो शासक लोगों को उनके अधिकार दिलाने का वादा करता है फिर तानाशाह में बदल जाता है।
        संविधान का पूर्णतया पालन करके लोकतंत्र को निरंकुश होने से बचाया जा सकता है। सत्ता के भूखे नेता लोकतंत्र का दुरुपयोग कर देश को पतन के गर्त में ढकेलें, इससे पूर्व हमें सजग होकर इनकी साजिशों को समझने और उनसे दूर रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा हमें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का कब और कितना इस्तेमाल करना है यह भी हम जनता को ही समझदारी पूर्वक समझने की आवश्यकता है।

रंजना मिश्रा ©️®️
कानपुर, उत्तर प्रदेश

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