चक्रव्यूह में गहलोत सरकार

                चक्रव्यूह में गहलोत सरकार



           अमित शाह उनियारा नहीं गए क्योंकि ...ॽ 

               पत्रकारों में कहीं सावन कहीं सूखा


                               * (अशोक शर्मा) *

 

पूरे राजस्थान में चुनावी घमासान चरम पर है। हर कोई हर किसी को पटखनी देने की चालें चल रहा है।राजस्थान में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। भाजपा के शीर्ष नेता पीएम मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, नितिन गडकरी, जे पी नड्डा, योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर, हेमंत बिस्वा और भी कई भाजपा के योद्धाओं ने राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार को अपने चक्रव्यूह में घेर लिया है। इधर कांग्रेस से राहुल गांधी, कांग्रेस हाईकमान खड़गे, प्रियंका वाड्रा, जयराम रमेश, राज बब्बर, सुरजीत सिंह रंधावा अशोक गहलोत की रक्षार्थ राजस्थान में आ चुके हैं। और परदे के पीछे सोनिया गांधी भी।राजनीतिक युद्ध के जितने हथियार काम में लिये जा सकते हैं, लिये जा रहे हैं। चरित्र हनन से लेकर भद्दी से भद्दी जुबान का इस्तेमाल तक। अब बस शीर्ष लीडरों द्वारा मां-बहन की गालियां बकना ही शेष रह गया है, क्योंकि जो भद्दी से भद्दी जुबान बोल रहा है वह आगे चल कर मां -बहन की गालियां भी दे सकता है। यद्यपि छुटभैय्ए नेताओं ने तो मंच पर से यह शुरू कर ही दिया है।

* जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार सत्य पारीक ने तो अपने कल के वीडियो रिपोर्ट में यहां तक कह दिया कि ऐसा लगता है कि मोदी जी का भाषण लिखने वाले गांजे के नशे में चूर रहते हैं। ( सत्य कहा सत्य पारीक जी ने, क्योंकि जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है वह कोई पिन्नक में ही लिख सकता है, होशोहवास में नहीं। लेकिन हल्की मेंटालिटी के लोगों का कोई भरोसा नहीं, वे बिना नशे में रह कर भी यह सब लिख सकते हैं। लेकिन यहां बोलने वाले को भी ध्यान रखना चाहिए कि वह क्या बोल रहा है। इससे उसकी ही छवि खराब होती है। लेकिन उसे अपनी छवि की परवाह नहीं हो तो बात अलग है। )

* जहां एक ओर भाजपा सिर्फ गहलोत सरकार की खामियां गिना रही है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में राहुल गांधी सिर्फ अडानी को लेकर आक्रामक हैं जो ठीक नहीं। यह राजस्थान कांग्रेस के लिए नुकसानदेह है। ऐसा लगता है कि जैसे राहुल के पास और कोई ठोस मुद्दा है ही नहीं। दो साल पहले जब अडानी राजस्थान में उद्योग लगाने वाले थे तब तो राहुल ने उनकी तारीफ़ की थी। फिर अब क्या हो गया ॽ कल उनियारा में बीजेपी की सभा होनी थी। वहां अमित शाह आने वाले थे लेकिन नहीं आए क्योंकि आने से पहले उन्होंने पता किया कि वहां भीड कितनी है। ज्ञात हुआ कि कुर्सियां खाली पडी हैं तो अमित शाह ने उनियारा का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया। ये है राजनीति। इन्हें भीड देखनी है, बस। घोर आश्चर्य कि यह खबर किसी समाचार पत्र ने नहीं छापी।

* लेकिन कुछ भी हो, इस युद्ध में अखबारों की पौ-बारह है। चारों उंगलियां घी में। चुनाव आयोग के निर्देश के बावजूद प्रतिदिन लाखों रुपयों के विज्ञापन अखबारों में छप रहे हैं और वे अभी से नहीं बल्कि पिछले एक महीने से। चूंकि भाजपा केन्द्र में सत्ता में है इसलिए उसका भरपूर फायदा उठा रही है। चुनाव आयोग की ऐसी-तैसी। चुनाव लडने के लिए जितनी रकम उसने निर्धारित की, ख़र्च उससे कई गुना ज्यादा हो चुका है। लेकिन वह भी क्या करे। वह टी एन शेषन तो हैं नहीं। अब जो चुनाव आयोग है मौजूदा माहौल को देखते हुए लगता है वह केन्द्र की कठपुतली है। समाचार-पत्रों में खबरों की जगह उम्मीदवारों के गुणगान छप रहे हैं। आम जनहित की खबरें जाएं भाड़ में।

* दीवाली पर लोग भले ही किसी के घर नहीं जाते हों क्योंकि अब यह रिवाज़ वाट्सएप तक सीमित रह गया है। लेकिन चुनाव में लपक-लपक कर घर-घर सिजदा कर रहे हैं क्योंकि इस बहाने अपना राजनीतिक कद बढाने की जुगत भी हो जाती है और खर्चा-पानी का हिसाब भी चक मजे से बैठ जाता है। पूरे राजस्थान में इस मौके पर अनेक पत्रकार " खर्चा-पानी के सावन " में जम कर स्नान कर रहे हैं तो दूसरी ओर कुछ ऐसे पत्रकार भी हैं जिनके चेहरे सूखे पड़े हैं क्योंकि वे छोटे अखबारों से हैं और छोटे अखबार वालों को बडी पार्टी के उम्मीदवार ज्यादा भाव नहीं दे रहे। प्रेस कॉन्फ्रेंस भी शहर से दस-दस किलोमीटर दूर स्थित अपने आफिसों में ले रहे हैं जहां छोटे अखबार वालों को अपने पेट्रोल खर्च पर पहुंचना पड रहा है जबकि बडे अखबार वालों को उनके मालिक पेट्रोल अलाउंस अलग से दे रहे हैं तो दूसरी ओर उम्मीदवार भी उनके मलाईदार खर्चा-पानी का पूरा ध्यान रख रहे हैं। इस मौके पर कई पत्रकार जम कर अपनी चवन्नी भी चला रहे हैं और तबीयत से चांदी भी कूट रहे हैं। न केवल शहरों में बल्कि गांवों में भी इनके भरपूर मजे हैं।

* कुछ पत्रकारों ने इस आड में राजस्थान भर में एक नया धंधा शुरू कर दिया है कि उम्मीदवारों को पटा कर जहां वे रहते हैं, वहां के तमाम वोट दिलाने का ठोस आश्वासन देने के नाम पर कुछ रकम वसूल रहे हैं और मजेदार बात यह कि उम्मीदवार उन्हें राजी-राजी दे भी रहे हैं। पता चला कि एक पत्रकार ने पत्रकार कालोनी के सभी वोट दिलाने के नाम पर यह सौदा कर लिया कि वहां जाने की जरूरत नहीं, वहां के सारे वोट मेरे इशारे पर आपको मिलेंगे। ( जैसे कि कोलोनी इनकी मुट्ठी में है और वहां रहने वाले सब उसके गुलाम हैं जबकि हकीकत यह है कि जनाब को यहां कोई धेला भर नहीं पूछता। ) पता नही लोग चवन्नागिरी करने से बाज क्यों नहीं आते। इधर अजमेर में एक शिकायत सोशल मीडिया पर वायरल हुई है जिसमें आरोप लगाया कि अजमेर उत्तर के भाजपा प्रत्याशी विज्ञापनों के मामले में छोटे पत्रकारों को कोई तवज्जोह नहीं दे रहे। दूसरी ओर धर्मेन्द्र राठौड़ जो पहले अजमेर उत्तर से कांग्रेस प्रत्याशी बनाए जाने वाले थे लेकिन नहीं बन पाए। अब सोशल मीडिया पर उनके लिए आ रहा है कि वे 15 अक्टूबर से लापता हैं। अब तक वे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं आखिर क्यों ॽ लेकिन वे भी क्या करें, टिकट कैंसिल होने के बाद इर्द-गिर्द मंडराने वाले सभी इधर-उधर हो गए। क्योंकि अब उनसे कोई फायदा नहीं होने वाला।

* इस बार चुनाव में सोशल मीडिया पर उम्मीदवारों के समर्थकों द्वारा वार-पलटवार भी जम कर किया जा रहा है। कोई लिख रहा है कि धर्म के नाम पर वोट क्यों मांगते हो, धर्म के नाम पर तो लोग मंदिर के बाहर भीख मांगते हैं। कोई लिख भेज रहा है कि जब अपनों में गद्दार और चाल चलने वाले पैदा हो जाएं तो मैदान में खडा शेर भी कुत्तों से हार जाता है। ( बात में दम है। जिसने भी यह लिखा है वह बधाई का पात्र है। ) महाभारत के चक्रव्यूह में सात द्वार थे और अब दिन बचे हैं सात। देखें किसे क्या मिलता है।

   * (अशोक शर्मा) * लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं,वे अपनी बेबाक लेखनी के लिए जाने जाते हैं।

  मोबाइल - 7726800355

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