जानिए वर्ष 2020 में बनने वाले गुरु पुष्य योग और रवि पुष्य योग की शुभ दिन और शुभ मुहूर्त को


गुरू पुष्य योग एवम रवि पुष्य योग एक बहुत ही विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण योग माना जाता है। इसीलिए वैदिक ज्योतिष में इस योग की बहुत महत्ता है। 


इस योग के समय किए गए कार्यों में सफलता एवं शुभता की संभावना में वृद्धि होती है। इसके साथ ही व्यक्ति को सकारात्मक फलों की प्राप्ति होती है।


गुरु पुष्य नक्षत्र में विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य किया जा सकता है। माता पार्वती के श्राप के कारण पुष्य नक्षत्र में विवाह करना अशुभ माना गया है, इसलिए विवाह आदि के कामों पर रोक लग जाती है। 


इसके अलावा अगर आप कोई काम करना चाहे तो रात्रि 08:29 के बाद कर सकते हैं, किंतु शादी-विवाह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते हैं। हालांकि अनुष्ठान, तंत्र प्रयोग या फिर अध्ययन से संबंधित कोई भी कार्य आज मध्य रात्रि में कर सकते हैं। 


पंडित दयानन्द शास्त्री जी बताते है कि आप गुरु पुष्य नक्षत्र मंत्र दीक्षा, उच्च शिक्षा ग्रहण, भूमि, क्रय-विक्रय आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना, यज्ञ अनुष्ठान और वेद पाठ आरंभ करना, गुरु धारण करना, पुस्तक दान करना और विद्या दान करना और विदेश यात्रा आरंभ करने के लिए सबसे श्रेष्ठ होता है। 


प्रिय पाठकों/मित्रों, जिस प्रकार शेर समस्त जानवरों का राजा होता है, ठीक उसी प्रकार गुरु पुष्य योग भी सभी योगों में प्रधान माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस शुभ योग में किए गए कार्य सफल होते हैं। इसलिए लोग गुरु पुष्य योग में अपने नए कार्य का श्रीगणेश करना शुभ मानते हैं। वे इस अवसर पर अपना नए व्यापार का आरंभ, नई प्रॉपर्टी अथवा नया वाहन आदि ख़रीदते हैं।


ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार वैसे तो चंद्रमा का राशि के चौथे, आठवें एवं 12वें भाव में उपस्थित होना अशुभ माना जाता है। परंतु यह पुष्य नक्षत्र की ही अनुकंपा है जो अशुभ घड़ी को भी शुभ घड़ी में परिवर्तित कर देती है। इसी कारण 27 नक्षत्रों में इसे शुभ नक्षत्र माना गया है।


पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि पुष्य नक्षत्र में धन व वैभव की देवी लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था। जब पुष्य नक्षत्र गुरुवार एवं रविवार के दिन पड़ता है तो क्रमशः इसे गुरु पुष्यामृत योग और रवि पुष्यामृत योग कहते हैं। ये दोनों योग धनतेरस, चैत्र प्रतिपदा के समान ही शुभ हैं।


ग्रहों की विपरीत दशा से बावजूद भी यह योग बेहद शक्तिशाली है। इसके प्रभाव में आकर सभी बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं, परंतु ऐसा कहते हैं कि इस योग में विवाह जैसा शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। शास्त्रो में उल्लेखित है कि एक श्राप के अनुसार इस दिन किया हुआ विवाह कभी भी सुखकारक नहीं हो सकता |
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जानिए कैसे बनता है गुरु पुष्य योग--
इस योग में गुरु का संयोग होने पर पुष्य नक्षत्र के साथ होने पर ही निर्माण होता है। जिस दिन बृहस्पतिवार हो और उस दिन पुष्य नक्षत्र भी हो तो इन दोनों का संयोग गुरूपुष्य संयोग बनता है।
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जानिए क्या होता है रवि पुष्य योग--
इसी प्रकार जिस दिन रविवार हो और पुष्य नक्षत्र हो रवि पुष्य योग कहलाता है. इन योगों द्वारा व्यक्ति को उसके कार्यों में सफलता प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
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समझें पुष्य नक्षत्र का महत्व को--


पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों में श्रेष्ठ माना जाता है. वहीं पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों में राजा की उपाधि दी गई है। 
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी बताते हरण की पुष्य नक्षत्र में प्रारंभ किए गए कार्यों का फल बहुत उत्तम प्राप्त होता है। पुष्य नक्षत्र स्थायी होता है अत: इसके समय किए गए कार्यों में स्थायित्व का भाव मौजूद होता है। इस कारण से यदि आपको कुछ ऎसे काम करने हैं जिनमें आप जल्द से बदलाव की इच्छा न रखते हों ओर उसकी स्थिरता की चाह रखते हों तो यह नक्षत्र में करना बेहतर होता है।पुष्य नक्षत्र का दशा स्वामी शनि होने से इस नक्षत्र के दरमियान घर में आयी संपत्ति या समृद्धि चिरस्थायी रहती है। 


पुष्य नक्षत्र में किए गए कामों को हमेशा सफलता व सिद्धि मिलती है। इसलिए, विवाह को छोड़कर हर एक कार्यों के लिए पुष्य नक्षत्र को शुभ माना जाता है। दिवाली के दिनों में चोपड़ा खरीदने के लिए व्यापारीगण पुष्य नक्षत्र को विशेष महत्व देते हैं। इसके अलावा, वर्ष के दौरान भी पुष्य नक्षत्र में जब गुरु पुष्यामृत योग बन रहा हो तब सोने, आभूषण और रत्नों को खरीदने की प्रथा सदियों से प्रचलित है। 


इसके साथ ही गुरू(बृहस्पति) को ग्रहों में मंत्री एवं गुरु का स्थान प्राप्त है। इसके साथ ही गुरू की दृष्टि को गंगाजल के समान पवित्र भी माना गया है। गुरु का सानिध्य पाकर कोई भी पवित्रता एवं शुभता को प्राप्त कर जाता है। वहीं सूर्य को राजा का स्थान प्राप्त है। ऎसे में इन दोनों का एक साथ होना सोने पर सुहागा जैसी स्थिति को साकार करने वाला होता है।
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समझें गुरु पुष्य योग में किए जाने वाले कार्य--
यह योग किसी नए कार्य की शुरूआत करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।


यात्रा का आरंभ करना,
विद्या ग्रहण करना, या किसी नए शिक्षण संस्थान में प्रवेश लेना.
गुरू से मंत्र शिक्षा पाना और आध्यात्मिक उन्नती हेतु यह समय अनुकूल होता है।
धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी इस योग का चयन श्रेष्ठ माना जाता है.
साथ ही राजकीय कार्यों में सफलता दिलाने में सहायक बनता है नेतृत्व की संभावना को बढा़ता है।
गुरु पुष्य योग को एक उत्तम योग माना जाता है किंतु इस स्थिति के अतिरिक्त भी कुछ अन्य बातों पर भी विचार देने की बहुत आवश्यक होती है। इस योग को अपनाने से पूर्व चंद्रबल पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। चंद्रमा का कमजोर नहीं होना चाहिए. साथ ही गुरु शुक्र ग्रहों का अस्त होना, ग्रहण काल, श्राद्ध पक्ष इत्यादि पर भी हमें ध्यान देने के उपरांत ही इस योग को ग्रहण करना लाभदायक बनता है।


पुष्य नक्षत्र के देवता- गुरु, 
नक्षत्र स्वामी- शनि, 
आराध्य वृक्ष- पीपल, 
नक्षत्र प्राणी- बकरी तथा तत्व अग्नि हैं। 


वैदिक ज्योतिष के अनुसार देवगुरु बृहस्पति का पुष्य नक्षत्र में आने से यह समय अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभकारक नक्षत्र कहा जाता है। पुष्य का अर्थ होता है कि पोषण करने वाला और ऊर्जा-शक्ति प्रदान करने वाला नक्षत्र। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति हमेशा ही लोगों की भलाई व सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक अपनी मेहनत और साहस के बल पर जिंदगी में तरक्की प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर संपत्ति और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। जब भी गुरुवार अथवा रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र आता है तो इस योग को क्रमशः गुरु पुष्य नक्षत्र और रवि पुष्य नक्षत्र के रूप में जाना जाता है। यह योग अक्षय तृतीया, धन तेरस, और दिवाली जैसी धार्मिक तिथियों की भांति ही शुभ होता है। कहते हैं कि इस दिन माँ लक्ष्मी घर में बसती है और वहां एक लंबे समय तक विराजती है इसीलिए, इस यह घड़ी पावन कहलाती है। पुष्य नक्षत्र का स्वभाव फलप्रदायी और ध्यान रखने वाला है। पुष्य नक्षत्र के दौरान किए जाने वाले कार्यों से जीवन में समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन ग्रहों के अनुकूल स्थितियों में भ्रमण कर रहे होने से वे आपके जीवन में शांति, संपत्ति और स्थायी समृद्धि लेकर आते हैं। 
 
इस नक्षत्र में पूजन-अर्चन और मंत्र जाप करने से जीवन के सभी कष्ट, संकट दूर होते हैं। इस दिन देवगुरु बृहस्पति का पूजन और नीचे दिए गए मंत्रों का जाप करने से सारे काम सफल हो जाते हैं और इसका शुभ फल चिरस्थायी रूप से प्राप्त होता है।
नक्षत्र में गुरु उच्च का होता है। देवों के आशीर्वाद से पुरस्कृत इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति और दशा स्वामी शनि हैं। कर्क राशि के अंतर्गत समाविष्ट होने से इस नक्षत्र के राशिधिपति चंद्र हैं। इस प्रकार से गुरु व चंद्र के शुभ संयोग इस नक्षत्र में होने से किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ माना जाता है। 
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार वेदों में वर्णित पुष्य नक्षत्र के पौराणिक मंत्र निम्नानुसार हैं -
 
पौराणिक मंत्र : वंदे बृहस्पतिं पुष्यदेवता मानुशाकृतिम्। सर्वाभरण संपन्नं देवमंत्रेण मादरात्।।
 
वेद मंत्र : ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु।
यददीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम।
 
पुष्य नक्षत्र का नाम मंत्र : ॐ पुष्याय नम:।
 
नक्षत्र देवता के नाम का मंत्र : ॐ बृहस्पतये नम:।
 
पीपल वृक्ष का मंत्र : --
आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं शरणं गत:।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।
अश्वत्थ ह्युतझुग्वास गोविन्दस्य सदाप्रिय
अशेषं हर मे पापं वृक्षराज नमोस्तुते।। 
 
जीवन की तमाम परेशानियों, संकट, रोग व दरिद्रता से बचने के लिए पीपल की पूजा और ऊपर बताए मंत्रों के उपाय करने से जीवन में सबकुछ शुभ ही शुभ घटि‍त होता है। 
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जाने और समझें वर्ष 2020 में बनने वाले गुरु पुष्य योग और रवि पुष्य योग की तिथियां को--
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यह रहेगी गुरु पुष्य योग तिथियाँ वर्ष 2020 में --
प्रारंभ काल-- समाप्तिकाल---


दिनाँक -- समय (घं. मि.) --दिनाँक समय (घं. मि.)


2 अप्रैल 19:28 3 अप्रैल सूर्योदयकाल...


30 अप्रैल सूर्योदयकाल सूर्योदय काल 25:53...
28 मई सूर्योदय काल 28 मई 07:27..
31 दिसंबर 19:49 से 1 जनवरी 2021 के सूर्योदय काल तक...
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यह रहेगी रवि पुष्य योग की शुभ तिथियां वर्ष 2020 में--


प्रारंभ काल -  समाप्तिकाल --
दिनाँक -- समय (घं. मि.) दिनाँक समय (घं. मि.)--
12 जनवरी सूर्योदय काल 12 जनवरी 11:50..
13 सितंबर 16:34 14 सितंबर सूर्योदय काल..
11 अक्टूबर सूर्योदय काल 11 अक्टूबर 25:19..
8 नवम्बर सूर्योदय काल 8 नवम्बर 08:45...


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