टॉलरेन्स शब्द भारत का नहीं, हम किसी को बर्दाश्त नहीं करते, बल्कि स्वीकार करके दिल से लगाते हैं: प्रसून जोशी


जयपुर. लेखक प्रसून जोशी ने गुरुवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) में कहा है कि मुझे टॉलरेन्स शब्द से बड़ी प्रॉब्लम है। इसका मतलब है, बर्दाशत करना। यह हमारे देश का शब्द नहीं है। हममे तो एक्सेपटेंस है। हम बर्दाश्त नहीं करते, एक्सेपट करते हैं। हम हर किसी को स्वीकार करते हैं, उसे दिल से लगाते हैं। उन्होंने कहा- हमारे देश की भाषा इस तरह की है। यहां टॉलरेन्स शब्द का इस्तेमाल मत करिए। उन्होंने यह बात जेएलएफ2020 के पहले दिन वाणी त्रिपाठी के साथ कई मुद्दों पर चर्चा में कही।


डाइवर्सिटी का मतलब गलत समझा जा रहाः प्रसन जोशी ने कहा- डाइवर्सिटी का मतलब भी गलत समझा जाने लगा है। बांसुरी को अगर आप ढोल के साथ बजवाएंगे, तो बांसुरी सुनाई ही नहीं देगी। अगर आपको सही में बांसुरी सुननी है, तो उसे लेकर थोड़ी दूर जाकर चट्टान पर बैठना होगा। हवामी बांसुरी की आवाज ढोल के शोर में खो न जाए, यह ध्यान हमें ही रखना पड़ेगा। उन्होंने कहा- डाइवर्सिटी का मतलब क्या है। डाइवर्सिटी का मतलब है आपको आपकी तरह ही रहने दूं और फिर आपको स्वीकार करूं। अपनी सुविधा के अनुसार दूसरों को पेश करना डाइवर्सिटी नहीं है। अगर मैंने आपको अपने मसाले के तौर पर पेश किया है, तो ये दादागीरी है। पर्सनल अटैक गलत, असहमति की गरिमा जरूरीः प्रसून जोशी ने कहा- मुझे ऐसे बहुत कम लोग मिले, जो इस बात को नहीं मानते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के लिए सोचते हैं। मोदी अपने लिए नहीं सोचते हैं। यही कारण है कि उनके लिए फकीर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। वो अपनी पर्सनल इच्छाओं से दूर हैं और देश के लिए समर्पित हैं।


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