यशपाल शर्मा की फिल्म मूसो हुई प्रदर्शित 






























* ऋतुराज सिंह की फिल्म पेनफुल प्राइड हुई प्रदर्शित। 


* अनंत महादेवन की फिल्म माई घाट हुई प्रदर्शित  


* आख़री दिन अनूप सोनी रहेंगे मौजूद। 

































राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के चौथे दिन की शुरुआत शानदार रही, पहला सेशन रहा 'फिल्म, टेलीविज़न और सिनेमा' जिसमें बातचीत के लिए उपस्थित रहे अनंत महादेवन और मॉडरेट कर रही थीं फेस्टिवल डायरेक्टर अंशु हर्ष।

 

अंशु हर्ष ने सबसे पहले स्टूडेंट्स को राय देने के लिए कहा तो अनंत ने कहा मैं भी अभी स्टूडेंट ही हूँ, और आपसे भी सीख रहा हूँ। आगे उन्होंने कहा शुरुआत में आपको अगर रिजेक्ट किया जाये तो आप उसे रिजेक्शन मत समझिये। जैसे एथलीट के लिए दौड़ना ज़रूरी है वैसे ही एक फिल्मकार के लिए  रंगममच ज़रूरी है। 

 

अपनी खलनायक वाली भूमिका के बारे में बात करते हुए अनंत ने बताया कि उसका पूरा श्रेय अब्बास मस्तान को जाता है।

 

अंशु हर्ष के सवाल कि 'क्या आपसे कोई रोल छूट गया है या आपका ड्रीम रोल क्या है' पर अनंत ने कहा कि ड्रीम रोल बहुत मुश्किल से आता है। उसके लिए आपको निरंतर काम करते रहना पड़ता है। लेकिन आप अगर वाकई में किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से पाने की कोशिश करते हैं तो वह आपको ज़रूर मिलती है।


 

क्या आपने अपना ड्रीम रोल ख़ुद की फिल्मों में ट्राई करने का सोचा, अंशु के इस सवाल पर अनंत ने कहा कि मैं ख़ुद के लिए अपनी फिल्मों में कोई रोल नहीं रखना चाहता क्योंकि उस समय मेरे सुधार की गुंजाइश कम रहेगी।

 

छात्रों को राय देते हुए उन्होंने कहा कि जो फिल्में बहुत पॉपुलर हैं, उनको आप अपनी मैमरी से डिलीट कर दें। आपको अलग-अलग भाषाओं का सिनेमा देखना ही चाहिए, और कहानी व अपनी सोच पर काम करना चाहिए।

 

बजट के लिए निर्माताओं को कैसे मनाते हैं जब किसी ने यह सवाल किया तो अनंत ने जवाब दिया कि जब आप फिल्म प्रोड्यूसर के पास जाते हैं तो बजट से पहले आपके विजन को देखा जाता है।

 

 


राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के चौथे दिन का दूसरा सेशन रहा 'Division between Bollywood, Hollywood and regional cinema' जिसमें बातचीत के लिए मौजूद रहे यशपाल शर्मा, स्वेता पड्डा, दीपांकर, आविष्कार, और गुलाब सिंह। सेशन को मॉडरेट कर रहे थे अजीत रॉय।

 

अजीत रॉय के सवाल पर गुलाब सिंह ने कहा कि इंटरनेट का फिल्मों पर बहुत प्रभाव पड़ा है, अब हम किसी भी देश का सिनेमा बहुत आसानी से देख सकते हैं। आज फिल्में बनाना पहले से चैलेंजिंग हुआ है क्योंकि अब छोटे बच्चे भी इंटरनेट की उपलब्धता की वजह से कमी निकाल सकते हैं।

 

दीपांकर ने वेस्टर्न सिनेमा से भारतीय सिनेमा की तुलना पर कहा कि हमें फिल्मों को वहाँ से एडॉप्ट करने की बजाय अपनी कहानी ख़ुद कहनी चाहिये, और अगर हम किसी कहानी को एडॉप्ट कर भी रहे हैं तो उसे इस तरह फिल्माया जाना चाहिये कि वह बिल्कुल नया लगे। उसपर किसी भी चीज़ का प्रभाव ना दिखे।

 

यशपाल शर्मा ने बात करते हुए कहा कि अच्छे सिनेमा की हालात हमारे देश में बहुत ख़राब है। अच्छी फिल्मों को उचित मात्रा में स्क्रीन ना मिलना एक बहुत बड़ी त्रासदी है। रीजनल सिनेमा पर बात करते हुए यशपाल ने बताया कि  रीजनल सिनेमा में 90 पर्सेंट काम अच्छा हो रहा है जबकि बॉलीवुड में 30 पर्सेंट।

 

स्वेता पड्डा ने अपने तीन साल से के अनुभवों से बताया कि भारतीयों में भी अच्छी फिल्में बनाने की क्षमता है, आज भी कॉन्स जैसे बड़े फिल्म फेस्टिवल्स में सत्यजीत रे की वजह से भारतीय सिनेमा को लोग जानते हैं।

 

युवा डायरेक्टर अविष्कार ने कहा जो कहानी दिल को छूती है, वह चल जाती है। सिनेमा को सरहदें और भाषाएँ  प्रभावित नहीं कर सकती हैं। आर्ट हर सरहद तोड़कर देखने, सुनने की चीज़ है।


 



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