अनादि अनंत है शिवलिंग की महिमा-महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी श्री प्रज्ञानानंद गिरि


शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरूप। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कंद पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो, उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्मांड (ब्रह्मांड गतिमान है) का अक्ष/धुरी ही लिंग है। शिव का अर्थ है, कल्याणकारी। लिंग का अर्थ है सृजन। सर्जनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री)का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है।



उक्त अमृतवचन शिव महापुराण कथा के चतुर्थ दिवस में परम श्रद्धेय महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रज्ञानानंद गिरि जी महाराज जी ने शिव मंदिर, (मोहगांव सड़क) कुरई (जिला-सिवनी) में व्यक्त किए। पूज्य आचार्य जी ने कहा कि हमारा भगवान से नित्य एवं सनातन संबंध है। जबकि संसार के सारे संबंध मान्यताओं पर आधारित हैं। माने हुए संबंध एक दिन टूट जाएंगे पर प्रभु से हमारे संबंध सदैव एवं अटूट रहेंगे। अपने को कभी अकेला नहीं अनुभव करना चाहिए। याद रखें ईश्वर सदैव आपके साथ है।
ब्रह्मांड में दो ही चीजे हैं, ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है। ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। स्कंद पुराण में लिंग का अर्थ लय लगाया गया है। लय (प्रलय)के समय अग्नि में सब भस्म हो कर शिवलिंग में समा जाता है और सृष्टि के आदि में लिंग से सब प्रकट होता है। लिंग के मूल में ब्रह्मा मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं। देवी, महादेवी और लिंग महादेव हैं। अकेले लिंग की पूजा से सभी की पूजा हो जाती है।
परम ब्रह्म परमेश्वर भगवान शिव ने सृष्टि की रचना के पूर्व शक्ति की रचना की शिव और शक्ति में प्रकृति को संचालित किया है। संसार का अंतिम सत्य मृत्यु अर्थात मोक्ष है जो बिना शिव की आराधना के संभव नहीं है। ब्रह्मा द्वारा रचित सृष्टि और विष्णु द्वारा पोषित होने वाली इस सृष्टि में संपूर्ण प्राणी प्रकृति के अधीन हैं, किंतु प्रकृति शिव के अधीन है।


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