‘जीवन में सबसे अनमोल रत्न है मधुर वाणी’ - स्वामी श्री प्रज्ञानानंद गिरि महाराज
ग्राम रनवेली(जाम) ग्राम समिति के तत्वाधान में 4 से 10 फरवरी 2020 तक प्रतिदिन , रनवेली(जाम) जिला-सिवनी (मध्यप्रदेश) में पूज्य निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रज्ञानानंद गिरि जी महाराज जी के मुखारबिंद से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।
श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस पर महाराज श्री ने भागवत कथा के महात्यम का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
कथा के प्रथम दिवस पर हजारों की संख्या में भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया। प्रथम दिवस की कथा के आयोजन के आरंभ में पूज्य आचार्य जी का भव्य भावपूर्ण अगुवानी की गयी,अकल्पनीय शोभायात्रा निकाली गई।
पूज्य निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रज्ञानानंद गिरि जी महाराज जी ने कथा की शुरूआत भागवत के प्रथम श्लोक सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवे। तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम: के उच्चारण के साथ की।
पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि इस संसार में भगवान कृष्ण ही सृष्टि का सृजन, पालन और संहार सब वहीं करते हैं। भगवान के चरणों में जितना समय बीत जाए उतना अच्छा है। इस संसार में एक-एक पल बहुत कीमती है। वो बीत गया तो बीत गया। इसलिए जीवन को व्यर्थ में बर्बाद नहीं करना चाहिए। भगवान के द्वारा प्रदान किए गए जीवन को भगवान के साथ और भगवान के सत्संग में ही व्यतीत करनी चाहिए। भागवत प्रश्न से प्रारंभ होती है और पहला ही प्रश्न है कि कलयुग के प्राणी का कल्याण कैसे होगा। इसमें सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की चर्चा ही नहीं की गई है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि बार बार कलयुग के ही कल्याण की चर्चा क्यों की जाती है अन्य किसी की क्यों नहीं। इसके कई कारण हैं जैसे- अल्प आयु, भाग्यहीन और रोगी। इसलिए इस संसार में जो भगवान का भजन ना कर सके, वो सबसे बड़ा भाग्यहीन है। भगवान इस धरती पर बार-बार इसलिए आते हैं ताकि हम कलयुग में उनकी कथाओं में आनंद ले सकें और कथाओं के माध्यम से अपना चित्त शुद्ध कर सकें। भागवत कथा चुंबक की भांति कार्य करती है जो मनुष्य के मन को अपनी ओर खींचती है। इसके माध्यम से हमारा मन भगवान से लग जाता है।
पूज्य निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रज्ञानानंद गिरि जी महाराज जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि भागवत का महात्यम क्या है? एक बार सनकादिक ऋषि और सूद जी महाराज विराजमान थे। उन्होंने ये प्रश्न किया कि कलयुग के लोगों का कल्याण कैसे होगा? आप देखिये किसी भी पुराण में किसी और युग के लोगो की चिंता नहीं की, पर कलयुग के लोगों के कल्याण की चिंता हर पुराण और वेद में की गई कारण क्या है? क्योंकि कलयुग का प्राणी अपने कल्याण के मार्ग को भूलकर केवल अपने मन की ही करता है जो उसके मन को भाये वह बस वही कार्य करता है और फिर कलयुग के मानव की आयु कम है और शास्त्र ज्यादा है तो फिर एक कल्याण का मार्ग बताया भागवत कथा। श्रीमद भागवत कथा सुनने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है महाराज श्री ने कहा कि व्यास जी ने जब इस भगवत प्राप्ति का ग्रंथ लिखा, तब भागवत नाम दिया गया। बाद में इसे श्रीमद् भागवत नाम दिया गया। इस श्रीमद् शब्द के पीछे एक बड़ा मर्म छुपा हुआ है जब धन का अहंकार हो जाए, तो भागवत सुन लो, अहंकार दूर हो जाएगा।
व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भगवत की कथा सुनना चाहिए। केवल सुनो ही नहीं बल्कि भागवत की मानों भी। माँ-बाप, गुरु की सुनो तो उनकी मानो भी तो आपके कर्म श्रेष्ठ होंगे और जब कर्म श्रेष्ठ होंगे, तो आप को संसार की कोई भी वस्तु कभी दुखी नहीं कर पायेगी। और जब आप को संसार की किसी बात का फर्क पड़ना बंद हो जायेगा तो निश्चित ही आप वैराग्य की और अग्रसर हो जायेगे और तब ईश्वर को पाना सरल हो जायेगा।
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