राजनीति कटघरे में खड़ा कोरोना का निर्णायक युद्ध


राजनीति कटघरें में  खड़ा कोरोना का निर्णायक युध्द

प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़
(वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)

" आज दुनिया में एक अदृश्य खतरनाक वायरस के संक्रमण से मचे कोहराम, हाहाकार और भयाक्रांत खौफजदा माहौल में पूरी दुनिया जिस तरह बेदम अथक बचाव के लिये संघर्षरत है। कोरोना से कालकवलित हुई इंसानी संख्याओं  के कारणों  परिणामों और दीर्घकालीन दुष्प्रभावों को आज समझनें और मूल्यांकन  करने का समय  आ गया है। हमारी एकजूटता के अदम्य साहस ने लगभग कोरोना महामारी पर  अप्रत्याशित विजय आत्मसंयम,धैर्य और मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से प्राप्त करने के अंतिम चरण में पहुंच चुकें है। सूत्रों की मानें तो उपचार की विश्वसनीय  प्रयोगशालाओं से अब जल्दी ही कोरोना नियंत्रक वैक्सिनों का आगाज भारत और दुनिया के महाशक्ति संपन्न देशों में होने ही वाला है। इस तरह संघर्ष के बीच भारत की हर गली,मोहल्लें,गांव,शहर से लेकर मददगार समाजसेवी संस्थाओं, सेवावीरों,प्रशासन,राज्यों और केन्द्र के  रणनीतिकारों के सम्मुख सफलता कि एक आशातीत किरण की नई उम्मीद का प्राकट्‌यभाव हुआ है। "
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कोरोना से लड़ाई को राजनीति के रंग में लड़ने की परिभाषा कुछ क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों ने अपने-अपने राजनैतिक अस्तित्व को बचाने के लिये बना ली है। ऐसे में उस बेकसूर आम जनता का क्या दोष है जो सभी पार्टियों से केवल और केवल कोरोना से बचाव के लिये रक्षात्मक साधनों,भूख से बचने और जिंदा रहने के लिये आवश्यक सामग्रियों की मांग कर रही है। क्या ये संसाधन जुटाना किसी एकमेव नेतृत्व करने वाली पार्टी की जवाबदेही है ? क्या क्षेत्रीय या अन्य पार्टियों की कोई जवाबदेही नहीं बनती है ? क्या एक पार्टी केवल दूसरी  पार्टी पर छिंटाकशी ही करती रहेगी ? और आखिर कबतक। जबकि पूरा देश कोरोना वायरस की गिरफ्त में है। खतरा हर जगह हर पल मुंह फैलायें खड़ा हुआ है। केवल बचाव और सुरक्षा ही एक जीत की उम्मीद बांधें हुये है। गरीब,असहाय,निर्धन,दिहाड़ी मजदूर,कमजोर,अशक्त,बेरोजगारों के लिये मददगार बनने के बजाय हर एक  पार्टी दूसरी पार्टियों पर शब्दभेंदी बाण चला चलाकर सेवावीरों की आत्मशक्ति को कमजोर कर रही है। कई पार्टियां नित रोज एक नया अर्थहीन सलूफा छोड़कर राजनीति को गर्म करने में ही अपनी पार्टी की शान समझने में कोई कसर भी नहीं छोड़ रहे है। यदि एक ही उदाहरण को समझें तो हमें केवल प्रकाश के बल्ब और ट्‌यूबलाइट बंद रखना थे ना कि मेनस्वीच आफ करना थे। संकीर्ण सोच, समझ के अंतर ने  और शब्दों के प्रयोग ने कुछ पार्टियों की अंतरमन की कल्मष भड़ास को जनता के सामने आखिर खुला कर दिया कि वे जनता, मददगारों और शासन आदेशों से  ज्यादा अपनी राजनीति पार्टी को अधिक महत्व देते हैं। भारत में अब राजनीति के कटघरें में आ खड़ा हुआ कोरोना युध्द का यह अंतिम पड़ाव अब शनै: शनै: सफलता की ओर अग्रसर है। ऐसे में एक और कोरोना पीड़ितों की संख्या जहां तेजी से बढ़ रही है वहीं संक्रमणितों की मौत पर बहुत बड़ा चिकित्सकीय नियंत्रण यह साबीत करता है कि हमनें कोरोना की जंग को जीत लिया है। यह कहना भी  कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। जो है वह दुनिया को दिखाई दे रहा है। और जो नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं वह हमें दुनिया में दिखाई दे रहा है। हमारी सफलता हमारी इच्छा शक्ति और सेवाभावी अदम्य पराकाष्ठा का परिणाम है। आज दुनिया यह सोचकर अचंभित है कि कैसे कोई  प्रधानमंत्री एक परिवार प्रमुख सेवक बनकर कोरोना महामारी से अपनी टीम के साथ एक सौ तीस करोड़ लोगों से संवाद करके सहयोग लेकर विनम्रता से युध्द कर रहें हैं। यह सच में अद्‌भूत है। परन्तु कोई पार्टी इस सफलता को अपनी जीत ना समझें। यह जीत जनता की है। जनता के विश्वास की है। जनता के भरपूर सहयोग की है। जनता के आदेश पालन की है।  आज चर्चा का एक नया विषय मीडिया में  जनसंवाद का कारण बनता जा रहा है। वह यह कि,यह कौन सुनिश्चित करेगा कि देश पर आये कोरोना महामारी  संक्रमण के महासंकट में धैर्य,संयम,आत्मविश्वास की अग्नि परिक्षा में कौन पास हुआ और कौन फैल ?  कोरोना लड़ाई को लेकर राजनीति के गलियारों से उठा धूंआ अब जनता की चौपाल तक फैलता जा रहा है। मप्र में उपचुनाव की सुगबुगाहट भी जारी है। कोरोना के बादल छटतें ही उपचुनाव का शंखनाद होना है। सूत्रों कि माने तो मंदसौर के एक नेता ने उपचुनाव की तैयारी कोरोना लड़ाई के साथ ही शुरू भी कर दी है। उन्हें कोरोना उपचुनाव जीतायेगा या उपचुनाव में कोरोना का प्रचार। यह कहना अभी ठीक नहीं होगा। राजनीति के कटघरें में कोरोना लड़ाई का युध्द मप्र में एक नई परिभाषा भी लिख रहा है। मंत्रीमंडल के बिना अकेले मुख्यमंत्री यह कोरोना की लड़ाई लड़ रहें है। प्रशासनिक अमले के साथ जहां कोरोना के विरुध्द संघर्ष जारी है। वहीं मप्र में एकाएक कोरोना संक्रमणितों की संख्याओं ने केन्द्र को भी सकते में डाल दिया है। इसी तरह महाराष्ट्र, तमिलनाडू ,उत्तरप्रदेश,कर्नाटक, केरल, जैसे राज्यों में भी बेहताशा वृध्दि ने राज्य सरकारों की नियंत्रणात्मक कार्यप्रणाली की पोल खोलकर रख दी। ऐसे में केवल आंकड़ों की वृध्दि ही नहीं हो रही है वरन इन राज्यों में मौत के आंकड़ें भी अन्य राज्यों से अधिक ही है। कोरोना से लड़ाई का यह अघोषित युध्द अब  एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। जहां से सफलता और असफलता को  केवल कोरोना पीड़ितों के संक्रमणित आंकड़ों और उन राज्यों में हो रही संक्रमणितों की मौत के संख्याओं से ही देखकर लगाया जा सकता है। अब यह कोरोना लड़ाई राजनीति के एक ऐसे कटघरें में आ खड़ी हो गयी है जहां कोरोना संक्रमण के पूर्ण खात्में, वायरस फैलाव के पूर्ण नियंत्रण पर ही हार -जीत की नवीन परिभाषा लिखी जाना है।


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