प्रकृति को हमारी नहीं, हमें उसकी जरूरत है-नीतू शर्मा

  प्रकृति को हमारी नही,हमें उसकी जरूरत है।                                     ( शिक्षाविद नीतू शर्मा)                                                                                                                 लॉक डाउन एक नया शब्द आजकल के दुनिया के स्वच्छंद मानव जीवन के लिए। यूं तो सभी न्यूज़ चैनल और विभिन्न प्रकार के सोशल मीडिया एप्स अपने अपने तरीके से अत्यधिक से अत्यधिक जानकारी देने में लगे हैं। पर मन है जो अलग तरीके से ही प्रतिक्रिया देने में लगा है। ऐसा लग रहा है जैसे कि मूड स्विंग का लाइसेंस मिल गया हो। मानव जाति एक बहुत ही अलग टाइम जोन में पहुंच गई है जिसकी हमारी पीढ़ी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। जिस तीव्र गति से मानव जाति प्रकृति से छेड़छाड़ कर रही थी और खुद को खुदा समझ बैठी थी तो कहीं ना कहीं तो इस पर रोक लगनी ही थी। मानव एक सामाजिक प्राणी है इस बात का एहसास इस लोक डाउन के दौरान शिद्दत से महसूस हुआ। वैसे लॉकडाउन ने लाइफ को एक अलग ही आयाम दिया है। प्रतिदिन नए-नए सबक सीखने को मिल रहे हैं पहला सबक भौतिकवादी जीवन शैली का कोई मायने नहीं है, दूसरा सबक हमें अपनी विपरीत परिस्थितियों में शांतिपूर्ण तथा धैर्य पूर्ण व्यवहार कभी पता पड़ा। आरंभिक अवस्था में लोगों में बड़ा अनोखा तथा रोमांच से परिपूर्ण लगा क्योंकि वही समरस जीवन वही रोज की भागम भाग ऑफिस की टेंशन घर की टेंशन  परिवार परिवार को पर्याप्त समय ना दे ने की टेंशन आदि सब चीजों से ऐसे छुटकारा मिला मानव ईश्वर ने अनचाही मुरादे पूरी कर दी। हर दिन रविवार सोमवार की उदासीनता से छुटकारा कभी-कभी लगता है कि जिस वर्किंग मंडे को इतना कोसा जाता था उसी ने सब कुछ सबक सिखाने के लिए ऐसा किया है। खैर शुरुआती स्वतंत्रता के बाद मानसिकता में तेजी से बुलबुले उठने लगे फिर वही सब चीजों की  याद आने लगी जिंदगी कभी हमने वैल्यू ही नहीं की। समस्या भी ऐसी की जान को खतरा वह भी किसी अदृश्य जीव से सब कुछ भयावह सब प्रतीत होने लगा पर प्रकृति मुस्कुराने लगी खिल खिल आने लगी। एक धुंधली सी याद नाइंथ क्लास के एक चैप्टर में पढ़ा था जो कि न जाने क्यों अभी मेरे मानसिक पटल पर अंकित है माल्थस की परिकल्पना इसके अनुसार प्रकृति की अपनी एक वहन क्षमता होती है क्षमता से अधिक भार होने पर वह स्वयं ही इसे संतुलित करती है वह संतुलन चाहे भूकंप के रूप में हो बाढ़ सूखा या आदि आदि। इस बार मां प्रकृति ने भी अपने आप को स्वस्थ और संतुलित रखने के लिए रखने के लिए नए तरीके की खोज की सबसे विध्वंसक आरी मानव को उसकी सीमा बता दी।साथ ही मानव जाति को उसके मूल्यों की पहचान करवाने तथा एहसास करवाने का भी सबक दिया जिस प्रकार से जातिवाद ऊंच-नीच अमीर गरीब का भेद मिटा है इस सबक से शायद ही कभी इस तरीके का उपचार मानव मन को मिला हो। इस सबक के बाद मानव ने  सीखा, उसे हमेशा के लिए याद रखना होगा अन्यथा कोविड-19 की तरह ही अन्य कोई कड़ा सबक प्रकृति हमें सिखाती रहेगी जब तक कि हम अपनी सीमाओं में रहना नहीं सीखेंगे।यूं तो अनेक प्रकार के परिदृश्य इस लोक डाउन के दौरान देखने को मिले अलग अलग तरीके की क्रिया प्रतिक्रिया सामाजिक जीवन में देखने को मिली जो सबसे खूबसूरत परिदृश्य मिला वह था मानवता का भाव दयालुता का भाव आपसी सहयोग का भाव जिस प्रकार समाज एक दूसरे की मदद के लिए आगे बढ़ रहे हैं अपनी जान की परवाह ना करते हुए भी समाज में अपना मूल्यवान  योगदान दे रहे हैं धैर्य के साथ घरों में रह रहे हैं अपने अंतर्मन को खोजने का प्रयास कर रहे हैं अपनी भूली हुई ऐसा कहें कभी कभी चाही हुई रचनात्मक रुचि ओं में समय व्यतीत कर रहे हैं यह सब देखकर मानो मन प्रफुल्लित सा हो जाता है इसके साथ ही जब परिवार में मेल मिलाप या वह परिवार जिसमें पति-पत्नी दोनों वर्किंग होने के वजह से कभी ठीक से साथ में खाना भी नहीं खाते थे ,सुबह-शाम घर के कामों में हाथ बंटा रहे हैं तथा आपसी संबंध और समझ दोनों को बढ़ा रहे हैं रहे हैं। तथा सबसे महत्वपूर्ण बात की प्रकृति  को हमारी जरूरत नहीं हमें प्रकृति की जरूरत है अन्य जीवों को हमारी जरूरत नहीं ,मानव का अन्य जीवो के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।


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