अस्तित्व
अस्तित्व टूट कर बिखर गया ज्यु मोती की लादियां । समेट नहीं पा रही बीत गए युग बीत गई सदियां।। कतरा कतरा बिखरा किरचा-किरचा टूटा मेरा सब कुछ। गुम हो गया सिरा पकड़ नहीं पा रही कहां ढूंढू कुछ खबर नहीं ।। चलो फिर से पहल करें उम्मीदों की डोर पकड़ चलने की। उमंग में भर आसमान पर उल्टे सीधे भागते तारामंडल को छूने की ।। क्या बिखराव का अंत होगा क्या बाधित कर सकेगा । जब जमाने के साथ चलना हैं तो सिमटना होगा युग के साथ चलना होगा समेटना होगा अपने अस्तित्व को अपने विचारों को अपने ठहराव को।। खुशहाल जीवन साथ ले सभी के साथ चलना होगा । जिंदगी का बिखराव सदा रहे यह तो ठीक ना होगा ।। मेरा सपना पूरा करने को कोई तो अपना होगा। जब सपना पूरा होगा तो जुड़ पाएगी पुराने महलों से नई अट्टालिकाए।। नव जीवन का नव अंकुर फूटेगा नई कोपले खिलेंगी । नया सवेरा होगा जरूर होगा और टूटा अस्तित्व हिमालय सा खड़ा होगा।। लेखिका: लक्ष्मी गुप्ता, लाजपत नगर,अलवर
Comments