भक्तामर पारणा अनुमोदना महोउत्सव के रूप में मनाया

मुरादपुर/कोडरमा/औरंगाबाद l जैन मुनि द्वारा निर्जल 50 दिन की अखंड उपवास व मौनव्रत की साधना के लिए भक्तो ने अनुमोदना 1 लाख 80 हजार से अधिक भक्तामर पाठ कर देशभर के गुरुभक्तों ने मनाया पारणा महोउत्सव 


अन्तर्मना द्वारा 50 दिन उपवास व मौन व्रत के अनुभव साझा किए l


    मनीष सेठी कोडरमा ने बताया कि मुनि दीक्षा के बाद अपने जीवन काल मे भगवान महावीर स्वामी के बाद उग्रतम तपश्या करने वाले व तपश्वि सम्राट आचार्य सन्मति सागर की पदचिन्हों पर अग्रसर पुष्पगिरी तीर्थ प्रणेता आचार्य श्री पुष्पदन्त सागर जी महाराज के आत्मीय शिष्य भारतगौरव तपाचार्य अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज द्वारा अपनी साधना को गति प्रदान करते हए जैन धर्म के महाकाव्य भक्तामर जी के 50 दिन के अखण्ड(लगातार) कठिन उपवास व मौन व्रत की बिना किसी से मिले साधना की है। जिनकी सफलतम साधना के पूर्ण होने पर संघत मुनि श्री पीयूष सागर जी महाराज के निर्देशन में देशभर के गुरुभक्तो ने अपने अपने घरों व जिनमंदिरों में भक्तामर पारणा अनुमोदना महोउत्सव के रूप में मनाया।                                    गौरतलब है कि इस समय पूज्य गुरुदेव का मंगल चातुर्मास मंशापूर्ण महावीर तीर्थ क्षेत्र गंगनहर मुरादनगर उत्तर प्रदेश में चल रहा है। लेकिन अपने गुरु की साधना से उत्साहित भक्तो ने " महाकाव्य भक्तामर समिति" के माध्यम से देशभर के गुरुभक्तों ने अपने अपने घरों व मंदिरों में उपवास की अनुमोदना स्वरूप भक्तामर महाकाव्य का पाठ कर देश मे 1 लाख 80 हजार से ऊपर पाठ का रिकार्ड बनाया। गुरुदेव द्वारा सोमवार को अपने उपवास की साधना को विराम देते हुए 50 दिन बाद त्यागी व्रतियों व नियमो से संकल्पित भक्तो से विधि पूर्वक अन्नजल ग्रहण कर पारणा किया। इस अवसर पर देशभर के गुरुभक्त पारणा(अन्नजल ग्रहण करना) उत्सव देखने पहुँचे। जानकारी देते हुए नरेंद्र अजमेरा पीयूष कासलीवाल रोमिल जैन ने बताया कि गुरुदेव इसके पूर्व भी 16,32, 35, 64, व 186 दिन के कठोर उपावस व मौन व्रत की साधना कर चुके है।                         आयोजन से पूर्व तीर्थ क्षेत्र में मुनि पीयूष सागर के द्वारा मंत्रोउचार व ब्रमचारी तरुण भैया जी द्वारा विधि विधान से भगवान के कलशाभिषेक शांतिधारा व अनुमोदना स्वरूप संकल्पित अखंड 24 घण्टे का भक्तामर पाठ के पूर्णार्घ समर्पित किये गए। इस अवसर पर भट्टारक रविन्द्र कीर्ति जी हस्तिनापुर, ब्रमचारणी गीता दीदी, गुरुदेव की माता जी शोभा देवी, अज्जूभाई धुलियान,विजय जैन, नितिन जैन रहेजा दिल्ली,गुलजारीलाल नवीन जैन, सजनबंटी जैन अहमदाबाद अशोक जैन ,शुशील जैन, मनीष जैन, विपुल छाबड़ा,विवेक जैन ,विमल जैन,बिट्टू जैन,तिलोक जैन  मौजूद थे। साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से महाकाव्य भक्तामर समिति के रोहित बाकलीबाल किशनगढ़ नीलेश पहाड़े औरंगाबाद,मनोज पाटनी नाशिक, अभिजीत काला पैठन,ताराचंद जैन अजमेर पीयूष कासलिवाल औरंगाबाद,नरेंद्र अजमेरा औरंगाबाद राजकुमार अजमेरा,मनीष सेठी,कोडरमा संजय जैन इंदौर,विपुल जैन जयपुर सुरेन सेठी धूलियांन,विकल्प सेठी सोनकच्छ आकाश जैन सोनकच्छ, गौरव जैन परतवड़ा


नीतेश पाटनी ईकलकरंजी 1 लाख 80 हजार पाठ में योगदान रहा है।


अब मौन में ही रमने को मन करता है बाहरी वातावरण सुधरने वाला नही है


रहो बाहर जियो भीतर अन्तर्मना मुनि प्रसन्न सागर अनुभव:- 


 अपनी तप आराधना, मौन व्रत ओर एकान्तवास को लेकर अन्तर्मना ने बताया कि,," मौन अनेक समस्याओं का समाधान है मौन का अर्थ है विचारों और विकल्पों के बाजार से पूर्वाग्रह( अतीत के विचार में जुझना) के दुराग्रह(हठाग्रह जिद) से मुक्त होना। हमारी मन की अशांति को विचार और विकल्प ही अशांत और गंदा करते है। मौन रहने से दो पापो से बचा जा सकता है पहला निंदा आलोचना दूसरा हम असत्य के संभाषण से बच जाते है।


अब मौन में ही रमने को मन करता है बाहरी वातावरण सुधरने वाला नही है दिन प्रतिदिन चारित्र में, नैतिक मूल्यों का पतन बढ़ता ही जा रहा है


मेरे जीवन मे ये पाँच बाते मौन,मंत्र,माला,मानस ओर मुस्कुराहट..... सुख शांति प्रदान करता है।


 आगे गुरुदेव ने अपने अनुभव में बताया कि


जब 32, 35, 50, 66 व 80 और 186 दिनों की मौन उपावस एकान्तवास की साधना मैने की तो लगा जीवन मे हिम्मत से हारना पर कभी हिम्मत नही हारना, रहो बाहर पर जियो भीतर


एकांत ओर मौन का आंनद लेना हो तो सबसे अंजान हो जाओ। फिर मौन और साधना का अनुभव अद्भुत होता है। मौन और एकान्त के क्षणों में हमने कुछ नही किया बस अंतरंग के आंनद और सन्यास को जीया। मौन और एकांत के सन्नाटे में स्वयं की आवाज को सुना और महसूस किया कि जो मौन से पाया जा सकता है वो बोलकर नही।.... भगवान महावीर भी 66 दिन तक मौन रहे थे।


 मुनि श्री ने बताया कि हमने तप और आराधना में पाया कि मौन और एकांत आत्म के सबसे अच्छे मित्र है। उन्होंने कहा कि एकांत और अकेलेपन में बहुत फर्क है। अकेलापन में बेचैनी है भारीपन है उदासी है सजा और छटपटाहट है। इसी के विपरीत एकांत में सुख शांति आंनद ओर मस्ती है यह जीवन अकेलेपन से एकांत की और यात्रा है यह एक ऐसा रास्ता है जिसमे रास्ता भी आप है राही भी आप है और मंजिल भी आप ही है।


व्रत,उपवास,एकांत,मौन और मस्ती ये सब मन का खेल है जो कि बिना गुरु आशीर्वाद के संभव नही है गुरुदेव ने बताया कि व्रत उपवास में चार बाते बहुत काम की है,संकल्प,समर्पण,साधना और सहनशीलता। साधना, समर्पण और संकल्प करने वाला व्यक्ति भले ही लक्ष्य तक नही पहुँचे लेकिन सहन करने वाला लक्ष्य तक जरूर पहुँचता है। जैसे मिट्टी सहन कर गागर बनती है दूध से घी बनना है बूंद से सागर बना उसी प्रकार सहनशीलता आत्म को परमात्मा बनाती है। इसलिए साधु जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि समता और सहनशीलता ही साधना की पराकष्ठा है l


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