धर्म के लिए विनय भाव का होना आवश्यक

    धर्म के लिए विनय भाव का होना आवश्यक                                                                                                                                                                                      भिण्ड/कोडरमा। दसलक्षण पर्युषण महापर्व पर पूज्य जैन मुनि गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज ने उत्तम मार्दव ‍धर्म पर ब्याख्यान करते हुवे बतायेे.                    मृदोभाव ‌‌. मार्दव भावों की मयुता का नाम हीं मार्दव धर्म है यानि शरीर से झुकने मात्र का नाम मार्दव धर्म नहीं है संसार में प्राय. शरीर से झुकने वालो की अपेक्षा मन से झुकने वाले कम मिलते हैं दो व्यक्तियों के बीच होने वाले विवाद में एक के कमजोर पढ़ने पर भी व्यक्ति कहने लगता है हाथ जोड़े भैया बात बंद करो यहां से जाओ ऐसा व्यक्ति बाहर सेतु हाथ जोड़ लेता है लेकिन उसके प्ररियाम या भाव हाथ जोड़ने के नहीं होते। 


कहते हैं 


नमन नमन मैं फेर है अध्यक्ष नमे नादान 


दगाबाज दूंगा नमे चीता चोर कमान 


सामान्य रूप से व्यक्ति जितना झुकता है उससे दुगुना दगाबाज अपना कार्य सिद्ध करनी के लिए झुक जाता है और चीता चोर भी कार्य सिद्धि हेतु जाते हैं लेकिन यहां परिणामों से झुकने को धर्म कहां है और यह धर्म वचनों से नहीं होता प्रातः व्यक्ति वचनों से तो क्षमा मांग लेता है किंतु हृदय नमः न हों तो झुकता व्यर्थ है। धर्म के लिए विनय भाव का होना आवश्यक है और विनय से मान नष्ट होता है भारत देश मैं अन्य देशों की अपेक्षा अधिक मात्रा में भगवान के मंदिर तीर्थ क्षेत्र आदि है क्योंकि मंदिर भगवान गुरु आदि ऐसे स्थान है जहां से व्यक्ति झुकता सीखता है कभी-कभी बच्चे मंदिर से जींस आदि ऐसे कपड़े पहनकर आते हैं जिनसे उन्हें बैठने में परेशानी होती है और बे खड़े ही सिर झुका लेते हैं यानि उन्होंने बैठने में परेशानी होती है और बे खड़े ही सिर झुका लेते हैं यानि उन्होंने अभी धर्म की भगवान की कीमत नहीं की है मांग लीजिए गुरु तो फिर भी आशीवाद दे देंगे किन्तु ध्यान रखना बिना झुके आज तक किसी की बाल्टी नहीं भरी मार्दव धर्म एक और खाली होने की और दूसरी ओर भरने की शिक्षा देता है यानि आप कषाय अहंकार राग द्बेष मोहे के कचरे को खाली कर दीजिए क्योंकि यह हमारे धर्म के विनाशक है और स्वयं की गलतियों को देखने का प्रयास करें व संभलने की ओर अपने कदम बढ़ाये संसार में अहमेद ममेद ये दो ही आत्मा को रवभाव से युक्त करने वाले झगड़े को बढ़ाने ( C-4)वाले हैं इस इनको दूर कर दो तो भगवत स्वरूप आत्मा का इसावरदान अनुभूति हो सकती है जो आपके जीवन को सुख शांति प्रदान करने वाली है 


 


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