दुख को सुख में बदलने का उपाय जैन मुनि
दुख को सुख में बदलने का उपाय जैन मुनि
भिण्ड/कोडरमा--जैन मुनि परम पूज्य अध्यात्म योगी गणाचार्य गुरुदेव श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने अध्यात्मिक की गंगा को प्रवाहित कर सभी की संतप्त आत्मा को शीतलता प्रदान करते हुए कहा कि आज संसार में भ्रमित व्यक्ति दुखी परेशान है तो उसका मूल मुख्य कारण भेद विज्ञान का अभाव है शरीर को ही आत्मा मान लिया है शरीर के सुख-दुख को आत्मा को मान लिया है पर जब भेद विज्ञान होता है तो आत्मा से शरीर की भिन्नता नजर आती है फिर वे आत्मा की सुख शांति के उपाय खोजते हैं शरीर से विरक्त होते हैं शरीर को कष्ट भी हो तो भी मंदिर आते हैं पूजा अभिषेक आदि शुभ कार्य करने लगते हैं गुरुओं के पास जाकर उनकी बातों को मानते हैं तो कर्मों में भी बदलाव आता है पाप कर्म भी पुण्य कर्म में परिवर्तन होने लगते हैं कहने का तात्पर्य की प्रति व्यक्ति के हाथ में है कर्मों को बदलना। अच्छे काम करेंगे तो पाप कर्म भी क्षीण होते हैं पुण्य का संचय होता है हम जान नहीं पाते की पवित्र मन से किए गए कर्म कार्य कई गुना रूप में फलित होते हैं पर यह सत्य है देखो धर्मात्मा 1 घंटे में दुकान पर बैठकर हजार रुपए कमा लेता है पर अदर्मात्मा दिन भर बैठ कर भी उतना नहीं कमा पाता अतः भैया दुकान आप नहीं आपके भाग्य में स्थित पुण्य कर्म चलाता है और पुण्य भाग्य कहां से आया तो यह ये धर्म करने से धर्म मार्ग गुरु उपदेशानुसार चलने से आता है आता सदैव हमें धर्म करना चाहिए धन धर्म की अनुचरी है। तभी तो धर्मात्मा पुरुष धनवान होते हैं।
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