अंहिसा परमो धर्म की प्रभावना कर अपनी आत्मा का कल्याण प्रशस्त करे- अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर

तपगच्छाधीपति प्रेमसुरीश्वर महाराज साहब की पुण्यतिथि पर लाइव गुणानुवाद सभा मे बोले दिगम्बर जैन सन्त


अंहिसा परमो धर्म की प्रभावना कर अपनी आत्मा का कल्याण प्रशस्त करे- अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर



औरगाबाद/ मुरादनगर 17 सितम्बर। जब एक भक्त ने अन्तर्मना आचार्य से पूछा गुरुदेव धर्म कब तक है. गुरुदेव ने कहा जब तक धर्मात्मा है तब तक धर्म है फिर भक्त ने कहा है आचार्य धर्मात्मा कौन है गुरुदेव बोले जो द्वेष नहीं करे, क्लैश नहीं करे,समाज को तोड़ने की नही समाज को जोड़ने की बात करता हो वही धर्मात्मा है वही धर्म है।। धर्म को सुनना जीना कठिन कार्य है आचार्य शिवकुटी महाराज साहब गजपंथी शास्त्र के 333 वा कारवां में लिखा है जो सेवा भावी है परोपकारी है जो भक्त तन मन धन व मन वचन काया से परमात्मा की भक्ति में लीन हो वो निचिंत तीर्थंकर प्रवृत्ति का बंद कर सकता है।। यह बात अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर  गुरुदेव ने तपगच्छाधीपति आचार्य प्रेमशुरीश्वर  महाराज साहब के चतुर्थ कालीन पूण्यतिथि निमित्त गुणानुवाद ऑनलाइन लाइव सभा मे कही। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के जिंदा रहने के लिए भोजन जरूरी है, भोजन से ज्यादा पानी जरूरी है पानी से ज्यादा वायु जरूरी है और वायु से ज्यादा आयु जरूरी है लेकिन मरने के लिए कुछ भी जरूरी नहीं है। प.पूण्य तपगच्छाधीपति आचार्य प्रेमशुरीश्वर  महाराज साहब का आज चतुर्थ पुण्यतिथि दिवस है। जिस योगी ने 1500 से ज्यादा आत्माओं को भगवान बनने का मार्ग बताया है जिस योगी प्रेमशुरीश्वर जी महाराज साहब ने हजारो लोगों को पापकार्यो से बचाया हो , जिस महासंत ने लाखों लोगों को धर्म का अमृत पिलाया हो आज उस महान आत्मा का पुण्यतिथि उत्सव निश्चित ही पिछले जन्मों के पुण्यकर्म का फल व कुल के संस्कार का प्रतिफल है। गुरु को शिष्य उनके पूण्य से मिलता है लेकिन समर्पित और सामर्थ्य वान शिष्य मिल जाए तो क्या कहना है।। तपगच्छाधीपति आचार्य परंपरा का निर्वहन करते हुए मोक्षमार्गी जिनके कुशल नेतृत्व को लेकर गुणानुवाद सभा को संपन्न होने जा रही है ऐसे आचार्य कुलचंद्रसुरीश्वरी महाराज के मिश्रा में यह उत्सव सबके जीवन में महोत्सव बनकर आने वाला है। 


अन्तर्मना गुरुदेव ने अहिंसा परमो धर्म की प्रभावना हेतु दिगम्बर, श्वेतांबर आदि को लेकर जैनहित एकता के लिए मार्मिक उद्बोधन देते हुए कहा कि 


जैन दर्शन में दो पाठ है श्वेतांबर और दिगंबर ....भगवान महावीर स्वामी ने अनेकांत का मार्ग दिया है अनेकांत का मतलब " मैं भी सही हूं... आप भी सही है..." . केवल "में ही सही हु" यह गलत है। श्वेतांबर , दिगंबर, तेरापंथी बीसपंथी स्थानकवासी, मूर्तिपूजक अन्य सभी की क्रियाएं पद्धति अलग अलग हो सकती है लेकिन मार्ग एक ही है पाठ दो है। लेकिन दोनों परंपरा में तीर्थंकर की मान्यता एक ही है आराध्य भी एक है भगवान महावीर स्वामी... जैन कुल में पैदा होने के बाद सब ने णमोकार मंत्र ही पड़ा है वटबृक्ष की शाखाएं अनेक है। लेकिन मूल जड़ एक ही है उसी प्रकार दिगम्बर श्वेतांबर आदि की पद्धत्ति, क्रियाएं अलग हो सकती है लेकिन मार्ग एक ही "अहिंसा परमो धर्म" ओर "भगवान महावीर स्वामी"


में आज सभी से निवेदन करता हु कि मंदिर में हम कुछ भी हो लेकिन मंदिर के बाहर हमारे नाम के साथ जैन शब्द जुड़ा होना चाहिए। हमारा मार्ग अहिंसा परमो धर्म की प्रभावना हो। उन्होंने अंत मे कहा कि आप सभी भगवान महावीर स्वामी के अनुयायी हो भगवान आप को सदबुद्धि दे कि हम आपस मे लड़े नही , झगड़ो को छोड़ केवल अहिंसा परमो धर्म की प्रभावना कर अपने आत्म कल्याण का मार्ग प्रसस्त करे। में तपगच्छाधीपति प्रेमसुरीश्वर महाराज साहब की पुण्य तिथि के अवसर पर अपनी भावाजंली , श्रृद्धाजंली, अनुमोदना करता हु। आचार्य कुलचंद्रसूरी  महाराज प्रति सुखसाता की कामना करता हु। कार्यक्रम में विशेष रूप से गुजरात के मुख्यमंत्री विजयभाई रूपानी, प.पु.सन्त रत्नसुन्दर सूरी  ,आचार्य सन्त सम्राट डॉ. शिवमुनि,राष्ट्र सन्त नम्र मुनि , सहित कई भक्त लाइव रूप से जुड़े थे। रोमिल जैन सोनकच्छ , पीयूष कासलिवाल, नरेंद्र अजमेरा ओरंगाबाद,राज कुमार अजमेरा, मनीष सेठी,नवीन गंगवाल कोडरमा ने जानकारी दी। 


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