अनियंत्रित होते नेताओं के बोल

अनियंत्रित होते नेताओं के बोल



आजकल जिस तरह से बड़ी पार्टियों के नेताओं के बोल अनियत्रित हो रहे हैं। वह बहुत ही दुःखद है। सबसे बड़ी बात तो यह हैं कि ये प्रखर नेता अपनी-अपनी पार्टियों के राज्य क्षत्रप भी है। साथ ही ये लोग सत्ता में हैं तो इन पर जनता के प्रति जवाबदेही की दोहरी ज़िम्मेदारी है। लेकिन इसके बावजूद इनके बोल अनियंत्रित कैसे हो रहे हैं यह समझ से परे हैं। क्योंकि इन नेताओं का वजूद अपनी-अपनी पार्टियों में अच्छा-खासा है, साथ ही जन मानस पर भी इनके कहे गये वाक्यों का असर अवश्य ही होता है। ये असरदार नेता इन पार्टियों का चेहरा होते है।  


 


पहले बात करते हैं शिवसेना के नेता संजय राउत की। इनके द्वारा कंगना रनौत को जिस भाषा में सवाल उठाया गया इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी। इसके बाद कंगना ने जो जवाब दिया गया उसे भी शालीनता तो कतई नहीं कहा जा सकता। याद रहें कि राउत ने अभिनेत्री कंगना रनौत को मुंबई वापस न आने को कहा था। जिस पर उन्होंने अपना कमेंट् यह दिया-मुंबई पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर जैसा क्यों लग रहा है। इसके प्रति उत्तर में फिर कहा गया कि-‘किसी के ...... में हिम्मत है तो रोक ले।‘ हमेशा चर्चा में रहने वाली इस अभिनेत्री को भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। हांलाकि उनकी बातों का बहुत हद तक समर्थन किया जा सकता है। क्योंकि हमारा देश सबका हैं किसी एक का नहीं। इस पर अधिक अनियंत्रित होकर कमेंट्स भी करने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं की जाती। राउत भी शिवसेना के बडे़ और जिम्मेदार नेता है और उनकी पार्टी महाराष्ट्र की सरकार में सबसे बड़ी भागीदार है। तब उन पर यह भी ज़िम्मेदारी बनती हैं कि वे अनियंत्रित बोल, बोलने से बचे ही नहीं वरन् सरकार को भी संकट में न डाले।


 


दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में अपने जनाधार को बढ़ाने में पिछले लोकसभा चुनाव में कामयाब रही भाजपा के नेता जबर्दस्त जोश में दिखाई देते हैं। हाल ही में भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि राज्य में सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं को जूतों से पीटा जाएगा। घोष ने आरोप लगाया कि राज्य पुलिस बल के कर्मियों का एक समूह उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को धमकी दे रहा है और इसमें शामिल लोगों को छोड़ा नहीं जायेगा। सवाल यह उठता हैं कि भाजपा ही नहीं वरन् तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को भी अपना संयम बरतना चाहिये। जिससे कि कार्यकर्ता अनियंत्रित न हो। इस पर, तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बंदोपाध्याय ने उन्हें ऐसा करने की चुनौती दी। उन्होंने कहा, ‘‘अगर उनमें हिम्मत है, तो पहले मुझे जूतों से पीट कर दिखाये, मैं उन्हें चुनौती देता हूँ.’’ उन्होंने भाजपा नेता को ‘‘अशिक्षित और असभ्य’’ बताया। बेहतर होता सांसद महोदय इस तरह के बयान न देने के लिये घोष बाबू को संयमित बयानबाजी करने के लिए कहते। परंतु उन्होंने इसे और बढ़ाने का काम किया। फिर घोष यहीं नहीं रूके उन्होंने 24 परगना जिले में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तृणमूल कांग्रेस की 2021 के विधानसभा चुनावों में पराजय होगी। चौराहों पर इसके कार्यकर्ताओं को निर्वस्त्र कर जूतों से पीटा जाएगा।’’ राजनीतिक रूप से घोष अपने कार्यकर्ताओं के प्रति चिंतित हो सकते है, इसी पर उनका ये गुस्सा फूटा है। परंतु इतना अनियंत्रित होकर कार्यकर्ताओं को संबोधित करना सही नहीं है। हांलाकि यह भी सही है कि जैसे-जैसे पश्चिम बंगाल के चुनाव नजदीक आ रहे हैं। इनके कार्यकर्ताओं पर हमलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। जिसे नियंत्रित करना दोनों ही पार्टियों की महती ज़िम्मेदारी है। पक्ष और विपक्ष दोनों का ही आचरण इस तरह का होना चाहिये कि उससे किसी भी प्रकार की जनहानि न हो। बेषक सबकी विचारधारा लोकतंत्र में एक सी नहीं होती। परंतु इसका अर्थ यह भी नहीं हैं कि बेखौफ होकर भाषा की मर्यादाओं का पालन न करें।


 


अंततोगत्वा यक्ष प्रश्न यह भी हैं कि क्या पार्टियों को अपनी लोकप्रियता में वृद्धि करने के लिये इस तरह की मर्यादाओं का उल्लंघन करने पर पार्टी हाईकमान एक्शन भी लेने के बारे में उन्मुख नहीं होते। वह चाहे जिस भी पार्टी के नेता हो। यदि ऐसा होता भी हैं तो यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता हैं कि ये उनके निजी विचार है। आखिर निजी विचार हैं तो फिर पार्टी के कौनसे विचार हैं। इस पर सभी चुप्पी साध लेते हैं।


 


पुनश्चः कहना न होगा कि ये असरदार क्षत्रप नेता अपने मन में एक-दूसरे की पार्टियों के प्रति मन में गाठ बांध रहे हैं कि वे सत्ता में हैं और आये तो आने वाले समय में ऐसा कर सकते हैं। जो कि किसी भी हालत में नहीं होना चाहिये। पक्ष और विपक्ष की प्रतिद्वंदिता को स्वस्थ बहस में तब्दील किया जाना बहुत ही आवश्यक हैं। इसके लिये विभिन्न दलों के मुखियाओं को यह ध्यान में रखना चाहिये कि वे अनियंत्रित होते नेताओं को साफ शब्दों में चेतावनी अथवा घुड़की अवश्य ही लगाये। जिससे उनकी देखा-देखी सेकंड लाइन के लिये तैयार होते नेता भी संभलकर बयान दें। वहीं जन सभाओं में भी वे मर्यादित व उन्नत शब्दों का प्रयोग कर जन मानस को प्रभावित करने का प्रयास करें।


       


 


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