दोस्त ! दोस्त ना रहा ! नेपाल बोल रहा चीन की भाषा

दोस्त ! दोस्त ना रहा ! नेपाल बोल रहा चीन की भाषा



                          डां. तेजसिंह किराड़ 


               (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक) 


चीन से बढ़ती नेपाल की नजदिकियों को भारत कभी अनदेखी नहीं कर सकता हैं। एक समय था जब नेपाल भारत के उपकारों का जिक्र करते नहीं थकता था। आज नेपाल, चीन की विस्तारवादी नीति का शिकार होकर अपने सबसे पुराने और विश्वसनीय दोस्त भारत से ही पंगा लेने पर उतारू हो चुका हैं। अब राजनीतिक हालात बदल चुके हैं और नेपाल जो कभी इतिहास में गुलाम देश नहीं रहा किन्तु आज वो चीन का गुलाम बन चुका हैं।


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दक्षिण एशिया के भूगोल को गौर से देखें या पढ़े तो स्थिति साफ नजर आती हैं कि नेपाल भूकम्प के मुहानें पर बसा एक ऐसा देश हैं जो प्राकृतिक और भौगोलिक भूगर्भिक व पर्वतीय हलचलों के कारण आपदाओं से सदा प्रभावित होता रहा हैं। इतिहास साक्षी हैं कि नेपाल पर जब भी कोई विपदा आई हैं भारत ने ही खुलकर मित्रता और पड़ोसी धर्म का बुत ही सदाचार के रूप में पालन किया और निभाया भी हैं। आज इंसानियत जिंदगी में कोई बिरले ही होगें जो सच्ची दोस्ती का निर्वाह करते होगें परन्तु एक देश जो एक सौ तीस करोड़ की आबादी वाले भारत ने पड़ोसी को पहले अहमियत दी हैं। राजनैतिक उथल-पुथल हो या कोई भी आपदा। भारत ने एशिया महाद्वीप के कई छोटे और विकासशील,पिछडें और डूबतें और टूटते देशों को आर्थिक सैनिक,व्यापारिक मदद के साथ ही और विश्वमंचों पर भी ताकतवर देशों को ऐसे देशों की बातें मनवाने के लिए भारत ने बाध्य भी किया हैं। एशिया महाद्वीप में भारत ही एक ऐसा देश हैं जो हर मामलों में चीन को नकेल कसने में समक्ष और समर्थ भी हैं। भारत और नेपाल के बीच दूरी बढ़ाने में चीन ने हर संभव साम,दाम,दंड और भेद वाली नीति अपनाकर नेपाल को कमजोर कर सब और से लूटने का एक जरिया बना लिया हैं। भारत के साथ नेपाल का सीमा विवाद धीरे- धीरे गहराता जा रहा हैं। नेपाल ने भारत से लगा हुआ एक बहुत बड़ा क्षेत्र चीन को सौंप कर भारत की दोस्ती में खटास पैदा कर दी हैं। चीन उस जमीन का उपयोग भारत के खिलाफ कर रहा हैं। यही नहीं अगस्त में नेपाल ने बिना सूचना दिए ही बांध के गेट खोलकर भारत में कई राज्यों में बाढ़ से बर्बादी पैदा कि थी। यह चीन के उकसाने पर ही नेपाल ने कदम उठाया था। बाद में चीन भी बाढ़ में जलमग्न होकर तबाही का मंजर देख और भुगत भी चुका हैं। नेपाल की मजबूरी यह हैं कि चीन से दोस्ती का सौंदा उसे बहुत फायदेंमंद लग रही हैं जबकि पाक की तरह नेपाल की अवाम भी चीन के हथकडों की कड़े शब्दों में निंदा कर रही हैं। हाल ही में चीन में नेपाल के राजदूत महेन्द्र बहादूर पांडे ने एक इंटरव्यू में नेपाल चीन के रिश्तों को अटूट बताकर राजनैतिक भूचाल पैदा कर दिया हैं। यह सुनकर भारत की कूटनीति और विदेश नीति में बहुत बड़े परिवर्तन होने की आशंका जताई जा रही हैं। जो चीन कभी भारत का नहीं हुआ वो पाक और नेपाल का कब सच्चा दोस्त बन सकता हैं ? सूत्रों के अनुसार राजदूत पांडे को नेपाल सरकार ने एक मिशन के तहत चीन भेजा हैं। जो कई समझौतों को पूर्ण करने से जुड़े हुए हैं। परन्तु पांडे के बयानों को फिल्टर करके समझा जा रहा हैं कि चीन,नेपाल के साथ मिलकर भारत विरोधी हथकडों को भी अंजाम देने की रणनीति बना सकते हैं! नेपाल को चीन एकाएक इतना प्यारा क्यों और कैसे लगने लगा हैं? यह भारत राजनीति में सभी दलों के लिए एक चिंता विषय बन चुका हैं। नेपाल पीएम के पी शर्मा ओली शुरू से ही भारत के खिलाफ जहर उगलते रहें हैं। जैसा पाक भी विश्वमंचों पर ऐसा ही करता रहा हैं। चीन की फिदरत में भारत को यूएन महासभा के स्थाई सदस्यता वाले एजेन्डे से दूर रखने की नीति रही हैं। किन्तु चीन की सैन्य हेकड़ी और एशिया में उसके दबदबें के बड़ बोलेपन का रूतबा और घमंड भारत ने सैन्य ताकत बढ़ाकर एक ही झटके में चकनाचूर कर दिया हैं। इसे लेकर चीन के राष्ट्रपति शी जिंनपिग को उनके ही देश में आलोचना का शिकार होना पड़ रहा हैं। चीन में जिनपिंग विरोधी धड़ा भारत की नीतियों का खुलकर समर्थन करता हैं किन्तु जिंनपिग के तेवर में कोई बदलाव नहीं आया हैं। युध्द के मुहानें पर बैठा चीन, भारत से पहले ताईवान देश से मुंह की खा चुका हैं। इंडोनेशिया ने भी कड़ी फटकार लगाकर समुद्री सीमा में चीन की घुसपैठ को उल्लंघन करार देकर चेतावनी दी हैं। चारों तरफ से घिरें चीन को नेपाल एक सच्चा दोस्त नजर आ रहा हैं। जब चीन का स्वार्थ पूरा हो जाएगा तब चीन,नेपाल को भी उलटे पैर खदेड़ देने में जरा भी नहीं हिचकिचाएंगा। भारत अपनी विदेशी नीति के तहत सदैव हर एक देश के साथ तटस्थवादी रहा हैं। नेपाल में पीएम ओली के खिलाफ उठे सड़क आंदोलन ने साफ चेतावनी चीन को भी दे दी हैं कि चीन अपनी विस्तारवादी दोगली नीति से नेपाल को भी कहीं बर्बाद करने का कोई नया प्लान तो नहीं बना रहा हैं ? दुनियु जानती हैं कि चीन का भारत में व्यापार बंद हो चुका हैं और कई लाख करोड़ का नुकसान चीन भुगत रहा हैं। चीन अब नेपाल के रास्ते पाक और मध्य व पश्चिम के एशियाई देशों के साथ अपने खत्म हो चुके व्यापार को फैलाना और बढ़ाना चाहता हैं। नेपाल और पाक केवल चीन के गुलाम बनकर अपनी ही पहचान और अवाम के दोषी बन रहे हैं। अमेरिका,जापान, ब्रिटेन, फ्रांस,और रूस ने चीन को हर तरफ से तोड़ने का प्लान पहले ही बना रखा हैं। चीन का दुनिया में व्यापारिक नुकसान भारत की तुलना में कई गुणाह हो चुका हैं और तेजी से हो रहा हैं। बौखलाया चीन नेपाल को हर हाल में हर तरह की मदद के लालच में फंसाकर शोषण को मुख्य हथियार बनाकर व्यापार और युध्द दोनों में जीतने की इच्छा रखकर तेजी से पैंतरें बदल रहा हैं।भारत ने नेपाल और पाक की गुलामी करतूतों का अध्ययन कर अपनी कूटनीति से चीन,नेपाल और पाक को भी पस्त करने के बड़े- बड़े प्लान में अमेरिका,रूस, फ्रांस, ब्रिटेन,जापान,जर्मनी,कनाड़ा,उत्तरी कोरिया,ताईवान,इजराइल,अरब खाड़ी के कई देशों और आस्ट्रेलिया जैसे देश एकजुट होकर चीन के खिलाफ मैदान में उतर चुके हैं। ऐसे में ना नेपाल की बोलती बंद हैं वरन पाक और चीन भी दुनिया के मंचों पर अलग -थलक पड़ चुकें हैं। भारत -अमेरिका के रक्षा सौंदे में हाल ही मैं बहोत्तर हजार अत्यानुधिक राइफल्स, खरीदेगा,वहीं कड़ाके की ठंड के पहले ही सात बड़े रोड़ पूर्ण कर रहा हैं। टैंकों के लिए बड़े बड़े पुल और सैन्य सामग्रियों को पहुंचानें के पुख्ता इंतजाम भारत कर रहा हैं। वहीं पीएम नरेन्द्र मोदी ने यूएन महासभा के वर्चुअल भाषण में दो टूक शब्दों में आगाज कर दिया हैं कि भारत को स्थाई सदस्य बनाने के लिए भारत के धैर्य को आखिर कबतक परखा जाएगा ?


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