किसानों के आक्रोश का लोकतांत्रिक चिंतन और मंत्रियों के बोलवचन

किसानों के आक्रोश का लोकतांत्रिक चिंतन और मंत्रियों के बोलवचन


प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़ 


(वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)


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किसानों की फसल को लेकर और उचित दाम दिलाने की कयावद के मायने आज आक्रोश के रुप में सड़कों पर दिखाई दे रहा हैं। जो सरकार पन्द्रह वर्ष पूर्व किसानों के हितों की बात करती थी आज बिल पास होनै पर किसानों को गुमराह करने पर आमादा हैं। ऐसा क्यों? क्या किसान की फसल, उपज मंड़ी और मूल्य अब राजनीति की पार्टियों से तय होगें? 



बारिश, बाढ़ और बर्बादी के मंजर के बाद किसानों की समस्याओं को समझनें के लिए केन्द्र और राज्यों के विचारों में एक बहुत बड़ा अंतर निर्मित हो चुका हैं। देश में किसानों की ज्वलंत समस्याओं को लेकर ना केन्द्र सरकार गंभीर है और ना ही राज्यों कि सरकारें ही किसानों के आंशु पोछनें की कोई कोशिश कर रही हैं। अपनी मेहनत की फसलों पर बर्बादी का दंश झेल रहे लाखों करोड़ों किसान मदद की गुहार लगा लगाकर परेशान हो रहे हैं। और सरकारें हैं कि केवल बोलवचन व झूठें आश्वासनों से किसानों को केवल और केवल गुमराह कर रही हैं। सूत्रों कि माने तो मप्र में किसानों के खातों में राशि जमा करने के नाम पर बहुत बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा हैं। जो राशि जमा हो रही हैं उससे किसान स्वयं हतप्रद और सन्न हो चुका हैं। देश का अन्नदाता किसान आज एक भयावह दौर से गुजर रहा हैं। खरीफ की फसलों पर बारिश और रोग की दोहरी मार झेल रहा हैं। जिनकी फसलें पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं वे किसान सरकारी मदद को तरस रहे हैं। कोई खाद को तरस रहा हैं। ऐसे में किसानों के हमदर्द बनने वाले क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने भी किसानों से मुंह फेर लिया हैं। अमूमन हर राज्यों के एक जैसे यही हालात हैं। उपर से किसानों में एक भ्रम कुछ पार्टियों के नेताओं ने ही डाल दिया हैं कि पास हुए बिलों से किसानों को नुकसान होगा! पड़ौसी राज्य मध्यप्रदेश में एक तरफ सत्ता बचाने के लिए उपचुनाव की सरगर्मी तेज हो गई हैं तो वहीं पूर्ववर्ती सरकार के मुखिया कमलनाथ ने सत्ता मे रहते किसानों के नुकसान की भरपाई की जो बड़ी बड़ी घोषणाऐं की थी वे शिवराज में पूरी नहीं होनें से नाराज बनकर उभर रही हैं। यही नहीं वर्तमान सरकार ने भी किसानों को पूर्ण आश्वस्त किया था कि वे किसी भी रूप में किसी भी किसान का कोई भी एक रूपये का आर्थिक नुकसान नहीं होने देगें। योगायोग राज्य में दलबदल के करिश्माई आंकड़ों ने कमलनाथ की सरकार को चलता कर दिया और शिवराजसिंह चौहान ने चौथी बार सत्ता को संभाल लिया। सत्ता में आते ही चौहान ने भी किसानों को यही आश्वासन दिया कि वे कमलनाथ सरकार के समय की फसलों के आर्थिक नुकसान की भरपाई करने की पूरी कोशिश हर हाल में करेगी। किन्तु किसानों को ना तो अभी तक कमलनाथ सरकार के समय की फसलों की नुकसान भरपाई मिल पाई हैं और ना ही वर्तमान में हुए इस वर्ष के नुकसान का कोई पैसा किसानों को मिल पाया हैं। दो सरकार की दोहरी मार झेल रहे किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह हैं कि उनकी पारिवारिक जिंदगी की गाड़ी वर्ष भर कैसे चलेगी ! कमलनाथ जब सत्ता में थे तब चौहान किसानों के हिमायती बनकर कमलनाथ की सरकार पर खुलकर प्रहार करके कई मंचों से बोल चुकें हैं कि हर किसानों को फसल बीमा राशि प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जमा कि जाएगी। किन्तु सरकार किसानों की समस्याओं की अनदेखी करके उनके परिवारों पर भूखमरी की नौबत पैदा कर रही हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार और किसानों से हुई चर्चा के अनुसार अब जब कमलनाथ सत्ता में नहीं हैं तो चौहान सरकार के ही कृषि मंत्री कमल पटेल किसानों की मांगों पर उलटे जवाब दे रहे हैं कि कमलनाथ सरकार का पाप हम क्यों भुगतें! कमलनाथ से जाकर मांगिए! पिछला हमसे क्यों मांगते हो! वाह! कमल पटेल जी, आपने किसानों की नुकसान से जुड़ी आर्थिक भरपाई की मांगों को अब कमलनाथ सरकार का पाप बता दिया। मंत्रीजी के बोलवचनों को सुनकर किसानों की अन्तरवेदना खौल उठी है। यह घटना हाल ही में हरदा और आसपास के किसानों के साथ घटित हुई हैं। जिसे कई समाचार पत्रों ने किसानों पर एक अत्याचार बताया हैं। मंत्री कमल पटेल का इस तरह का बयान अपने ही राज्यों के किसानों और अपने चुनाव क्षेत्र के किसानों को बोलना बहुत भारी पड़ सकता हैं। एक तरफ किसानों के हमदर्द बनना और दूसरी तरफ किसानों को इस तरह अपमानित करना किसानों की समझ से परें हैं। राज्य में उपचुनाव सिर पर हैं। ऐसे में शिवराज सरकार के कई मंत्री किसी को कुछ भी बोलकर पल्ला झाड़ रहे हैं। मंत्री इमरती देवी और मंत्री कमल पटेल का गैर जिम्मेदाराना बयान उपचुनाव में कांग्रेसियों के लिए बड़ा सरतूरूप साबित हो सकता हैं। यही नहीं किसानों के साथ व्यापारियों की भी बहुत बुरी हालत बनी हुई हैं। परिवहन के साधन ठप्प पड़े हुए हैं। बस और अन्य वाहन संगठनों की मांगों का अभी तक कोई भी हल नहीं निकल सका हैं। ऐसे में व्यापारियों की रोजमर्रा की जीवन आय शैली बहुत प्रभावित हो चुकी हैं। कमलनाथ और दिग्विजयसिंह ने भी कांग्रेस की तमाम आपसी गुटबाजी को दफन करके उपचुनाव जीतने की नई रणनीति बना रहे हैं। राज्य में केवल और केवल उपचुनाव की अठ्ठावीस सीटों पर ही पूरा लक्ष्य बनाकर रणनीति तैयार की जा रही हैं। कमलनाथ ने हाल ही में सांवेर में बैठक में दो टूक स्पष्ट कह दिया हैं कि किसानों के साथ कोई भी अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। कमलनाथ के इन वाक्यों से राज्य के लाखों किसानों को मानों एक संजीवनी मिल चुकी हैं। किन्तु मंत्री कमल पटेल के जज्बाती वचनों से किसानों की भावनाएं आहत हुई हैं। ग्वालियर के भ्रमण दौरान कमलनाथ को सुनने ऐतिहासिक भीड़ एकत्रित हुई। इससे कई पार्टियों के होश उड़ गए। समाचारों पत्रों की खबरों को माने तो राज्य में कई हजारों हेक्टेयर क्षेत्र कि खराब हो चुकी सोयाबीन फसलों को टैक्टर चलाकर कर या भेड़ बकरियों या मवेशियों के हवालें करके चरवा दिया गया हैं। किसान संगठन के जुझारू नेता और ब्लाक कांग्रेस के अध्यक्ष शशिकांत वर्मा ने चर्चा में बताया कि क्षेत्र के किसानों की जायज मांगों की सरासर अनदेखी कि जा रही हैं। किसानों को ना तो कोई पूरी राशि उनके खातों में अभी तक मिली हैं और ना ही आला अधिकारी किसानों की समस्याओं के प्रति कहीं गंभीर नजर आ रहे हैं। कार्यालयों के चक्कर पर चक्कर और तारीक पर तारीक की लेपराइट करके किसानों का दर्द बयां कर पाना बहुत कठिन हैं। शीघ्र ही बड़ी संख्या में किसानों का एक दल भोपाल में सीएम से मुलाकात करके किसानों की गंभीर समस्याओं के निराकरण हेतु सम्पर्क करने वाला हैं। दोहरी मार झेल रहे किसानों के पास कोई काम ना होने से आश्रित मजदूरों के लिए भी दिहाड़ी मजदूरी के लिए लाले पड़ रहे हैं। उप्र और अन्य राज्यों की सरकारों ने बाहरी राज्यों के मजदूरों के लिए काम करने को लेकर कोरोना काल की घटित त्रासदी के चलते कड़ी शर्ते बना दी गई हैं ऐसे में मप्र के हाजारों लाखों मजदूरों का अन्य राज्यों में रोजगार पलायन लगभग बंद हो चुका हैं। अपने ही राज्य में काम की तलाश करते कुशल और अकुशल मजदूरों के सामने भी आर्थिक संकट गहरा रहा हैं। जाएं तो जाएं कहां ! कि स्थिति में किसान,व्यापारी,मजदूर और शिक्षित बेरोजगारों की बड़ी -बड़ी समस्याएं वर्तमान सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। राज्य में उपचुनाव का शंखनाद हो चुका हैं। शह और मात की गोटियां फैकी जा रही हैं। परन्तु उपचुनाव में भी सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो चुनावी क्षेत्रों की तमाम समस्याओं के प्रति वर्तमान सरकार के नजरिए पर निर्भर हैं कि सरकार इन समस्याओं को कैसे और कब हल करके जरूरतमंदों को उचित राहत प्रदान करती हैं !


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