सिंधिया गुट को दबाने उमा-शिव की निकटता के नए समीकरण

सिंधिया गुट को दबाने उमा-शिव की निकटता के नए समीकरण 



प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़


(वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)


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सत्ता की चाह में राजनैतिक दलों में कब क्या नए समीकरण पैदा हो जाएगें कोई नहीं जानता हैं। कई वर्षों से मप्र की सक्रिय राजनीति से दूरी रही उमा भारती का एकाएक मप्र के उपचुनाव में पर्दापण करना और उपचुनाव की एक सीट से चुनाव भी लड़ने की खबरों ने सियासती हलचलें तेज कर दी हैं। इससे सिंधिया गुट में बड़ी बेचैनी के सुर अब उपचुनाव की बैठकों में साफ नजर आ रहे हैं।



किसी पार्टी को सत्ता ना मिले तो दुख और यदि सत्ता में रहे तो भी दुख ही दुख की विचारधाराअब किसी के लिए छिपी हुई नहीं हैं। ठीक ऐसा ही मप्र के उपचुनावी सरजमीं पर साफ देखने और पढ़ने को मिल रहा हैं। केन्द्र की सत्ता में कई वर्षों से उमा भारती की छवि राजनीति में एक राष्ट्रीय नेता के रूप में रही हैं। किन्तु मप्र में कांग्रेस और भाजपा की दलगत गुटबाजी और सत्ता के उलटफेर से बहुत बड़े नये राजनीतिक समीकरणों का जन्म हो चुका हैं। कांग्रेसियों का भाजपा में आना और भाजपा से कांग्रेस में किसी के जाने से पुराने भाजपाई नेताओं की नाराजी ने भाजपा के आलाकमान की नींद उड़ा दी हैं। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र तोमर का ग्वालियर चंबल में सक्रिय होना और अब एकाएक पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का भोपाल में डेरा डालकर मुंगावली और मेहगांव में उपचुनावी सभाओं को संचालित करना स्पष्ट करता हैं कि बड़ा मलहारा से संभवत उमा स्वयं उपचुनाव भी लड़ सकती हैं। राजनीति के चाणक्य मानते हैं कि उमा भारती का मप्र में वापसी करने के एक साथ कई मायने निकाले जा रहे हैं। मप्र की सत्ता में सिंधिया गुट का बढ़ता राजनीतिक कद और दबदबा पुराने और नए भाजपा नेताओं को रास नहीं आ रहा हैं। मप्र की भाजपा की राजनीति में अपना पूरा जीवन खपा चुकें और कई उतार -चढ़ाव देख चुकें कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं को अभी भी सिंधिया खेमे के बढ़ते प्रभाव और चौहान द्वारा उन्हें हासियें पर रखने की नीति के कारण एक तीसरा बड़ा गुट अंदर ही अंदर कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा की लाबी ने तैयार कर रखा हैं। उपचुनाव सिर पर हैं। सिंधिया के ही मंत्री अब उपचुनाव का नजारा देखकर और क्षेत्र की जनता की मनस्थिति को भांपकर सरेआम मंच से मंत्री इमरती देवी कलेक्टर से चुनाव जीताने की बातें कर रही हैं। तो दूसरी और वहीं ऊर्जा मंत्री तोमर अपना आपा खोकर सीधे अपने ही पूर्ववर्ती कांग्रेस भाईयों से हाथापाई कर बैठे। इन घटनाओं से यह तो साफ हो गया हैं कि सिंधिया गुट के बावीस नेताओं को उपचुनाव में बहुत बड़ी मुसीबतों से गुजरना ही हैं। क्योंकि सिंधिया ने ऐसे चहेतों को भी दबाव डालकर मंत्री बनवा दिया हैं जो हालफिलाल विधायक भी नहीं हैं। सूत्रों से जब मंत्रियों के बूरें हालचाल के समाचार जगजाहीर हो रहे हैं तो जो विधायक भी नहीं हैं उनकी मानसिक स्थिति कैसी होगी इसकी हमसब केवल कल्पना ही कर सकते हैं। सिंधिया को दलबदल का केन्द्र से सांसद बनाने का पुरस्कार जरूर मिला किन्तु वे अभी तक केन्द्रीय मंत्री नहीं बन पाएं हैं। इससे भी उनके साथी नेता और मंत्रियों में एक आंदरूनी तनाव साफ पढ़ा जा सकता हैं। नरेन्द्र तोमर को भी केन्द्र की सत्ता रास नहीं आ रही हैं इसलिए वे भी मप्र की राजनीति में भविष्य के मुख्यमंत्री का एक सपना देखकर आशान्वित बने बैठे हैं। उमा भारती केन्द्रीय सत्ता में मंत्री रहते हुए भी अन्य मंत्रियों की तरह महत्वपूर्ण चर्चा का अंग नहीं बन सकी। केन्द्र की राजनीति से अलग-थलक पड़ चुकी उमा भारती अब मप्र में उपचुनाव के बहाने अपने गीलेशिकवे दूर करने और पुनश्च सत्ता पर काबिज होने की चाह में जमकर चुनाव प्रसार में जुट चुकी हैं। कोई बताते हैं कि उमा का सक्रिय होना कही शिव-राज के लिए नई मुसीबतें तो नहीं खड़ी करने वाली हैं! क्योंकि मप्र में उपचुनाव की अठ्ठावीस सीटों में से बावीस सीटें तो दलबदल वाली हैं।ऐसे में सिंधिया का दबदबा कहीं शिवराज के लिए कोई नई समस्या ना खड़ी कर दें इसलिए उमा और शिव ने मिलकर उपचुनाव की बैठकें और प्रचार-प्रसार आरंभ कर दिया हैं। राज्य में केवल सांवेर उपचुनाव को ही ज्यादा तवज्जों देनें से अन्य सीटों की पकड़ भाजपा के हाथों से निकलती नजर आ रही हैं। हाल की ताजा सर्वे रिपोर्ट में भी भाजपा कई महत्वपूर्ण सीटों पर कमजोर पड़ती नजर आ रही हैं। मंत्री इमरती देवी ने तो इसी स्थिति को भांपते हुए यह तक बोल दिया कि सत्ता बचाने के लिए छह सीटों की ही जरूरत हैं। किन्तु यह गणित किसी भी राजनीति के दिग्गज नेताओं के गले नहीं उतर पा रहा हैं। यहां तक कि उनके राजनीति आका सिंधिया को भी केवल छह सीटों का गणित पच नहीं पा रहा हैं। यदि छह सीटें जीत भी जाते हैं तो उनका क्या होगा जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं और मंत्री बनें बैठे हैं! या जो पहले विधायक थे और हारने के बाद उनकी भाजपा में पूछपरक कैसी रहेगी यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा कि उपचुनाव के परिणामों के बाद सिंधिया के सामने किस तरह की स्थिति निर्मित होने वाली हैं ! अभी कैलाश विजयवर्गीय के सामने तीबल चुनौतियां हैं। पहली उपचुनाव में भाजपा को अधिक सीटें दिलाने की बाद में दूसरी पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा को सत्तासीन करने की और तीसरी अपने विधायक बेटे को मंत्री बनवाने की। तीसरी चुनौती बड़ी कठिन हैं यह बात विजयवर्गीय स्वयं जानते हैं कि शिवराज चौहान, उमाभारती, नरेन्द्र तोमर,नरोत्तम मिश्रा के चलते राज्य की सत्ता में बेटे के लिए मंत्री पद की लड़ाई बहुत टेड़ी खीर हैं। कुछ लोगों का तो यह मानना हैं कि उमा और शिव ही नए मप्र का भविष्य तय करने वाले हैं। किन्तु इन दोनों दिग्गजों को यह भी पता हैं कि केन्द्र के पार्टी आलाकमान की सूची में उमा और शिव दोनों ही निशाने पर हैं। सूत्र और राजनीति के पंडितों का मानना हैं कि यदि उपचुनाव के परिणाम भाजपा के अनुकुल नहीं मिलते हैं और ग्वालियर चंबल की सबसे ज्यादा सीटों पर यदि सिंधिया और तोमर गुट की जोड़ी फतेह करती हैं तो राज्य की सत्ता में सिंधिया जैसे एक नए चेहरें पर आलाकमान की मोहर भी लग सकती हैं क्योंकि आलाकमान भी नहीं चाहेगा कि मप्र को आपसी गुटबाजी, कलाबाजी और दगाबाजी का अखाड़ा बनाया जाए और आगे चलकर मप्र कहीं ऐसी ही गुटबाजी का शिकार होकर हाथ से निकलकर कमलनाथ के हाथों में चला जाए! उमा और शिव की उपचुनावी रणनीति से परिणामों का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो जल्दी ही आने वाला समय बताने वाला हैं तबतक केवल राजनीति के पंडितों के समीकरण से मन को समझाना और सराहना पड़ेगा।


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