यूएन महासभा में स्थाई सदस्य हेतु गूंजा भारत का शंखनाद

यूएन महासभा में स्थाई सदस्य हेतु गूंजा भारत का शंखनाद



आखिर कब तक भारत को अपने धैर्य और विश्वबंधुत्व के सिद्धांतों की दुहाई देते रहना होगी। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दुनिया की अठ्ठारह प्रतिशत जनसंख्या का भागीदार भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्थाई सदस्यता हेतु सैकड़ों बार अपना पक्ष रख चुका हैं किन्तु चीन के वीटो पावर के कारण भारत को हर बार आवाज उठाने के बावजूद निराशा ही हाथ लगी हैं। आखिर कबतक भारत इस उपेक्षा का दंश झेलकर दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाता रहेगा! और जो चीन है कि पूरी दुनिया में कोरोना से मौत का मंजर पैदा कर चुका हैं वहीं अपनी दोगली नीति से युध्द की विभीषिका को बढ़ावा देकर दुनिया की शांति भंग करने पर आमादा होकर यूएन के ही सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा रहा हैं,जो आज किसी से छिपा नहीं हैं।


संयुक्त राष्ट्र महासभा परिषद के इस उच्चस्तरीय सदन की स्थापना के बाद से अबतक 74 सत्र हो चुकें हैं। 192 देशों की सदस्यता वाली यह संगठन भी यूएन महासभा का ही एक महत्वपूर्ण भाग हैं। दुनिया की उच्च संसद कही जाने वाली इस महासभा में कोरोना महामारी को देखते हुए वर्चुअल भाषण हेतु सदस्य देशों को उनकी बात खुले रूप से रखने को कहा गया। इस अवसर पर भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने 23 मिनट के अपने भाषण में उन तमाम महत्वपूर्ण बिंदूओं का जिक्र किया जिसे यूएन महासभा ने दुनिया के हितों को ध्यान में रखकर उठना चाहिए थे किन्तु ऐसा ना होने पर पीएम मोदी ने स्वयं पूरजोर आवाज उठाई कि आखिर यूएन कब तक अपने पुराने सिध्दांतों के भरोसे पर चलते दुनिया को गुमराह करता रहेगा। आज दुनिया विकासशील देशों को यूएन महासभा परिषद से बड़ी उम्मीदें हैं। छोड़े देशों को विकास की मुख्यधारा से जोड़े जाने के लिए उनके हितों का भी विशेष ध्यान रखें जाने की सबसे बड़ी जरूरत हैं। हर देश अपनी आजादी के हिसाब से आगे बढ़ना चाहता हैं किन्तु कई ऐसे देश हैं जो विकास और प्रगति में रोड़ा बनकर बांधा बने हुए हैं। आज बदलतें समय की मांग और दुनिया कि बदलती राजनीतिक परिदृश्यों की अनदेखी के चलते ही चीन अपना दबदबा बढ़ाकर यूएन के सिध्दांतों के साथ सरासर खिलवाड़ करने पर आमादा हो चुका हैं। भारत विगत कई दशकों से यूएन में स्थाई सदस्यता हेतु पूरजोर संवैधानिक मांग करता रहा हैं। आज दुनिया के तमाम अविकसित और विकासशील देशों को चीन की दादागिरी की नहीं वसुदेवकुटुम्बकम की भावना और सहिष्णुता की जरूरत हैं। भारत अपने पूरवर्ती सिध्दांतों पर आज भी कायम हैं और भविष्य में सभी देशों के लिए एक दोस्ताना सच्चा मित्रवत व्यवहार करता रहेगा। पीएम मोदी ने दो टूक चीन और पाक को लताड़ लगाते हुए स्पष्ट कर दिया कि ताकत का सही उपयोग अपने से कमजोर और पिछड़े देशों की मदद करने में होना चाहिए ना कि किसी देश की सम्प्रभुता और उसकी अखंडता को कमजोर करने के लिए कोई भी सैन्य प्रयोग किया जाना चाहिए। भारत जब मजबूत था और दुनिया में अपने बलपर विकास की परिभाषा लिख रहा था तब भी भारत ने ना किसी युध्द की पहल की और ना ही किसी देश की दोस्ती से मुंह फेरा हैं। मोदी ने भाषण से दुनिया के देशों में एक नई राजनीति का बीजारोपण हो चुका हैं। चीन और पाक जैसे जमीन हड़पनें की विस्तारवादी दोगली नीति वाले देशों को एक करारा झटका भी पहुंचा हैं। सूत्रों कि माने तो पीएम मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े यूएन महासभा के मंच से अपने आनलाइन प्रखर भाषण में यूएन की पालिसी पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। अब यूएन महासभा को निर्णय करना ही होगा कि अगले वर्ष जनवरी 21 में हो रही महत्वपूर्ण बैठकों में भारत को यूएन महासभा का स्थाई सदस्य बनाया जाएगा या और भी इंतजार करना पड़ेगा! हाल ही में चीन ने जिस तरह से भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की तैनाती की और युध्द जैसे माहौल को पैदा किया हैं इससे साफ हो गया हैं दक्षिण एशिया महाद्वीप में चीन को दबाने और सभी छोटे बड़े एशियाई देशों के साथ उचित न्याय करने के लिए भारत की मांग को यूएन बहुत ही गंभीरता से लेने का प्रयास अवश्य ही करेगा। क्योंकि चीन और पाक पर से दुनिया के कई देशों का विश्वास उठ चुका हैं। यहां तक कि यूएन महासभा के स्थाई अन्य देशों ने भी चीन के स्वभाव का मूल्यांकन कर नकेस कसने का ठोस मंसूबा बना लिया हैं। ऐसे में भारत के धैर्य को जरूर ही स्थाई सदस्यता का मीठाफल मिल सकता हैं। यही नहीं अन्य स्थाई सदस्यों की मंशा हैं कि चीन के पर कतर कर उसे सीमा में रखने की ठोस रणनीति भी बनाई जा सकती हैं। चीन चाहता हैं कि भारत को यूएन महासभा से दूर ही रखा जाएं ताकि एशिया में भारत एक नई महाशक्ति ना बन सकें। और यदि ऐसा होता हैं तो भारत को एशिया महाद्वीप में चीन और पाक और नेपाल को छोड़कर उन सभी देशों का पूरा समर्थन और सहयोग भी मिल जाएगा जो चीन और पाक के लिए बड़ा शर्मशार करने वाला सिध्द हो सकता हैं। भारत की विदेश नीति और कूटनीति को ना तो आजतक पाक समझ सका हैं और ना ही चीन और नेपाल। पीएम मोदी ने हाल ही में श्रीलंका के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से बातकर दोस्ताना व्यवहार का परिचय देकर वैश्विकमहामारी कोरोना प्रभाव पर बातचीत साझा की हैं। यह नहीं पीएम मोदी ने कुछ दिनों पहले ही दुनिया के कई देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों से दोस्ताना शैली मैं कोरोना महामारी पर चिंता जाहीर करते हुए भारत से वैक्सीन की मदद पर भी खुली चर्चाकर यूएन को एक खुला संदेश पहले ही दे दिया हैं कि भारत दुनिया की सबसे ज्यादा वैक्सिन उत्पादन करता हैं और दूसरे देशों की यथेष्ठ मदद भी करता हैं। पीएम मोदी ने इस तरह दुनिया को मानव मात्र का विकास ,मानवीयता की रक्षा और मानवीय मूल्यों के संवर्धन रक्षा हितार्थ एक गंभीर संदेश भी दिया हैं। जो काम यूएन महासभा ने करना चाहिए थे वे कार्य स्वयं पीएम मोदी ने पहल करके एक भारतीय संस्कृति को मजबूती प्रदान की हैं। क्योंकि भारत जो कहता हैं वैसा वह दुनिया के अन्य मित्र देशों या किसी भी देशों के साथ समभाव रखते हुए परिपालन भी करता हैं। अमेरिका, रूस, फ्रांस,ब्रिटेन,कनाड़ा,जर्मनी आस्ट्रेलिया,जापान,इजराइल,अरब देशों के कई मुस्लिम खाड़ी देश भी भारत को स्थाई सदस्यता दिलाने की पैरवी कर चुके हैं। चीन की संकीर्ण मानसिकता और हड़प नीति के चलते आज कई एशियाई देशों में खौफनाक अनावश्यक युध्द का माहौल बना हुआ हैं। इससे कई एशियाई देशों की आर्थिक, सामाजिक,राजनैतिक व्यापारिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, और सामरिक परिस्थितियां तेजी से प्रभावित हो रही हैं। पीएम मोदी ने इमरान खान के भाषण के बाद अपनी कठोर शैली में दुनिया को आगाह कर दिया कि आंतकवाद को पालने वाले देश,ना किसी के सच्चे मित्र हो सकते हैं और ना ही वे इंसान,इंसानियत और मानवीय मूल्यों के प्रति सहिष्णु हो सकते हैं। दुनिया की इस महासंसद ने ऐसे देशों का भी मूल्यांकन करना चाहिए जो मानवीयता के लिए खतरा बनकर बेगुनाहों की हत्या करके खून की नदियां बहा रहे हैं।.                                     (डॉ तेज सिंह किराड) 


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