80 फीसदी दम्पति 2 बर्ष के बच्चों को गोद लेना चाहते है:डॉ चौबे

80 फीसदी दम्पति 2 बर्ष के बच्चों को गोद लेना चाहते है:डॉ चौबे


दत्तक ग्रहण पर राष्ट्रीय ई संगोष्ठी 


भोपाल 11अक्टूबर (चन्द्र कान्त सी पुजारी) देश में 80 फीसदी दम्पति दो बर्ष से कम आयु के बच्चों को गोद लेना पसंद करते है जबकि भारत से विदेश जाने वाले बच्चों के मामलों में 90 फीसदी परिवार दो बर्ष से ऊपर आयु को प्राथमिकता देते है।लिहाजा 2 बर्ष से ऊपर वाले लाखों बच्चों के दत्तक ग्रहण या पारिवारिक पुनर्वास की बड़ी चुनौती हमारे देश मे खड़ी हुई है।यह जानकारी आज चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने 14 वी ऑल इंडिया ई संगोष्ठी में दी।उन्होंने बताया कि बर्ष2018 -19में कुल 3374 बच्चे देश में गोद लिए गए वही 653 का दतकग्रहन विदेशों में भारत से हुआ है।इनमें भी सर्वाधिक 301 अमेरिका,115 इटली और85 स्पेन में हुए।डॉ चौबे के अनुसार भारत मे अभी भी नवजात बच्चों को गोद लेने की मानसिकता है जिसके कारण अधिक आयु के जरूरतमंद,अभ्यर्पित,समर्पित,अनाथ बच्चों का पारिवारिक पुनर्वास जेजे एक्ट की बुनियादी भावनाओं के अनुरूप नहीं हो पा रहा है।


केंद्रीय दत्तक ग्रहण प्राधिकरण उपसमिति की मानद सदस्य सुश्री कविता भंडारी नई दिल्ली ने ई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में दत्तक ग्रहण के लिए बहुत ही प्रमाणिक औऱ समावेशी कानून सरकार द्वारा बनाया गया है।मौजूदा जेजे एक्ट का परिपालन" हेंग घोषणापत्र" की भावनाओं से उदभूत है जो प्रत्येक बालक को जन्मजात गरिमा औऱ उत्कर्ष की सर्व सुलभता उपलब्ध कराने के लिए वचनबद्ध है।भारतीय लोकजीवन में दत्तक ग्रहण की मौजूदा विधिक प्रक्रिया जागरूकता के मोर्चे पर विकासशील दौर में इसलिए आम जनमानस में अभी इसे लेकर बहुत सी भ्रांतियां है।नया कानून इस मामले में बहुत ही संवेदनशीलता के साथ बालक के सर्वोत्तम हितों को सुरक्षित करने का प्रावधान करता है।केंद्रीय दत्तक ग्रहण एजेंसी,राज्य दत्तक ग्रहण एजेंसी,बाल कल्याण समिति,जिला बाल कल्याण इकाई जैसे स्टेक होल्डर्स को इस मामले में कानूनी शक्तियां प्रदान कर एक जबाबदेह औऱ संवेदनशील भूमिका की अपेक्षा की गई है।


डॉ भंडारी ने बताया कि अभ्यर्पित,समर्पित एवं सरंक्षण योग्य बालकों के हित मे दत्तक ग्रहण एक तरह से राज्य और समाज की कानून सम्मत नैतिक जबाबदेही का काम भी है इसलिये सभी स्टेक होल्डर्स को सर्वप्रथम यही प्रयास करना चाहिये कि ऐसे बालकों को उनके जैविक मां पिता की सरपरस्ती ही सुनिश्चित हो।कानून के अनुसार सबसे योग्य निसन्तान दम्पति को ही दत्तक ग्रहण के लिये प्राथमिकता दी जाना चाहिये।एक सन्तान वाले दम्पति को विपरीत लिंगी बालक का दत्तक ग्रहण करने की अनुमति है लेकिन दो सन्तान वालों को ऐसी सुविधा नही है।आमतौर पर दत्तक ग्रहीता दम्पति औऱ बालक की आयु में 25 बर्ष का अंतर देखा जाना आवश्यक है।दत्तक ग्रहण में बालकल्याण समितियों की महती भूमिका को रेखांकित करते हुए डॉ भंडारी ने बताया कि बालक को दत्तक ग्रहण के लिए पात्र घोषित करने का काम समिति द्वारा किया जाता है इसलिए समिति का यह दायित्व है कि सभी श्रेणियों के बालकों के मामले में यथा संभव जैविक मातापिता को लालन पालन के लिए राजी करें।इसके लिए परामर्श के अलावा राज्य प्रायोजित सभी सहायता कार्यक्रमों की उपलब्धता का भरोसा जिला बाल कल्याण इकाई के माध्यम से करें।बालक का समर्पण अंतिम विकल्प के रूप में ही उपयोग में आना चाहिये।उन्होंने बताया कि जिला बाल कल्याण इकाई को दत्तक ग्रहण के सबन्ध में आवश्यक प्रचार प्रसार स्थानीय स्तर पर करना चाहिये ताकि आम जन इस मामले में गलत लोगों के बहकाबे में न आएं और विधि सम्मत प्रक्रिया का अनुपालन करें।उन्होंने बताया कि यह कानून बालक की गोपनीयता को उच्च प्राथमिकता पर सुनिश्चित करता है इसलिए विहित प्रक्रिया में गोपनीयता का तत्व हमेशा ध्यान में रखना चाहिये।सभी पक्षों की सामाजिक आर्थिक जानकारी से लेकर पश्चावर्ती देखरेख के मामले भी संवेदनशीलता के साथ पूरा किया जाना जरूरी है।


ई संगोष्ठी को रेडियो मन के एमडी राम रघुवंशी ने संबोधित करते हुए बताया कि कोरोना संकट के दौर में बच्चों को मोबाइल के दुष्प्रभावों से बचाने में सामुदायिक रेडियो बहुत ही प्रभावी तरीके से काम कर सकते है।विदिशा में इस मॉडल पर बेहतरीन काम किया गया।बाल हित में रेडियो मन द्वारा विदिशा के आसपास 25 किलोमीटर के दायरे में प्रायः हर घर,दुकान,सार्वजनिक स्थल पर मात्र 100 रुपए में रेडियो सेट स्थापित किये गए है जिन पर नियत समय मे बच्चों से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित होते है।इन कार्यक्रमों को पूरी तरह बाल प्रतिस्पर्धी स्वरूप में डिजाइन किया गया इससे बच्चों में सोशल मीडिया से दूरी निर्मित हो रही है।श्री रघुवंशी ने बताया कि रेडियो के जरिये बाल कल्याण और जेजे एक्ट की नियमित जानकारी प्रसारित होने से बड़ी संख्या में बच्चे रेडियो हेल्पलाइन पर मदद मांग रहे है इसके अलावा आम लोगों में कानून के प्रति जागरूकता भी उतपन्न हुई है।


सीसीएफ की 14 वी ई संगोष्ठी में मप्र के अलावा बिहार,यूपी,आसाम,राजस्थान,दिल्ली,चंडीगढ,छत्तीसगढ़,बंगाल के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।आभार प्रदर्शन उज्जैन के बाल कल्याण समिति अध्यक्ष डॉ लोकेन्द्र शर्मा ने व्यक्त किया।


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