बिहार की चुनावी राजनीति में चिराग के तड़के से नीतीश बेबस 

बिहार की चुनावी राजनीति में चिराग के तड़के से नीतीश बेबस 



                       प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़


                (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)


 


कौन कहता हैं कि राजनीति में जमी हुई सियासत बदलती नहीं हैं यदि मतदता का वैचारिक दृढ़ संकल्प और दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बना लिया जाएं तो पच्चीस सालों की एकमेव सियासती चट्‌टान बनी राजनीति भी तिनके की तरह ध्वस्तहो सकती हैं। लोकतंत्र में ना सत्ता स्थिर है और ना ही किसी नेता का कोई स्थायी बजूद ही कायम रहता हैं।


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बिहार के प्रथम चरण के चुनावी प्रचार प्रसार जैसे ही थमें वैसे ही मूल्यांकनों का दौर आरंभ हो चुका। कयास लगने लगे की 71 सीटों के पहले चरण के मतदान में जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा इस बात पर पार्टी दिग्गजों ने मंथन आरंभ कर दिया हैं। चिराग को लाख नसीहत देने के बावजूद नीतीश कुमार को घेरकर बनाएं रखने की भाजपा की नीति को देश और बिहार के लोग अभी तक  पूरी नहीं समझ सकें हैं। ऐसे में चिराग पासवान के कानों में भाजपा के किस बड़े नेता ने कौन सा मंत्र फूंका हैं इसको जानने की जिज्ञासा आज हर एक जानना और समझना चाहता हैं कि आखिर केन्द्र की राजनीति में रामविलास पासवान का एनडीए को पूरा समर्थन रहा हैं। वहीं बिहार में उनके बेटे चिराग को नीतीश कुमार से इतनी वैचारिक विद्रोहता क्यों हैं? इसे जानने के पहले चिराग को बिहार में एक नेता के रूप में पहचान  नहीं बननें देने के पीछे नीतीश कुमार की एक बहुत बड़ी अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष सक्रिय भूमिका मानी जाती हैं। यह सच हैं कि बिहार में नीतीश कुमार ने अपने सिपहसलारों तक को कभी नहीं बख्शा हैं। जो भी नीतीश कुमार से आगे चलने की कोशिश करता रहा हैं उन्हें नीतीश ने कभी आगे नहीं बढ़ने दिया हैं। यह बिहार की राजनीति में एक बदला लेने वाली राजनीति का सबसे खतरनाक पहलु माना जाता हैं। चिराग ना तो फिल्मी क्षेत्र में एक सफल अभिनेता बनकर उभर सके और ना ही वे पिता की लोजपा पार्टी के कुशल संगठक बन सकें। ऐसे में पिता के बाद लोजपा के अध्यक्ष बनते ही नीतीश कुमार पर भड़ास निकालकर अपना कैरियर चमकाने में लगे हुए हैं। राजनीति में माना और कहा जाता हैं कि यदि कोई छोटा नेता किसी बड़े नेता की आलोचना रात दिन करने लगे तो लोग आलोचना करने वाले को रातोंरात एक बहुत बड़ा नेता मान बैठते हैं। चिराग भी ऐसा ही कुछ वहीं मानकर चल रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण भी हैं जो राजनीति में रातों रात सुपर राजनेता,सांसद, विधायक बन चुके हैं। सिंधिया को सांसद चुनाव में मात देने वाले एक उनके ही कार्यकर्ता को मारा गया थप्पड़ उनकी हार का कारण बन गया। देश की राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं जो एक दूसरे की राजनीति चमकाने और गिराने के कारण देश की राजनीति में कई लोग बड़े नेता बन चुके हैं। चिराग कुछ ऐसा ही सोचकर राजनीति में उतर चुके हैं। पूरे चुनाव प्रचार में चिराग ने नीतीश कुमार को बहुत ही गंभीर शाब्दिक आरोप लगाकर हताश करने की भरपूर कोशिश की हैं। निस्संदेह नीतीश एक मंजे हुए और राजनीति के बड़े अनुभवी राजनेता हैं। किन्तु चिराग भी भाजपा की सरकार बनाने की बात कर रहे हैं और भाजपा नीतीश को समर्थन देकर संयुक्त गठबंधन से सरकार बनाना चाहती हैं ऐसे में यदि नीतीश कुमार भाजपा के साथ सरकार बनाते हैं तो क्या नीतीश कुमार चिराग को अपनी सरकार में मंत्री बना पाएगें? क्योंकि चिराग चुनावी सभाओं,रैलियों में सैकड़ों बार बोल चुके हैं कि भाजपा व लोजपा की सरकार बनते ही नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जाना होगा ! देश की जनता जानना चाहती हैं कि आखिर चिराग पासवान के मन में नीतीश कुमार के प्रति इतनी नफरत क्यों हैं? और सहयोगी भाजपा भी चिराग के इस बढ़बोलेपन पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? आखिर भाजपा चिराग के बोलवचनों से नीतीश कुमार पर कौन सा दबाव बनाना चाहती हैं जो नीतीश कुमार जानकर भी अनजान बनें हुए हैं और भाजपा की नीति को समझतें भी लोजपा के चिराग के विरूध्द कुछ भी बोलने से सरासर साफ बच रहे हैं! ऐसे में बिहार के लाखों मतदाताओं के गले नहीं उतर पा रहा हैं कि आखिर नीतीश कुमार राज्य के मुखिया और वर्तमन चुनाव में सीएम के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने के बवजूद चिराग के खिलाफ कुछ क्यों नहीं एक्सन ले पा रहे हैं? इससे एक बात तो बिहार का मतदाता समझ ही गया हैं कि नीतीश कुमार को भाजपा अंतिम बार एक अवसर देते हुए गठबंधन का रिश्ता निभाना चाह रही हैं। चिराग इस अवसर का लाभ उठाकर अपनी जमीनी पकड़ को मजबूत करना चाह रहे हैं वहीं बिहारवासियों ओर अन्य तमाम क्षेत्रीय दलों को भी चिराग के हवालें से एहसास कराया जा रहा हैं कि भविष्य में भाजपा और लोजपा ही आरजेडी और जेडीयू को कड़ी टक्कर देकर बिहार में एकछत्र युवा नेता चिराग और अनुभवी नेता सुशील मोदी के सहारे ही बिहार में विकास की नई परिभाषा लिखी जाने वाली हैं। चिराग के नीतीश कुमार के प्रति बड़बोले वचनों पर ना ही भाजपा खुलकर कुछ बोल पा रही हैं और ना ही कांग्रेस ने ही कोई टिप्पणी अभी तक चिराग पर की हैं! ऐसे में चिराग का तड़का कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए खास माना जा रहा हैं। चिराग का नरेन्द्र मोदीजी के प्रति प्रेम शब्दों में बयां करना कठिन हैं। भाजपा के लिए बिहार की राजनीति में लालू वंशियों,कांग्रेस और जीतनराम माझी जैसे नेताओं को कड़ी टक्कर देने के लिए चिराग आज एक सरतूरूप का इक्का बनकर सुरक्षित बनें हुए हैं। यह सब भाजपा के हाईकमान दिग्गजों की एक सोची समझी कूटनीति का ही परिणम हैं कि चिराग बिहार में चुनाव के अन्य दो चरणों में भी नीतीश को घेरने से बाज नहीं आने वाले हैं। तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव बंधुओं ने नीतीश कुमार का सम्मान एक पुराने बड़े नेता के रूप में रखते हुए गलत भाषा बोलने से सदैव परहेज किया हैं। लालू यादव पूरे चुनावी घटनाक्रमों पर जेल से ही हर एक पहलू पर नजर जमाएं हुए हैं। तेजप्रताप और तेजस्वी यादव के लिए इसे दुर्भाग्य कहें या लालूयादव के राजनीति दुश्मनों के लिए सौभाग्य साथ एक राजनीति साजिश कोरोना काल के कारण कि लालू यादव ने अपनी पैरोल दिनों को बिहार चुनाव के लिए बचाकर रखा था किन्तु लालू यादव को पैरोल ना मिलना और चिकित्सकीय इलाज में ही जेल से कई बार बाहर रहने के चलते उनकी चुनावी सभाओं को एक राजनीति ग्रहण लगा दिया गया। यह बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि बिहार के चुनाव में लालू यादव के अभाव के पीछे की राजनीति का षड़यंत्र कैसे रचा गया। यद्यपि लालू के बेटों ने भाजपा और नीतीश कुमार को भी चुनावी मैदान में लोहे के चनें दबावा दिए हैं। यह पूरा देश जानता हैं कि बिहार में नीतीश के खिलाफ पूरजोर माहौल बना हुआ हैं किन्तु राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर भाजपा ने बिहार की राजनीति का चुनावी माहौल बिल्कुल बदल दिया हैं। कांग्रेस भी असमंजस्य में पड़ी हुई हैं कि कहीं बिहार एक बार फिर उनके हाथ से ना निकल जाएं। क्योंकि चिराग पासवान की राजनीति मंशा को लेकर आरजेडी जेडीयू और अन्य दल भी पशोपेश में हैं कि चिराग का बोलवचन तड़का किसको लाभ पहुंचा सकता हैं। 


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