कांटे की टक्कर से गुजर रही कांग्रेस और भाजपा 

                         उपचुनाव टिकट :                                       कांटे की टक्कर से गुजर रही कांग्रेस और भाजपा 



                         डां. तेजसिंह किराड़ 


              (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)


मप्र में उपचुनाव सिर पर हैं । भाजपा ने अभी तक चेहरों पर दाव नहीं लगाया हैं। कयासों के घेरे में भाजपा सब ओर से आलोचना का शिकार हो रही हैं। ऐसे में मैदानी जंग जीतने में जुटें उम्मीद लगाए भाजपा के नेताओं का मनोबल भी टूट रहा हैं। आचार संहिता लगी हुई हैं। प्रचार प्रसार में पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों की सरासर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कोरोना को लेकर पहले ही सख्त निर्देश जारी किए जा चुके हैं। किन्तु उपचुनाव सीटोओ के क्षेत्रों में हर कहीं भीड़ का आलम कोरोना फैलाव के खतरें को बढ़ा रहा हैं। सीएम शिवराज के लिए उनके राजनैतिक केरियर की यह सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा हैं तो वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर कमलनाथ पर भरोसा करते हुए प्रत्याशियों के चयन पर बहुत बड़ा दांव लगाया हैं। 


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अठ्ठावीस सीटों का उपचुनावी मैदान लगभग सज गया हैं। किन्तु भाजपा के आलाकमान ने अभी तक चेहरों पर मोहर नहीं लगाई हैं। देश में मप्र और बिहार के चुनाव कोरोना काल में सबसे मंहगें साबित होते दिखाई दे रहें हैं।कोरोना काल के चुनाव का यह मामला देश में मप्र और बिहार के लिए एक अग्नि परीक्षा वाला साबित होने जा रहा हैं। सीएम शिवराज अपनी चौथी पारी को लेकर बहुत उत्साहित हैं तो वहीं नीतिश कुमार के लिए लालूयादव वंशियों की चुनावी रणनीति ने राज्य में कई तरह की कड़ी चुनौतियां पैदा कर दी हैं। दोनों ही राज्य बिमारू राज्य के नाम पर अबतक कई हजार करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट लेकर विकास और सुविधा के नाम पर विगत कई वर्षों से ढोल पीटते रहे हैं। सच्चाई तो केवल राज्यों की जनता ही जानती हैं। इसलिए मप्र सियासत में राजनीतिक पंडितों के सुर भी कुछ बदलें बदलें से नजर आ रहे हैं । सीएम शिवराज के लिए उपचुनाव अपने जीवन की सबसे बड़ी प्रतिष्ठा बन चुकी हैं। क्योंकि सिंधिया के समर्थक जो दलबदल करके भाजपा में आए ऐसे विधायकों को अब उनकी ही पार्टियों के जमीनी कार्यकर्ता से बोलवचन और समन्वयन अभाव के कारण जूझना पड़ रहा हैं। उपचुनाव में भाजपा के 14 मंत्री भी चुनाव लड़ रहे हैं। और दो मंत्रियों तुलसी सिलावट और दीपक राजपूत को 20 अक्टूबर तक ही मंत्री बने रहने की मोहलत हैं, ऐसे में सत्ताई दबाव का प्रभाव भी बहुत कुछ दिखाई देगा। सूत्रों कि माने तो 3 नवम्बर को राज्य की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव होना हैं,उसमें शिवराजसिंह को अपनी सरकार बचाने के लिए हर हाल में कम से कम 9 सीटें जीतनी ही होगी। साथ ही,वर्तमान में सत्ता में बनें बैठे हुए 14 मंत्रियों को भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए एंडी चोटी का जमीनी जोर लगाना पड़ेगा। पंडितों की माने तो यदि किन्ही कारणों से उपचुनाव के मैदानी जंग में कुछ उथल- पुथल होती हैं तो बाद में ऐसे में इन मंत्रियों की राजनीति और मंत्री पद का क्या होगा ? मप्र में उपचुनाव ऐसे में तमाम मुद्दों को लेकर बहुत ही रोचक बन चुका हैं। कांग्रेस अब तक 24 उम्मीदवारों को घोषित कर चुकी हैं। अधिकांश युवा चेहरों को महत्व दिया हैं। वहीं भाजपा अपने आंदरूनी गृह कलह से अभी तक उभर नहीं पाई हैं। गुटबाजी और दलबदलू नेताओं को लेकर भाजपा में ऊपर से लेकर नीचे तक बड़ा जनाक्रोश सब जगह देखने को मिल रहा हैं। कांग्रेस के लिए यह एक अच्छी खबर हैं कि प्रत्याशी घोषित होने के बाद से सभी चेहरों ने अपनी अपनी जमीनी रणनीति को अमलीजामा पहनाना आरंभ कर दिया है। वहीं खबर हैं कि भाजपा के 25 तो कांग्रेस के 10 दलबदलू टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में भाजपा के 12 मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी होने से भाजपा के खेमें में सबसे बड़ी चिंता का विषय बना हुआ हैं। कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव एक संजीवनी हैं । इसलिए करो या मरो वाला क्रिकेटीय दांव बन चुका हैं। वहीं भाजपा की नींद उड़ी हुई हैं क्योंकि ग्वालियर और चंबल अंचल की 16 सीटों पर भाजपा पूरी ताकत झोंकने का मानस बना चुकी हैं। कांग्रेस को यहां से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना ही होगी। वहीं मालवा और निमाड़ अंचल की 7 सीटों पर भाजपा पूरी तरह निश्चंत बनी हुई हैं। सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस को हर हाल में 25 सीटें जीतना ही होगी तभी वह भाजपा को सत्ता से बाहर कर सकती हैं। कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा किसी जादुई करिश्में से कम नहीं लग रहा हैं। कांग्रेस अब सीधे सिंधिया के ही प्रभाव वाले ग्वालियर और चंबल में सेंध लगाने की रणनीति बना चुकी हैं। कांग्रेस को इस क्षेत्र से सबसे बड़ा लाभ और जीत की उम्मीद इन दोनों संभाग की सीटों पर किराड़,किरार और धाकड़ समाज के सबसे बड़े जातीय समीकरण मतदाताओं से मिलने की आशा बनीं हुई हैं। किराड़ समाज के सबसे बड़े राजनीति चेहरों में शुमार पूर्व राज्य मंत्री राजकुमार पटेल हैं जो कांग्रेस के लिए सबसे विश्वसनीय सरतूरुप का इक्का बने हुए हैं। क्योंकि सीएम शिवराज भी किराड़ समाज से हैं किन्तु पटेल और चौहान दोनों ही अपने अपने समाज के मतदाताओं का साथ किस हद तक प्राप्त कर पाएगें यह कहना अभी बड़ा कठिन हैं। खबरों की माने तो विगत चुनाव के नतीजों पर नजर डालने पर भाजपा को इस अंचल क्षेत्र से भारी नुकसान उठाना पड़ा हैं वरना भाजपा को ये उपचुनाव की आज नौबत ही नहीं आती थी और ना ही सिंधिया का कोई भाजपाईकरण होता और ना कोई दलबदल का सहारा लेना पड़ता था। क्षेत्र का किराड़,किरार और धाकड़ बाहुल्य समाज पार्टियों के प्रत्याशियों की चुनावी वैतरणी पार करवानें में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। दोनों ही पार्टियों ने क्षेत्रीय मुद्दों को सरासर भूला दिया हैं। केवल और केवल दांव व पेंच के सहारे ही उपचुनाव लड़ा जा रहा हैं। सत्तासीत भाजपा को कई क्षेत्रों में किसानों के आक्रोश से लड़ना पड़ रहा हैं। कांग्रेस केवल अपने पुराने मुद्दों को लेकर जो भाजपा पूरे करने से परहेज कर रही हैं उन्हें लेकर कांग्रेस क्षेत्र में पूरे दमखम के साथ मैदानें जंग में उतर चुकी हैं। सांवेर की सीट पर भाजपा ने सिलावट के लिए पूरी ताकत झौक दी हैं। सिंधिया के कट्टर समर्थक सिलावट की सीट निकालने के लिए सीएम चौहान को बार बार सांवेर में डेरा डालना पड़ रहा हैं। प्रेमचन्द गुड्डू भी हार मानने वालों में से नहीं हैं। अब यह मतदाताओं का निर्णय है कि वे क्या सोचते हैं ! एक और निमाड़ और मालवा के किसानों को मनाने की हर एक कोशिशें जारी हैं तो वहीं दूसरी और भाजपा ने अभी तक एक भी प्रत्याशी घोषित नही किया हैं। ऐसे में सीटों के क्षेत्रों में एक बड़ा संशय बना हुआ हैं कि आखिर भाजपा आलाकमान ने क्यों करके अभी तक चेहरों पर मोहर नहीं लगाई हैं ! खबर तो यह भी चल रही हैए कि भाजपा को आखिर कौन से मोहरत का इंतजार हैं जो प्रत्याशियों के नाम की सूची जाहीर नहीं कर पा रही हैं। अंदर की खबर तो यह भी हैं कि भाजपा को कई जगहों के सर्वे के परिणामों ने डरा दिया हैं। ऐसे में भाजपा कोई भी कदम उठाने के पहले हर स्तर पर गंभीरता से चेहरों पर दांव लगाने के पहले उनका पूरा मूल्यांकन करना चाह रही हैं।


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