लाशों को उठाने अब कैदियों और सेना की ले रहें मदद
लाशों को उठाने अब कैदियों और सेना की ले रहें मदद
प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़
(वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)
कोरोना की पहली लहर से जब पूरी दुनिया में कोहराम मचा था तब से अब तक ना अमेरिका संभला हैं और ना ही दुनिया के अन्य देशों में कोरोना कवर हुआ और ना ही आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक,सांस्कृतिक घटक पर से कोरोना का ग्रहण हट पाया हैं। अमेरिका के कब्रिस्तानों में लाशों के दफन के लिए कोई जगह तक नहीं बची हैं। कब्र के ऊपर मिट्टी डालकर नई कब्रों में दूसरी लाशों को पनाह दी जा रही हैं। ऐसे हालात अब कई देशों में बनते जा रहे हैं। चिंता की बात हैं।
एक वायरस और मौत का खौफनाक मंजर देखकर हर किसी का दिल दहल सकता हैं। लाशों के ढेर और उठानों वालों का अता-पता नहीं ऐसी दुर्दशा वाला नक्क्षा अब हर देशों में कई छोटे बड़े शहरों में देखने को मिल ही जाएगा। मौत का इतना भयानक मंजर इससे पहले बहुत कम आंखों ने ही देखा होगा। सावधानी और सुरक्षा को लेकर जिस तरह से चिंता जताई जा रही हैं। उसे लेकर केवल और केवल दिखावे के लिए ढोल पीटा जा रहा हैं। सच्चाई तो जमीनी स्तर से कोसो दूर हैं। ना राज्यों की सरकारें गंभीरता से कोई ठोस कदम उठा पा रही हैं और ना ही मुश्तैदी से कोई कठोर कदम उठाकर नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों को गिरफ्तार सबक सींखाया जा रहा हैं और ना ही नसीहत के रूप में आम नागरिक और जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी कोरोना के फैलाव के प्रति शक्ति का प्रयोग कर पा रहें हैं। ऐसे में कोरोना का कन्ट्रोल रेट तेजी से नीचे गिरता जा रहा हैं और मौत का ग्राफ उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा हैं। भारत में कई राज्यों में हालात बदसे बदत्तर होते जा रहे हैं। यदि यहीं हालात बने रहें तो पीएम मोदीजी की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। जिस तरह दुनिया में भारत को हर क्षेत्र में एक बुलंदी तक पहुंचानें में रात दिन मेहनत की हैं उसी तरह मार्च माह से अब तक कई बार सीएम बैठकें, केन्द्रीय स्वास्थ्य समितियों की बैठके,विशेष जांच दलों का गठन और प्रतिदिवस की रिपोर्ट,स्वयं मोदीजी द्वारा बार बार चैनलों के माध्यम से जनता को आगाह करने जैसे कदम उन्होंने उठाएं हैं किन्तु आज हर शहरों में भयावह स्थिति बनती जा रही हैं। हताश और निराश मोदीजी ने एक बार फिर कोरोना नियंत्रण को लेकर राज्य सरकारों के सीएम से सीधे बातें करके शक्ति बरतने की बात कही हैं। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडू में चुनावी सरगर्मी के बढ़ने से कोरोना और भी अधिक अनियंत्रित होता जा रहा हैं। दिल्ली के श्मशान घाटों पर कोरोना मौत के शवों को जलाने और कब्रिस्तानों में सुपुर्दे खाक करने तक की जगह नहीं बची हैं। इससे भयानक हालात अब अमेरिका में पैदा हो चुके हैं। कोरोना के शवों को उठाने के लिए अब अमेरिका में सेना और कैदियों की सेवा ली जा रही हैं। आरंभ में कैदियों ने लाशें उठाने से साफ मना कर दिया था कि वे बिना मजदूरी या मेहतानें के यह काम नहीं करेगें। बाद में अमेरिकी प्रशासन को झूकना पड़ा और कई दिनों से पड़ी लाशों के ठेरों को हटाना आरंभ किया गया। कल्पना कीजिए कि मानवीय लाशों की इस तरह की दूर्दशा पर आज महाशक्ति को उनके ही हमवतन लोगों को आंशु बहाने का अवसर तक नहीं मिल पा रहा हैं। भारत,अमेरिका कि इस भयावह स्थितियों से आखिर कब सबक सींखेंगा ? अमेरिका में तीन लाख के लगभग कोरोना से मौतें हो चुकी हैं। भारत के कुछ राज्यों में तो अब अमेरिका जैसे हालात बनते जा रहे हैं। चीन ने आंदरूनी स्तर पर वैक्सिन को लेकर जरूर कुछ ना कुछ हासील कर लिया हैं जो बिल्कुल शांत और हलचल रहित बैठा हुआ हैं। किन्तु भारत को अपनी ही सरजमीन पर कोरोना अब तेजी से द्वितीय चरण में पहुंच चुका हैं और कई राज्यों की सरकारों से हुई लापरवाहियों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आपत्ति दर्ज कराई हैं। सुको ने दिल्ली महाराष्ट्र,गुजरात और तमिलनाडू और केरल सरकारों को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे समय सीमा में अपने राज्यों की कोरोना हालात कि स्थिति स्पष्ट करें। दुनिया के देशों में कोरोना का रिटर्न होना सबके लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा हैं। आवागमन के तमाम साधनों पर अभी भी मौत का खौफ छाया हुआ हैं। बेरोजगार मजदूरों के लिए काम की तलाश अब एक कठिन दौर से गुजरने वाली प्रक्रिया बन चुकी है। राज्यों सरकारों के आपसी वैचारिक टकरावों से मजदूरों की जीवन शैली प्रभावित हो रही हैं। इस तरह लाखों मजदूरों के सामने रोजगार पाने के लाले पड़े हुए हैं। सरकारें हैं कि सत्ताई दावं पैंचों के चलते मजदूरों के अन्तर्राज्यीय आवागमन पर नये -नये कानून बनाने में जुटी हुई हैं। कोरोन के पहले चरण में भारत में मजदूरों की जो दुर्दशा का चित्रण अभी भी देशवासियों के मन व मस्तिष्क में अंकित हैं। लाखों कुशल और अकुशल कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा हैं। बेरोजगारी के हालात आज भी खौफनाक बनें हुए हैं। बंद पड़े शिक्षा संस्थानों और हर स्तर के विद्यार्थियों का जीवन दांव पर लगा हुआ हैं। कोरोनो को लेकर बनाई गई गाइड लाइन की सरासर उड़ाई गई धज्जियां आज सबके जीवन के लिए खतरा बन चुकी हैं। भारत में कोरोना के काले पन्नों में दर्ज लाशों के आंकडों पर यदि नजर डाले तो भारत में कोरोना से मौत के आंकड़ें आरंभ में दुनिया में बहुत ही कम थे किन्तु जैसे ही लाकडाउन का हटना और राज्य सरकारों की कानूनी शिथिलता, हाटबाजारों में बेतरतीब भीड़ के नजारों,नेताओं की भीड़ में जुटे लोगों का हुजुम,धार्मिक स्थलों पर से हटाएं गए प्रतिबंधों के कारण एकाएक जुटा भावनाओं का जनशैलाब, चिकित्सकीय संसाधनों का कई शहरों और जरूरतबंद जगहों पर नितांत अभाव, कोरोना वारियर्स योद्धाओं की असुरक्षा, निजी अस्पतालों की खुली लूट, सेवाभावी संस्थानों को शासकीय मदद से दूर रखना,मीडिया में अरबों रूपयों के विज्ञापनों पर खर्च किन्तु कोरोना पीड़ित जरूरतमंदों को उनकी महत्वपूर्ण सुविधाओं से वंचित होने पर पीड़ितों का दम तोड़ना असहाय,कमजोर,गरीब और देहाती लोगों को सुविधाओं से महरूम रखने के कारण भारत में मौत का और कोरोना पीड़ितों का भी ग्राफ अब तेजी से बढ़ता जा रहा हैं। भारत में अमेरिका जैसै हालातों का बीजारोपण ना हो सके इस दिशा में अब वैक्सीन का सहारा ही सबसे कारगर उपाय हैं। किन्तु भारत में वैक्सीन को लेकर कई तरह के दांवें प्रतिदावों का राजनैतिक और चिकित्सकीय दौर चालू हैं। फिर भी वैक्सीन को लेकर हर एक भारतीय नई उम्मीदों के साथ रोज जी रहा हैं और अभावों में रोज कई लोग लाशों में तब्दील होते जा रहे हैं। विशाल लोकतांत्रिक भारत में जहां असली भारत आज भी गावों में निवास करता हैं। ऐसे में कोरोना की वैक्सीन ही कोरोना को जड़ से खत्म कर सकता हैं। वरना वैक्सीन के अभावों में और गाईड लाइन की अनदेखी के चलते वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी अमेरिका जैसे हालात देखने को मिलने लगेगें।
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