तुम हो बहती प्रेम की नदियाँ
. तुम हो बहती प्रेम की नदियाँ
तुम्हीं आरंभ तुम्हीं पे अंत, होती दिलबर मेरी दुनिया|
मैं जैसे अचल सरोवर हूँ, तुम हो बहती प्रेम कि नदिया|
मन के तार हैं तुझसे जुड़े ,तिरी धडकन साफ़ सुनती हूँ|
कभी गीतों कभी ग़ज़लों में ,तुम्हें ही आवाज़ देती हूँ|
मैं फूल हूँ तेरे बाग़ की, तुम हो मेरी जीवन बगिया|
मैं जैसे अचल सरोवर हूँ, तुम हो बहती प्रेम कि नदिया|
मेरे उर में तुम बसते हो , मन मंदिर में तुम रहते हो|
मन का शतदल खिल जाता है,जब प्यार कि बारिश करते हो|
रोम – रोम गाने लगता है, सजना प्रेम मिलन की गितिया|
मैं जैसे अचल सरोवर हूँ, तुम हो बहती प्रेम कि नदियाl
मुझे छोड़ कर जब जाते हो, मेरे बालम सुनो परदेश|
कुछ अच्छा ना लगता मुझको, विरहन जैसा हो जाय भेष|
दिन तो मेरा कट जाता है, हाय बस कटती नहीं रतिया|
मैं जैसे अचल सरोवर हूँ, तुम हो बहती प्रेम कि नदिया|
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अंजु दास गीतांजलि.......✍️
पूर्णियाँ ( बिहार )
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