कश्मीर : वनभूमि की लूट करने वालों को कब मिलेगी सजा!

कश्मीर : वनभूमि की लूट करने वालों को कब मिलेगी सजा! 

                      प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़ 

               (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)



रोशनी भूमि घोटाले में फंसें कई बड़े कांग्रेसी नेताओं को अब बाहर निकले का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हैं। फारूख अबदुल्ला से लेकर जो भी बाद में सीएम बनें सबने रोशनी भूमि की फाइलों को केवल दबानें का ही काम किया गया। मनोज सिन्हा के लेफ्टिनेंट गर्वनर बनते ही कांग्रेसियों और अन्य कई दलों की नींद उसी समय उड़ गई थी जिस दिन उन्हें काश्मीर में पूरी तैयारी के साथ भेजा गया था। यह बात बहुत ही कम विश्लेषक जान पाए होगें कि एकाएक काश्मीर में उपराज्यपाल मुर्मूजी को क्यों बदला गया था? कई सच अभी सामने आने बाकी हैं। जम्मू काश्मीर में डीडीसी के चुनाव होना हैं ऐसे में कोई भी पार्टी भाजपा पर हावी ना हो सकें उसके हर तोड़ के भ्रष्टाचारों से जुड़े सारे ब्ल्यू प्रिंट पहले ही बनाकर तैयार कर लिए गए हैं। अब तो केवल बड़ी कानूनी सख्त कार्रवाही होना शेष हैं। क्योंकि देश तो यही कह रहा हैं कि देश के अंदर और बाहर बड़े फैसलों के लिए मोदीजी हैं तो सब संभव हैं ! 

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रोशनी भूमि घोटाला जितना पूराना हैं उतनी ही पुरानी काश्मीर की जन्नत को पलिता लगाने वाले ऐसे नेताओं की अब उम्र भी लगभग ढल चुकी हैं। उन्हें पता था कि प्रकरण या सामने आएगा ही नहीं क्योंकि 370 और 37 धारा कभी हट ही नहीं सकती हैं इसी उम्मीद में बड़े -बड़े घोटाले काश्मीर के सचिवालयों में दबें पड़े हुए हैं किन्तु इन धाराओं का इतिहास पलटते ही अलगाववादियों और सत्तासीन रही पार्टियों की नींद हराम हो चुकी हैं। काश्मीर में अमन चैन और शांति बहाली के बाद से ही नई नई विकास की ठेरों नीति नियोजनात्मक कार्रवाई आरंभ हो चुकी हैं। परन्तु एक राष्ट्र और एक संविधान के बावजूद काश्मीर में चंद देशद्रोही और अलगाववादी नेताओं ने पिछले दिनों मेहबूबा के नक्शे कदम पर राष्ट्रीय तिरंगे का अपमान कर पूरे देश में एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया था। अभी तिरंगे की अग्नि शांत भी नहीं हुई थी कि काश्मीर में कई पार्टियों के शीर्ष नेताओं के वनभूमि घोटालों के भ्रष्टाचार उजागर होने लगे हैं। हाल ही में सीबीआई ने रोशनी कानून के तहत अपने नाम पर वनभूमि हथियानें और कथित अनियमितताओं को लेकर जेके के पूर्व कांग्रेस मंत्री ताज मोहिउद्दीन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। ये मामले सिलसिलेवार पूरी भ्रष्ट टीम पर किया गया। जिसमें पूर्व उपायुक्त एमआर ठाकुर ,अतिरिक्त उपायुक्त मोयु जरगर,राजस्व विभाग के अतिरिक्त उपायुक्त हफिजुल्ला, तहसीलदार जी एच राठोर प्रमुख हैं। ये वन भूमि के तहत तहसीलदार ने 16 जून,2007 को ठाकुर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी जिसमे जमीन के मालिकाना हक के संबंध में 190 मामले रखे गए थे कमेटी ने उनमें से केवल 17 को मंजूरी प्रदान की थी। मौकापरस्त मोहिउद्दीन ने लाभ उठाकर 13 कनाल भूमि पर अतिक्रमण कर लिया। जो कि वन विभाग की जमीन थी। जम्मूकाश्मीर राज्य भूमि मालिकाना हक सौंपने कानून या रोशनी कानून के तहत जमीन को नियमित किए जाने पर कड़ी आपत्ति उठाई थी। कमेटी ने आपत्तियों को नजर अंदाजकर कर कहा कि सभी मामलों का निपटारा कर दिया गया हैं। यह मुद्दा एक बार बड़ा जीन बनकर कब्र से बाहर निकला हैं। कारण एक मोटे अनुमान के आधार पर वनभूमि के इस घोटाले में सरकार को 25 हजार करोड़ रूपयों का घाटा आज की कीमत के हिसाब से आंका गया हैं। सूत्रों कि माने तो वनभूमि के इस भ्रष्टाचार में कई बड़ी मछलियों की सांसें अटकी हुई हैं। कांग्रेस के कई काश्मीरी नेताओं के लिए यह मामला चुनाव के इस माहौल में गले कि हड्डी बन चुका हैं। आज कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए जिस पार्टी से हाथ मिलाकर चल रही हैं उसे भाजपा देशद्रोही मानकर प्रचार कर चुकी हैं क्योंकि राज्य में 370 धारा को वापस हटाने के उनके चुनावी ऐजन्डे को राष्ट्रद्रोही करार कर चुकी हैं। काश्मीर तेजी से बदल रहा हैं। ऐसे में काश्मिरियों के लिए भी और तमाम चुनाव पार्टियों के लिए वनभूमि घोटाला एक बड़ा मुद्दा हैं। कांग्रेस के गुलाब नवी आजाद ने पहले ही अपनों वालों से संगठन में बड़े फेर बदल की बगावत करके नया शंखनाद पहले ही कर चुके हैं।पार्टी में वे पहले से ही हिट लिस्ट में बने हुए हैं। ऊपर से उनका भी नाम वनभूमि में आना सबको चौंका रहा हैं। गुलाब नवी आजाद ने कुछ सोचकर ही कांग्रेस में बगावत की हैं। उन्हें किसी बड़ी पार्टी का जरूर वरद हस्त या बड़ा आश्वासन मिल चुका होगा। क्योंकि काश्मीर में भाजपा अपने पैर जमाने के लिए सब तरह के बलिदान को लेकर तैयार बैठी हुई हैं। यदि वै देर सबेर भाजपा का हाथ थामतें हैं तो उन्हें काश्मीर की विरासत और जन्नत का सुख एक बार फिर से मिल सकता हैं। यद्यपि कांग्रेस देश में धीरे धीरे हर राज्यों में बहुत बड़ा जनाधार खोती जा रही हैं। ऐसे में कई बड़े दिग्गज कांग्रेस छोड़कर भाजपा का हाथ निकट भविष्य में जरूर थाम सकते हैं। उमर, फारूख और मेहबूबा की राजनीति को एक प्रकार से अब ग्रहण लग चुका हैं। क्योंकि ये तीनों देश विरोधी बातें बोलकर काश्मीर में अपनी जगह एक बार फिर से अजमाने की सोच रहें हैं। इसलिए इनके साथ कांग्रेस का जुड़ना भी अन्य राष्ट्र भक्त कांग्रेसियों को रास नहीं आने वाला हैं। इसका खामियाजा कांग्रेस को अपने इस निर्णय के कारण बहुत भारी पड़ सकता हैं। भाजपा काश्मीर के साथ तमिलनाडू और पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत करके कांग्रेस और अन्य वामपंथियों को करारा झटका देने में जुट चुकी हैं। बिहार इसका सबसे बड़ा राजनीति सीखनें का उदाहरण बन चुका हैं। जेयूडी को आगे केवल टुकडों में देखने का मानस भाजपा बना चुकी हैं। आरजेडी के कई मौकापरस्त भी नेता भाजपा का हाथ थाम सकते हैं। मोदीजी ने 2014 में केन्द्र की सत्ता संभालते ही कहा था कि मैं ना तो एक रूपया खाउगां और ना किसी को खाने दूंगा। किन्तु मोदीजी के ही कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप लगे हुए हैं ऐसे मैं भाजपा को भी ऊपर से नीचे तक की सर्जरी करना पड़ेगी। ये भ्रष्टाचार का नासूर भाजपा को पूरी तरह खत्म करना ही होगा। वरना भाजपा की कथनी और करनी में दाग का काला धब्बा भी लग सकता हैं।

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