*इनकी भी दीवाली*

*इनकी भी दीवाली*



         *लेखिका : मीनू त्रिपाठी नोएडा*


दीवाली की शाम सभी जल्दी-जल्दी अपने घरों की ओर बढ़ रहे थे. आसपास लगी दुकानें बढ़ाई जा रही थी ताकि वे लोग भी अपने -अपने घरो में पहुंचकर दीवाली मना सकें.


त्यौहार सुरक्षित और हंसी-खुशी निपट जाए इसलिए पुलिस वाले मुस्तैदी से तैनात थे. 


फुटपाथ के किनारे रेहड़ी लगाए एक किशोर से पुलिस वाले ने, “हटाओ इसे, अब कोई नहीं सामान खरीदेगा... तुम भी घर जाओ.” कहा और आगे बढ़ गया. 


  रेहड़ी वाला सामान समेटने लगा. तभी एक दूसरा पुलिसवाला उस रेहड़ी वाले के पास आकर खड़ा हुआ और पूछने लगा, “ए लड़के, कचौड़ी गली देखी है तुमने


“हाँ साहब, देखी तो है. यहाँ से तीन-चार- फर्लांग पर तो है.”


“हम्म्म...”


पुलिस वाला कुछ सोच में पड़ा तो रेहड़ी वाला फिर बोला “ननकू चाय वाले की दूकान के पास जो बड़ा सा पीपल का पेड़ है उधर से जो गली निकलती है वही है न कचौड़ी गली...”


“अरे बस-बस वहीं... अब ज़रा बढ़िया-बढ़िया तीस-चालीस दीये छांटकर दो मुझे.. और हाँ ये लक्ष्मी-गणेश भी रख देना... और वो कंदील भी...” उसकी बात सुनकर रेहड़ी वाला कुछ उतरे मुंह से दीये छांटने लगा.


पास ही एक औरत अपने छः-सात साल के लड़के के साथ सवारी के इंतज़ार में खड़ी थी. उसने भी रेहड़ी वाले से कुछ देर पूर्व ही लक्ष्मी-गणेश खरीदे थे. 


औरत के मन में रेहड़ी वाले के प्रति कुछ दया भाव उपजे. पुलिस वाले के प्रति व्यंग्य-रोष मिश्रित भाव सहसा तिरोहित हुए जब उसने पुलिस वाले को रेहड़ी वाले की तरफ दो सौ रूपए बढ़ाते देखा... रेहड़ी वाले ने दो सौ रूपये देख अपनी जेब से बीस रूपए निकालकर पुलिस वाले की ओर बढाए तो वह मुस्कराकर बोला, “इसकी तुम कचौड़ी खा लेना और हाँ ये सारा सामान कचौड़ी गली के तीसरे मकान में दे आना.”


 लड़के को असमंजस भरी नजरो से अपनी ओर ताकते देख पुलिस वाले ने उसे स्पष्ट किया... “कचौड़ी गली में जो तीसरा मकान है न वो मेरा घर है. पत्नी और बच्चे होंगे वहां... कह देना हवलदार भीम सिंह ने भिजवाया है. भीमसिंह याद रखना पूछने पर कोइ भी बता देगा मेरा घर.” कहकर वह जल्दी-जल्दी आगे बढ़ गया. 


सवारी आ गयी थी वह औरत अपने बच्चे के साथ उसमें बैठ गयी... बैठने के साथ ही बच्चे ने आश्चर्य से अपनी आँखे बड़ी-बड़ी करते हुए अपनी मम्मी से प्रश्न पूछा “मम्मी-मम्मी, पुलिसवालों के घर भी होते हैं क्या...?


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