महारानी तुलसाबाई होल्कर की पुण्यतिथि पर समर्पित आलेख.

 महारानी तुलसाबाई होल्कर की पुण्यतिथि पर समर्पित                 


                                                                         अखंड भारत आजाद भारत के सपने को साकार करने के लिए असंख्य कुर्बानियां देनी पड़ी थीं । देश को आजादी एक दिन में नहीं मिली है। इसके लिए सदियों तक संघर्ष करना पड़ा था । वीर योद्धाओं के साथ नारी शक्ति के योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता है। जिन्होंने स्वाधीनता की रक्षा के हित अपने शीश कटा दिए थे। ऐसी ही एक नारी अग्रदूत थीं इंदौर के महाराजा यशवंत राव होलकर प्रथम की पत्नी तुलसा बाई होलकर भारतीय इतिहास में एक ऐसी राष्ट्रभक्त महिला थीं जिनका अंग्रेजों से संघर्ष मात्र 12 वर्ष की उम्र में शुरू हो गया था । उन्होंने आलीशान महलों को त्याग दिया और देश में अखंड भारत आज़ाद भारत के उदघोष को बुलंद किया । तुलसा बाई के देश प्रेम से जोधपुर के महाराजा मानसिंह राठौर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुलसा बाई को धर्म बहन बना लिया और अपने राज्य में दो गांव उपहार स्वरूप भेंट कर दिए थे।आज से 204 वर्ष पूर्व महिदपुर में उन्होंने वीरगति प्राप्त कर राष्ट्र को एक दिशा देने का ऐतिहासिक कार्य किया था। परिणाम स्वरूप लोग धर्म -जाति और वर्ग की संकीर्ण भावनाओं को त्याग कर एक सूत्र में आ गए। अंग्रेजों से महिदपुर मैंदान हुई भीषण लडाई में तीन हजार होलकर सेना के जवान शहीद हो गए थे। 

इंदौर की महारानी तुलसा बाई होलकर पुस्तक के लेखक घनश्याम होलकर के अनुसार  28 अक्टूबर सन् 1811ई०को महाराजा यशवंत राव होलकर की मृत्यु के बाद उनका 4 वर्षीय पुत्र महाराजा मल्हार राव होलकर द्वितीय राज गद्दी पर बैठा। तुलसा बाई ने संरक्षक बन कर राज्य की बागडोर संभाली थी ।

लार्ड हेस्टिंग्स के मस्तिष्क में योजना थी कि वह अन्य मराठा शासकों के समान ही होलकर को भी सहायक संधि करने के लिए प्रेरित करें ।इस कार्य के लिए कर्नल जान माल्कम और कर्नल जेम्स टॉड को जिम्मेदारी सौंपी गई ,लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों ने होलकर राज्य में भितरघाती तैयार कर लिए थे। इस बीच भानपुरा ,गंगधार ,आलोट के किले में तुलसाबाई पर हमले हुए। जिनका उस वीरांगना ने बहादुरी के साथ डटकर मुकाबला किया । तुलसा बाई के रोम रोम में देश प्रेम समाहित था वह अपने पति के उच्चादर्शों से प्रेरणा लेकर आर पार की जंग को तत्पर थी।उसने फिरंगियों को उलझाए रखा और अपनी सैन्य शक्ति को युद्ध के लिए मजबूत करती रही। अंग्रेजों के गुप्त उपाय कारगर सिद्ध हुए होलकर के पुराने सेनापति आमिर खान ने अंग्रेजों से समझौता कर लिया। आधुनिक राजस्थान का इतिहास पुस्तक में डा० एम० एस० जैन लिखते हैं कि 9 नवमबर 1817ई० को उसे टोंक की जागीर देकर वहां का नवाब बना दिया गया । उसने अपनी सेना को भंग कर दिया ।अन्य सेना अधिकारी भी ऐसी ही जागीर पाने की को लालायित हो गए जो कि गुप्त रूप से अंग्रेजों से मिल चुके थे लेकिन दिखावे के तौर पर होलकर सेना में मौजूद थे।उस वीरांगना ने अपनी सेना का एक दल महाराष्ट्र में पेशवा की मदद के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध रवाना कर दिया और आलोट किले से महिदपुर की दिशा में बढ़ी उसी दौरान

19दिसम्बर सन् 1817ई०को अंग्रेजी षड्यंत्र के तहत वीरांगना तुलसा बाई और उनके पुत्र महाराजा मल्हार राव होलकर द्वितीय को घेरे में ले लिया । दूसरे दिन प्रातः काल महिदपुर महल के समीप शिप्रा नदी के तट पर विश्वासघाती सैनिकों ने तलवार के वार से तुलसा बाई का सिर धड़ से अलग कर दिया और रक्त रंजित अवशेष नदी में फेंक दिए। इस घटना के चंद घंटे बाद ही कर्नल जान माल्कमम और हिस्लप की संयुक्त सेनाओं ने होलकर के किले महिदपुर पर आक्रमण कर दिया। दोनों ओर से जमकर गोलाबारी हुई।

इस संबंध में मद्रास सेना के एक कर्नल वाकर सेट जान फोर्ट ने इस युद्ध के संस्मरण में लिखा है कि ब्रिटिश सेना बिना किसी जन हानि के शिप्रा नदी पार हो गई।

ए मेमयार आफ सैंट्रल इंडिया में जान माल्कम लिखते हैं 11 वर्षीय महाराजा मल्हार राव होलकर द्वितीय वंश परंपरागत वीरता पूर्वक युद्ध मैदान में डाटा रहा वह हाथी पर बैठकर अपने सैनिकों का उत्साहवर्धन कर रहा था । उसने सैनिकों से पीठ ना दिखाने की प्रार्थना की उसकी 20 वर्षीय विधवा बहन भीमाबाई ने बड़ी ही वीरता का परिचय दिया वह विजय प्राप्त करने के लिए सुंदर घोड़े पर सवार होकर अपने आश्वारोही दल का नेतृत्व रही थी। जब युद्ध चरम सीमा पर चल रहा था ठीक उसी समय गफूर खान ने अपनी सेना के साथ युद्ध मैदान छोड़ दिया।

तुत्फुल्ला नामक एक मुसलमान लेखक अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उन्हें यह मालूम नहीं था जब होलकर की सेना बड़ी बहादुरी के साथ अंग्रेजों को हराने वाले ही थी।उसी समय गफूर खान ने अपने स्वामी के साथ विश्वासघात करके अपने साथ की पूरी सेना सहित मैंदान छोड़ दिया।अंग्रेजों ने गफूर खान को गद्दारी के ईनाम स्वरुप जावरा की जागीर दी एवं नबाब घोषित किया । इस युद्ध में होलकर सेना के तीन हजार सिपही शहीद हो गये। तुलसाबाई की याद में महिदपुर- उज्जैन मार्ग पर तुलसापुर गांव बसाया गया । उनकी  समाधि शौर्य तीर्थ के रूप में महिदपुर किले के समीप शिप्रा नदी के गऊ घाट पर बनाई गई। यहां प्रति बर्ष 20 दिसम्बर को दूर-दूर से देश प्रेमी अमर शहीदों को श्रृद्धासुमन अर्पित करने के लिए पहुंचते है।

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