लोकतंत्र की हत्या के हथकंडों का मंथन

             लोकतंत्र की हत्या के हथकंडों का मंथन



                   प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़

           (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक)

लोकतंत्र में हर एक को अपनी बात शालीनता से कहने और सुनने का सबको संवैधानिक अधिकार हैं। भाजपा कि बढ़ती देश में लोकप्रियता और राज्यों में बढ़ रहे सीटों के वोट के प्रतिशत से देश का हर एक विपक्ष पार्टी का नेता बौखला उठा हैं। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक राजनैतिक पार्टियों में एक हड़कम्प सा मचा हुआ हैं। ममता को अभी से राज्य में सत्ता खोने की चिंता ने उनकी बेहताशा बौखलाहट को देश व दुनिया देख रही हैं। लोकतंत्र में ऐसी स्थिति इससे पहले ना हुई थी ना किसी ने देखी थी और ना कभी चुनावी इतिहास में ऐसे दृश्य देखें गए।


क्या चुनाव की तैयारी करना लोकतंत्र में किसी पार्टी के लिए संवैधानिक रूप से गलत है? क्या मंचीय सभाएं करना गलत हैं? क्या अपने कार्यकर्ताओं के बीच में संवाद साधना गलत हैं? क्या अपने ही देश के किसी अन्य राज्य में गृहमंत्री,प्रधानमंत्री या केन्द्रीय जांच एजेन्सियों का आना-जाना या सभा करना असंवैधानिक हैं ? ऐसे सैकड़ों प्रश्न हैं जो हम सबको विचलित कर सकते हैं। और यह सब केवल पश्चिम बंगाल में अब देखने को मिल रहा हैं। नये वर्ष में वहां पर विधानसभा के चुनाव हैं। हाल ही में कई कार्यकर्ताओं की हत्या,तोड़फोड़,आगजनी,पत्थरबाजी,जैसे कई दौर हो चुके हैं। संभवत यही हालात बनें रहे तो एक दिन सेना के सांये में विधानसभा चुनाव करवाने की नौबत भी आ सकती हैं। ममता बर्नजी की बौखलाहट का यह आलम सब पार्टियों को भी एक सबक हैं कि सत्ता का मोह नहीं रखें वरन जनता का विश्वास जीतनै की कोशिश करें। ममता के भड़काऊ भाषणों में देश के टुकड़े करने की बूं आ रही हैं। ममता सीधे सीधे पश्चिम बंगाल में रोहिंगियों और रिफ्यूजियों को सबसे बड़ा समर्थन करके राज्य में अराजकता का माहौल पैदा करने पर आमादा हो चुकी हैं। एक करोड़ के लगभग बंगलादेशी और इंडोनेशियाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दे कर एक नये विवाद को जन्म दे चुकी हैं। ममता के दुखी होने में सबसे बड़ी बात उनके भतीजे को सत्तासीन करना चाहती हैं। भाजपा प. बंगाल में कमल खिलानें का पूरा मानस जनता को विश्वास में लेकर बना चुकी हैं। ऐसे में कोई भी विपक्ष चुप कैसे बैठे रह सकता हैं। देश की टुकड़े टुकड़े सभी पार्टिया एकजुट होने लगी हुई हैं। विरोध का स्वरूप मर्यादित और शालीनता वाला आज अपना स्तर खोता जा रहा हैं। ममता दीदी को अपने राज्य के विकास से ज्यादा भाजपा के प्रचार प्रसार का टेंसन सताए जा रहा हैं। किसान दिल्ली सीमाओं पर विगत चौदह दिनों से सड़कों पर धरना जमा हुए हैं। अभी तक ना कोई उचित हल निकला हैं और ना ही आगे कि कोई उम्मीद ही नजर आ रही हैं। संसद के दोनों सदनों में संवैधानिक रूप से बहुमत से पास होकर बना कानून आज असंवैधानिक कैसे हो सकता हैं? इसी बिल को लेकर संसद में वैचारिक मंथन हुआ बाद में राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए क्या देश के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर वाले किसी बिल को इसके पूर्व पूरी तरह खारिज किया गया हैं? देश की तमाम राजनैतिक पार्टियों की वैचारिक संवेदनाओं को आखिर ये क्या हो गया हैं कि अपनी पार्टी की राजनैतिक प्रतिष्ठा के लिए हर कोई किसानों को गलत ठंग से बर्गलाया जा रहा हैं। इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य हैं कि किसान और जवान आपस में लड़ रहे हैं और दुनिया और देश के मौकापरस्त लोगों अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं। किसान संगठन भी पूरी तरह राजनीति का शिकार हो गया हैं। कोरोना का भयावह प्रकोप और किसानों का आंदोलन ऐसा लग रहा हैं मानों कोरोना से ना किसानों को भय हैं और ना ही नेताओं को चिंता हैं। आम जनता की फजीहत की अनदेखी सबको बहुत भारी पड़ सकती हैं। प बंगाल में दंगे फसाद और पार्टीगत वैचारिक टकराव ने बहुत ही खतरनाक रूप धारण कर लिया हैं। जान के दुश्मन बन चुकी राजनीति ने एक नवीन परिभाष को प बंगाल में जन्म दे दिया हैं। सत्ता को बचाने कि खातीर लोकतंत्र की हत्या एक गंभीर विषय बन चुका हैं। जेपी नड्डा की सभाओं में हो रहा घमासान कई नये समीकरणों को जन्म दे रहा हैं। मौत जमीनी कार्यकर्ताओं की हो रही हैं और नेता लोग बयान बाजी से पार्टी कि किस्मत चमकाने में लगे हुए हैं। आखिर कबतक गरीबों के कंधों का सहारा लेकर वोट की राजनीति का यह नाटक लोकतंत्र बनाम गरीबों की हत्या के नाम पर खेला जाता रहेगा। न्यायपालिका ने स्वयं संज्ञान लेकर लोकतंत्र में स्वच्छ चुनाव के लिए कारगर और ठोस पहल करना ही होगी अन्यथा चुनाव में ना तो वोटिंग का प्रतिशत बढ़ेगा और ना ही राजनीति के सही मायनों को नई पीढ़ी समझ सकेगी। भारत की बढ़ती लोकप्रियता में देश की आंतरिक राजनैतिक दलों की खींचतान से निस्संदेह लोकतांत्रिक साख प्रभावित हो रही हैं। जय जवान,जय किसान और जय विज्ञान के सुंदर नारे का भाव देश की नई छोटी पीढ़ी पर गबरा प्रभाव डाल रहा हैं। कोरोना के कारण अपने घरों में बैठें स्कूली बच्चे सुशांत की मौत के बाद,वालीवुड की डर्टी गांजेवाली पिच्चरे देख चुके हैं और अब किसानों को सड़कों पर लड़ते -झगड़े देख रहे हैं। वहीं प बंगाल की गंदी राजनीति का भी बारिकी से मूल्यांकन बच्चे कर रहे हैं। इस के तमाम राजनैतिक दलों के हर नेताओं को दो काम देश हित में करने की शपथ दिलाई जानी चाहिए एक नई पीढ़ी के मन मस्तिष्क को देश की स्वच्छ राजनीति की परीक्षा सींखाने की और दूसरी लोकतंत्र के संवैधानिक आम नागरिकों के जीवन मूल्यों की रक्षा सुरक्षा करने की। आज हर कोई राजनीति पार्टी केवल हर किसी को दिकभ्रमित करने में जुटी हुई हैं जो कि एक सबसे बड़ा खतरा राष्ट्र की सुरक्षा को लेकर उत्पन्न हो चुका हैं। प बंगाल के वर्तमान हालातों को देखकर चिंतन करने की सबसे बड़ी जरूरत हैं।

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