हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं

 

हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं


पानी में कागज का घर बना रहे हैं लोग 
सूरज को ही अब रोशनी दिखा रहे हैं लोग।

हमीं से सीखकर मोहब्बत का ककहरा
आज हमें ही मोहब्बत सिखा रहे हैं लोग।

है पता जबकि की टांग की टूटेंगी हड्डियां
फिर भी हर बात पर टांग अड़ा रहे हैं लोग।

थी मांगी दुआएं जिनके लिए मैंने कभी
बददुवावों से मुझको नवाजे जा रहे हैं लोग।

जग हंसाई की चिंता को कर दरकिनार
खून के रिश्ते से ही सींग लड़ा रहे हैं लोग।

सियासी शैतान हवाओं को बिना समझे ही
मजहब के नाम पे खून बहा रहे हैं लोग।

कलम से कायम,दिलों पे बादशाहत अपनी
पर जानबूझ के मेरा दिल दुखा रहे हैं लोग।

आशीष तिवारी निर्मल
एच एन लालगांव
रीवा मध्य प्रदेश।

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