विपक्षी दल भारत बंद का समर्थन कर दोगलापन जाहिर कर रहे हैं-गुलाबचन्द कटारिया

विपक्षी दल भारत बंद का समर्थन कर दोगलापन जाहिर कर रहे हैं-गुलाबचन्द कटारिया


जयपुर, 7 दिसम्बर। भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया ने कहा कि जिन राजनीतिक दलों ने कृषि बिल के मसौदे का समर्थन किया था, वे ही राजनीतिक पार्टियां भारत बंद का समर्थन कर रही है, जिससे उनको दोगलापन जाहिर हो रहा है। 

कटारिया ने कहा कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट की रिकमेंडेशन के आधार पर लाए गए हैं बिल। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इस बिल को लाने की बात कही थी। नीति आयोग की बैठक में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए।

कटारिया ने कहा कि सभी की मंशा को कृषि कानूनों में शामिल किया गया है। भारत बंद के समर्थन में नम्बर वन पर कांग्रेस पार्टी है। राजस्थान के कृषि बिल कानूनी रूप से जामा नहीं पहन सकते।

कटारिया ने कहा कि हरियाणा में बाजरे की खरीद 2100 में है, लेकिन हमारे राज्य में किसान 1300 के भाव के बेच रहा है, एमएसपी के आधार पर देश भर में खरीद होती रही है होती रहेगी। 70 साल में पहली बार भारत के किसान को आजादी मिली है कि वे अपनी फसल की खुद कीमत तय कर कहीं भी कभी भी बेच सकता है, ऐसे किसान कल्याणकारी फैसले का भी विपक्षी दल विरोध कर किसानों को गुमराह करने का षडयंत्र कर रहे हैं, जिसमें वो कभी सफल नहीं होंगे। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया के साथ प्रेसवार्ता में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष मुकेश दाधीच, प्रदेश मंत्री श्रवण सिंह, प्रदेश मीडिया प्रभारी विमल कटियार मौजूद रहे।

गुलाबचन्द कटारिया की प्रेसवार्ता के महत्वपूर्ण बिन्दु:-

कृषि सुधार कानून पर राजनीतिक दलों का दोगलापन

 मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में जो पार्टियां शामिल थीं या फिर जिन्होंने समर्थन दिया था, उनमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, डीएमके, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, लेफ्ट और टीएमसी समेत कई राजनीतिक दल थे। उस दौरान इन सभी पार्टियों के लोगों ने इस किसान बिल को लेकर अपना समर्थन दिया था, परंतु आज ये सभी पार्टियां कांग्रेस के साथ मिलकर इसका विरोध कर रही हैं। किसानों का अहित करने में ये सभी पार्टियां बराबर की दोषी हैं।

आज इन पार्टियों के नेता जनता में अपना विश्वास खो चुके हैं। ये निर्दोष किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहे हैं। किसानों के हितों की बलि चढ़ा रहे हैं।

पिछले कई सालों से हम सबने देखा है कि देश में कहीं पर भी कोई भी आंदोलन हो, अपना अस्तित्व बचाने के लिए ये लोग उसमें कूद पड़ते हैं और अराजकता फैलाने का प्रयास करते हैं। अपना वजूद बचाने के लिए अपनी विचारधारा और अपने सिद्धांतों को छोड़कर तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए मैदान में उतर आते हैं।

किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं ने प्रारंभ से ये कहा कि इसमें पॉलिटिकल पार्टियों को एंट्री नहीं देंगे। परंतु आज जो हो रहा है, उससे किसान हितों को समर्पित और जीवनभर किसानों की सेवा करने वाले लोगों को भी गहरा धक्का लगा है। 

जिस कृषि सुधार कानून का आज तमाम राजनीतिक पार्टियां पुरजोर विरोध कर रही हैं, विरोध में भारत बंद तक का आह्वान कर चुकी हैं, उसे लेकर इन राजनीतिक दलों के सुर पहले एकदम अलग थे। 

इन पार्टियों के दोगले रवैये पर एक नजर:-

कांग्रेस पार्टी- 

जो कांग्रेस पार्टी आज इस बिल का सबसे मुखर विरोध कर रही है और किसानों को भ्रमित कर रही है, उसी कांग्रेस पार्टी ने इस बिल को 2019 के अपने घोषणापत्र में  शामिल किया था। उनके घोषणा पत्र में साफ-साफ लिखा था, “कांग्रेस Agricultural Produce Market Committees Act को निरस्त कर देगी और कृषि उत्पादों के व्यापार की व्यवस्था करेगी, जिसमें निर्यात और अंतर-राज्य व्यापार भी शामिल होगा, जो सभी प्रतिबंधों से मुक्त होगा।” उनका यह घोषणापत्र अब भी उनकी वेबसाइट पर देख सकते हैं। ये बातें उनके मेनिफेस्टो में पेज नंबर 17 के प्वाइंट नंबर 11 में दर्ज है। 

 कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में वादा किया था कि वह Essential Commodities Act को खत्म कर उसकी जगह ECA 1955 के नाम से नया कानून लेकर आएगी। इसे भी उनके घोषणा पत्र के पेज नंबर 18 में देखा जा सकता है। 

27 दिसंबर, 2013 को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि कांग्रेस शासित राज्य APMC Act के तहत फलों और सब्जियों को delist कर देंगे, ताकि उनके दाम कम किए जा सकें। मगर आज जब हमारी सरकार ने ऐसा कर दिया तो किसानों को भड़काने में राहुल गांधी ही सबसे आगे हैं।

आप ये जानकर भी हैरान हो जाएंगे कि 2014 में दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार के जाने के पीछे कांग्रेस ने सब्जियों और फलों के लिए कृषि बाजार सुधार में कमी को जिम्मेदार बताया था।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी

कृषि सुधार बिल पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दोगला चरित्र सामने आ गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार जब यूपीए सरकार में देश के कृषि मंत्री थे, तब ये इन कृषि सुधारों को लागू करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे, परंतु आज अपने ही फैसले से यू टर्न लेकर केंद्र सरकार को नसीहत दे रहे हैं।  

इसके लिए पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने अगस्त 2010 और नवंबर 2011 के बीच सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था। उन्होंने बार-बार Model APMC एक्ट को लागू करने औरState APMC Acts में संशोधन के लिए कहा था। उन्होंने मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया था, ताकि किसानों को प्रतिस्पर्धा के लिए वैकल्पिक माध्यम के साथ-साथ बेहतर दाम मिल सके।

अगस्त 2010 में लिखी चिट्ठी में शरद पवार जी ने इस बात पर जोर दिया था कि भारत के ग्रामीण इलाकों में कृषि क्षेत्रों के संपूर्ण विकास, रोजगार और आर्थिक प्रगति के लिए बेहतर मार्केट की जरूरत है और इस जरूरत को Model APMC एक्ट पूरा करता है।

आपको बता दें कि मई 2012 में तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार का राज्यसभा में एक औपचारिक जवाब भी दर्ज है। इसमें उन्होंने खुलकर Agriculture Marketing Reforms का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि “कुछ सिफारिशें पहले ही स्वीकार की जा चुकी हैं, जैसे Agri-procurement के उदारीकरण का प्रस्ताव३ हमने सभी राज्यों के सहकारिता मंत्रियों से APMC एक्ट में संशोधन करने का अनुरोध किया है।”

लेकिन वही शरद पवार आज इन कृषि सुधारों का न केवल विरोध कर रहे हैं, बल्कि किसानों को इसके लिए भड़का भी रहे हैं। 

डीएमके

डीएमके आज मोदी सरकार के कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रही है। और इस मुद्दे पर भारत बंद का भी समर्थन कर रही है, लेकिन यही डीएमके 2016 के विधानसभा चुनाव में कृषि सुधार बिल को अपने घोषणापत्र में शामिल कर चुकी है। 

डीएमके ने उस समय अपने मेनिफोस्टो में वादा किया था कि सरकार में आने पर वो किसानों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाजार उपलब्ध कराने के लिए एपीएमसी एक्ट में संशोधन करेगी, ताकि किसान बिना किसी बिचौलिए के अपनी उपज को अधिक से अधिक दाम पर बेच सकें। यही नहीं, इसके लिए उसने Comprehensive Agriculture Produce Marketing Exchange बनाने का भी वादा किया था। 

आम आदमी पार्टी

किसानों के आंदोलन से आज दिल्ली वाले ही सबसे ज्यादा परेशान हैं। लेकिन दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी ही किसानों को भ्रमित करने और भड़काने में सबसे आगे है। इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दोहरा रवैया भी जगजाहिर हो चुका है। 

भारत बंद का आगे बढ़कर समर्थन करने वाले केजरीवाल की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। एक तरफ तो आम आदमी पार्टी नए कृषि कानूनों का विरोध कर रही है, वहीं दूसरी तरफ उसने इस कानून को 23 नवंबर को ही लागू भी कर दिया। और इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है।

स्वराज पार्टी (योगेंद्र यादव)

किसान आंदोलन में घुसकर चेहरा चमकाने वाले और भारत बंद का ऐलान करने वाले योगेंद्र यादव बिन पेंदी का लोटा साबित हुए हैं। स्वराज पार्टी बनाने वाले योगेंद्र यादव कुछ समय पहले तक कृषि सुधारों के नाम पर मोदी सरकार को घेरते थे, आज वो कृषि सुधार किए जाने के बाद किसानों को न केवल भड़काने में जुटे हुए हैं, बल्कि भारत बंद के नाम पर आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई को भी रोकने पर आमादा हैं। 

मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर योगेंद्र यादव ने आरोप लगाया था कि सरकार एपीएमसी एक्ट को लेकर कुछ नहीं कर रही है। लेकिन आज वही योगेंद्र यादव यूटर्न लेकर इस पर राजनीति करने में जुट गए हैं। योगेंद्र यादव का ये पुराना स्टैंड आज भी सोशल मीडिया पर उपलब्ध है।

अकाली दल

कृषि सुधार कानूनों पर अकाली दल का आज जो रवैया है, वो कुछ दिनों पहले तक नहीं था। 12 दिसंबर, 2019 को एग्रीकल्चर पर स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में अकाली दल के सांसदों के बोल कुछ अलग ही थे। उस दिन उन्होंने कहा था कि एपीएमसी भ्रष्टाचार और राजनीति का अड्डा बन चुकी है और वहां बिचैलियों और दलालों का बोलबाला रहता है। यही नहीं, उन्होंने कहा था कि एपीएमसी किसानों के हित में नहीं है। 

इसके बाद 3 जून, 2020 को जब इस पर अध्यादेश लाया गया, तब भी अकाली दल सरकार के उस फैसले के साथ था। अकाली दल की मंत्री हरसिमरत कौर उस निर्णय का हिस्सा थीं। उस समय अकाली दल ने कोई विरोध नहीं किया था। लेकिन आज अकाली दल के सुर एकदम अलग हैं।

समाजवादी पार्टी

हमने देखा कि किसानों के आंदोलन में किस प्रकार समाजवादी पार्टी भी अपनी सियासी रोटियां सेंकने में जुट गई हैं। यहां तक कि भारत बंद परभी बढ़-चढ़कर समर्थन कर रही हैं।

लेकिन जब संसद की स्टैंडिंग कमेटी में चर्चा हो रही थी, तब समाजवादी पार्टी के सांसद मुलायम सिंह यादव का रुख अलग ही था। 12 दिसंबर, 2019 को एग्रीकल्चर पर स्टैंडिंग कमेटी की जो रिपोर्ट आई, उसके मुताबिक मुलायम का बयान समाजवादी पार्टी के दोगलेपन को प्रदर्शित करता है। मुलायम ने तब सुझाव देते हुए APMC की आलोचना की थी और कहा था कि इससे किसानों को नुकसान हो रहा है। 

शिवसेना

कृषि पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी में शिवसेना के सांसद विनायक भाऊराव राउत भी सदस्य थे,  जिन्होंने APMC के बारे में मुलायम सिंह यादव, कांग्रेस और एनसीपी समेत अन्य दलों के साथ मिलकर सुझाव दिया था। आज शिवसेना भी अलग राग अलाप रही है।

टीएमसी

टीएमसी के लोकसभा के सांसद अबू ताहिर खान ने भी स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में कहा था कि APMC को बदलना चाहिए।

लेफ्ट पार्टी

हम सब जानते हैं कि यूपीए सरकार लेफ्ट पार्टियों के समर्थन से चल रही थी। उस दौरान सरकार पर लेफ्ट पार्टियों को पूरा प्रभाव था। यूपीए सरकार के दौरान कृषि सुधार को लेकर योजना आयोग की रिपोर्ट में बड़े-बड़े सुझाव दिए गए। पंचवर्षीय योजना 2007-2012 के लिए एपीएमसी मंडियों को हटाने की बात कही गई थी। जिसका कुछ राज्य सरकारों ने भी पालन करना शुरू कर दिया था। लेकिन आज लेफ्ट राजनीति के लिए किसानों का नुकसान करने पर आमादा है।

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