श्री पानी चालीसा
श्री पानी चालीसा
दोहा
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अति दोहन मानव किया,धरा गर्भ भण्डार।
जीना मुश्किल हो गया, बिन तेरे दातार।।
बिना आप के देव जल, नहीं चले संसार।
हर प्राणी और जीव के,
हो जीवन आधार।।
चालीसा
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जय हो जगत जलेश्वर स्वामी।
विश्व धरा पर तुम हो नामी।।
सुंदर रूप लिए अति भारी।
स्वास्थ्य रूप में हो गुणकारी।।
शान्त रूप में लगे सुहाना।
मधुर ध्वनि से मन को भाना।।
बूँद बूँद में गुण है सारा।
रंगहीन है बदन तुम्हारा।।
शाम रहे या होइ सवेरा।।
सबके साथ मिलन है तेरा।
बस गये नैंन नीर महाराजा।।
तुम बिन नहीं होइ शुभ काजा।।
सलिल देव अपनी पर आये। उसकी थाह नहीं कोई पाये।।
गुस्से में अतिवृष्टि भारी।
सर्व नाश की जब तैयारी।।
प्रलय रुप में अति भयंकर।
चलें साथ में पत्थर कंकर।।
सभी जगह है पहुंच तुम्हारी।
नहीं बचे ये दुनियां सारी।।
बिना हाथ और पैर के चलता।
रस्ता मिले जिधर चल देता।।
चाल चले चंचल अति भारी।
तेज धार तलवार से न्यारी।।
रुप विशाल बने जब तेरा।
उखड़ जाए मानव का डेरा।।
मारग में जो भी आ जावे।
उसका नाम निशां नहीं पावे।।
रूप भयंकर दो दृष्टि में।
अनावृष्टि और अतिवृष्टि में।।
जब अकाल सूखा बीमारी।
नहीं किसी ने हिम्मत हारी।।
पानी का संकट था भारी।
मटकी लेकर दौड़ी नारी।।
कोसों भगते घर के सारे।
कहां जांयें सब प्यास के मारे।।
करें रातभर नल की पूजा।
आप ही देव और नहीं दूजा।।
केवल काले बादल आयें।
मन को रोज घना तरसायें।।
नदी नहर तालाब भी सूखे।
बिना आपके पेड़ भी रूखे।।
जैसी मानव की है करनी। भोग रहा है अपनी भरनी।।
दया दृष्टि तेरी हो जावे।
जीव जन्तु को गले लगावे।।
बनकर मेघ खुशी में आये।
और धरा पर तू छा जाये।।
कोयल कूके मस्त सवेरा।
बागौं में नाचे फिर मोरा।।
धरती पर हरियाली छाई।
जीवन में खुशियां भर लाई।।
फूल खिले हैं द्वारे द्वारे।
लगते हैं तेरे जयकारे।।
घूमन लागे कीट पतंगा।
उड़ते हैं मन होकर चंगा।।
हुआ लालची धन का मानव।
जंगल काटे बनकर दानव।।
रोज कार्बन गठरी खोले।
नभ के पथ पर धुंआं घोले।।
छेड़ा है नेचर का चेहरा।
बदला समय चक्र भी तेरा।।
क्षमा करो हे जीवन दाता।
रखता मानव धन से नाता।।
करो दया भूमि पर आकर।
तृप्त आत्मा तुझको पाकर।।
ऊंच नींच काभेद न पाया।
सभी जीव को गले लगाया।।
आज न इसको व्यर्थ बहाओ।
अमृत की हर बूँद बचाओ।।
मां धरती की गोद है खाली।
व्याकुल है जीवन की डाली।।
जल का संगम जीवन ज्योति।
कदर करो अनमोल है मोती।।
रोकें अगर नीर बर्बादी।
तभी सुरक्षित है आबादी।।
जगत धरा जल संकट होगा। विश्व युद्ध पानी पर होगा।।
नीर संग ह्रदय आलीशा।
है गौरव पानी चालीसा।।
दोहा
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नत मस्तक है आप को, हे पानी महाराज।
बिना आप के कुछ नहीं, बिगड़े सारे काज।।
है सारे संसार में, महिमा बड़ी महान।
दीपक यों जलते रहें, घर घर हिन्दुस्तान।।
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चालीसाकार
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इन्जी. ओउमवीर सिंह मालान जयपुर
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