तितली वाले पर कर दो

                        तितली वाले पर कर दो 


                                                                                    आ जाओ एक बार मकां को खुशबू वाले घर कर दो,             रंग बिरंगे चटख गुलाबी तितली वाले पर कर दो l


उमड़ रहा है रंग बसंती, निखरी सपनों की गलियाँ,                 डाली डाली लदी सलोनी, आम्र सुवासित मंजरियाँ l                             गालों पर पुलकित रंगों ने फिर से प्यास बढाई है,                      भीनी भीनी गन्ध हवा ने कलियों तक फैलाई हैl


आशा उत्सव कोई मनाए आकर तुम सच गर कर दो,               रंग बिरंगे चटख गुलाबी तितली वाले पर कर दो l

हर हर बह फागुन बयार फूलों की देह झिंझोड़ गयी,            पागल पछुआ छोड़ उसांसे कमल वनों में दौड़ गयी l.                                इधर पीत वन अमलतास, ठिठका है झंझावातों से,                       नींद तड़पती मन्नत धरती, रूठ गयी है रातों से l                 छोटे छोटे पंख लगा कर राका एक पहर कर दो,                    रंग बिरंगे चटख गुलाबी तितली वाले पर कर दो l


ख्वाबों के बेकाबू धड़कन को हरगिज आराम नहीं,               आग लगाता है टेसू, इसको भी कोई काम नहीं l                                  भ्रमर गुलाबों से गुपचुप हंस हंस कर बातें करता है,                      और रूह के मनुहारों पर, मादक चुम्बन धरता है l            अरमानों के ऋतुमंगल पर वैभव की झालर कर दो,                रंग बिरंगे चटख गुलाबी तितली वाले पर कर दो l


प्रहर नहा श्रृंगार सज़ा कर, नई दमक को साथ लिए,             हवा पिया संग छमछम चलती नर्म हाथ में हाथ लिए l                          पहचानी सी कोई गमक, मन को मानो भरमाती है,                       चौपालों से रह रह कर थापें ढोलक की आती हैं l.                 भरे उजाला फिर बाँहों में, रातों को दुपहर कर दो,                रंग बिरंगे चटख गुलाबी तितली वाले पर कर दो l

                   कंचन पाठक, कवियित्री,लेखिका.

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