मंत्रियों की दास्तां

 मंत्रियों की दास्तां 

कोई तो कमी थी हमारी वरना हटाएं नहीं जाते 



                    (प्रोफे. डां. तेजसिंह किराड़) 

                वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक 


बड़े आलम से गुजर रहे थे सत्ता के ये  दिन,ना जाने किसकी नजर लगी और सत्ता से हटा दिए गए। आज इसी दर्द को लेकर सत्ता के गलियारों में बस एक ही चर्चा हैं कि मोदी ने अपने दिग्गजों को दरकिनार कर नये चेहरों को जिन्हें केन्द्र की सरकार के नियोजन और कार्य नीति का इतना अनुभव भी नहीं हैं और उन्हें एकाएक देश की सत्ता के शिखर तक पहुंचा दिया। मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करके नये चेहरों से एक नई चौरस की बिछात करके विपक्षों और जन्मजात विरोधियों को करारा जवाब भी दे दिया हैं। कोरोना काल की राजनीति के कई उतार-चढ़ाव देशवासियों ने और विदेशी राजनीतिज्ञों ने बहुत ही करीब से देखें भी हैं। पूरे देश में मोदी की राजनीतिक रणनीति और विदेशी कूटनीति का जिक्र आज जोरो पर हैं। जो दूसरें दलों से भाजपा में आए थे वे आज केन्द्र की सत्ता में जगह पाकर जीवन को धन्य बता रहे हैं वहीं कुछ चेहरें ऐसे भी बैं जिन्हें अपने पद गवानें पड़े हैं उन्हें ना रात में नींद आ पा रही हैं और ना दिन में किसी के पास जाकर अपनी पीड़ा का जिक्र कर पा रहें हैं। हटाए गये मंत्रियों के नामों का जिक्र करने के बजाए यह जानना जरूरी हैं कि लोकतंत्र में एक जनता के प्रतिनिधि की जवाबदेही और विश्वसनीयता कितना मायने रखती हैं। मोदी ने हर बार देशवासियों से अपनी वचनबद्धता दोहराई हैं कि सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास। यह मंत्र यदि कोई उनका मंत्री नहीं मानता हैं तो उसे बाहर का रास्ता तो देखना ही था। जरूर कहीं कुछ तो कमी थी वरना इतने अनुभवियों को अपने पद से पदच्युत नहीं होना पड़ता था। इस घटना को लेकर मोदी क्या सोचते हैं यह भी आम जनता के लिए जानना  बेहद जरूरी हैं। मोदी 2024 के चुनाव को लेकर अपने अवाम के बीच कुछ नया लेकर आना चाहते हैं ताकि विकास के आर्थिक तंत्र की गाड़ी को शिक्षा की चाबी से चलाते हुए जनता के विश्वास रूपी पेट्रोल के द्वारा फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं। किन्तु उनके कुछ मंत्रियों को ये बातें ना तो हिंदी में समझ में आई और ना ही क्षेत्रीय भाषा में उन हटाए गये मंत्रियों के गले के नीचे उतर पाई। खामियाजा मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। मोदी मंत्र को जनता तक पहुंचानें में नाकाम रहे मंत्रियों को मोदी की बहुआयामी विकासमूलक योजनाओं की परिभाषा का अर्थ समझ में ही नहीं आया और वे केवल अपनी ढपली अपना राग अलापने में ही सदैव मशगूल बनें रहे। देश को जब उनके विभागों से जुड़ी लाभान्वित करने वाली योजनाओं की जरूरत थी तब ये तमाम हटाए गये मंत्रीगण ना तो मीडिया से रू-ब-रू हुए और ना ही उन्होंने जनता के बीच जाकर उनका दुख दर्द समझनें की कोई कोशिश की। अकेले मोदी,शाह राजनाथ,गड़करी के विकासवादी भरोसे पर अपनी कमियों को दबाकर चलने वाले मंत्रियों को जनता ने बहुत पहले ही उनकी नीतियों को लेकर नकार दिया था। इधर जब उप्र में एक अकेले योगी ने कई पार्टियों को नाकों चने चबवा दिए तो योगी उतनी ही डबल ताकत के साथ देश की राजनीति में सिरमौर बनकर उभरकर आए हैं। जिला पंचायतों के चुनाव में बेमिसाल उपलब्धि और जनसंख्या कानून की नई इबारत से कई नेताओं की और नौकरशाहों की भी नींद उड़ गई हैं। मोदी ने जनसंख्या कानून बनाने के लिए बहुत पहले ही शुभ संकेत अपनी दूसरी पारी के घोषणा पत्र में दे दिए थे।फिर आज नेताओं और मौलवियों को जनसंख्या कानून में मतभेद ना देखते हुए सहज और स्वीकार्य खुला संवाद करने से कोई परहेज़ नहीं करना चाहिए। बढ़ती आबादी और अर्थतंत्र पर बढ़ता दबाव किसी भी विकसित,विकासशील और विकासोन्मुख देश के लिए नि:संदेह बड़ा घातक हैं। कोरोना माहमारी ने जनसंख्या ओर महामारी के बीच के संबंध को बहुत ही स्पष्ट रुप से निष्पक्ष समझा दिया हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति  के महत्व को जमीनी स्तर पर पहुंचानें में ना तो मानव संसाधन व विकास मंत्रालय कुछ कारगर प्रयास कर सका और ना ही कानून मंत्री जनसंख्या कानून के मसोदे का आम जनता में प्रचार प्रसार करवा सकें। स्वयं प्रकाश जावडेकर अपने विभाग के माध्यम से मोदी मंत्र को जनहित में जमीन तक पहुंचानें में कुशल कारीगर न बन सके और ना ही कोरोना काल में देशवासियों के जानमाल की रक्षा को स्वास्थ्य मंत्रालय के मंत्री ने गंभीरता से  समझा और ना ही समय पर कोई ठोस कदम उठाए। नतीजन विपक्ष हर बार मोदी को कटघरें में खड़ा करने की रणनीति बनाने में कामयाब होते चले गए। कभी ना थकने वाले और हार ना मानने वाले मोदी ने विपक्ष को साधते हुए अपने मंत्रियों की कमियों को भी गंभीरता से मूल्यांकन किया और उन्हें आराम देना ही बेहत्तर समझा ताकि इनकी नाकामियों का असर 2024 के लोकसभा चुनाव और निकट भविष्य में होने वाले कुछ राज्यों के चुनावों पर ना पड़ सके। उप्र में अपराधियों के जुल्म और राज का खात्मा तथा तमाम विपक्षियों की महत्वाकांक्षाओं को निराशा में बदलने में योगी ने जो रणनीति रची हैं उसमें अब सभी पार्टियों के नेताओं का दम घुटने लगा हैं। औवेसी के बड़बोले पन के वीडियो पर लगाम कसने में जावड़ेकर का मंत्रालय बिल्कुल नाकाम साबित हुआ हैं। यही नहीं प. बंगाल के चुनावी माहौल में मची हिंसा को भी जनता और मतदाताओं के बीच पहुंचानें में सूचना और प्रसारण मंत्रालय एकदम नाकाम साबित हो चुका था इसी का खामियाजा प्रकाश जावडेकर को पद से हटकर अपना बलिदान देकर चुकाना पड़ा हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया  को देर सबेर मप्र के उठापटक की राजनीति का पुरस्कार मंत्री पद के रूप में मिलना ही था। नहीं तो अंदर की घुटन से एक नया भूकम्प या ज्वालामुखी जरूर फूटना ही था। भला हो ज्योतिरादित्य सिंधिया का जो केन्द्र में चले गये वरना सीएम शिवराजसिंह चौहान के लिए निकट भविष्य में कई मुसीबतें मप्र में जन्म लेने वाली  थी। सूत्रों की माने तो मप्र में सीएम चौहान से अभी भी कई मंत्रीगण नाराज चल रहें हैं।

मप्र, गुजरात और महाराष्ट्र में देरसबेर कई चौकाने वाले फैसले होने वाले हैं। अंदर ही अंदर गडजोड़ और तोड़ की राजनीति एक नई व्यूह रचना को जन्म  दे रही हैं। उत्तराखंड में एक साल में तीन सीएम की नियुक्ति और फिर भी बदलाव के तूफान का मंजर अभी भी थमा नहीं हैं। सीएम धामी को भी डर सताएं जा रहा हैं कि उनकी शनि की दशा कब बदल जाए पता नहीं। मोदी ने केन्द्र के मंत्रिमंडल में फेरबदल करके साफ संकेत दे दिए हैं कि सत्ता में दोस्ती नहीं जनता की सेवा सर्वोपरि हैं। सत्ता में कोई अनुभव नहीं काम करने वालों का जुनून चाहिए। सत्ता में पद लेकर बैठने वाला नहीं जनता के बीच पहुंचकर जनता के आंशु पोछने वाला चाहिए। मोदी की इस परिवर्तनवादी परिभाषा से विपक्ष के मुंह पर भी एकाएक मानो ताला जड़ गया हैं। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ हैं और मीडिया योगी की उपलब्धियों को गिनाने में मशगूल हो गया हैं।

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