शादी का वादा करने के बाद इरादा बदलने का हक खत्म कर देना क्या जायज है?

शादी का वादा करने के बाद इरादा बदलने का हक खत्म कर देना क्या जायज है?

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  शादी का वादा करने के बाद इरादा बदलने का हक खत्म कर देना क्या जायज है?
हिंदुस्तान में रोज बहुत से प्रदेशों में ऐसे मामले पुलिस में दर्ज होते हैं जिनमें किसी लडक़ी या महिला से शादी का वादा करके देह संबंध बनाने और बाद में शादी न करने की शिकायत रहती है। कानून कुछ ऐसा है कि ऐसे मामलों को शादी का झांसा देकर रेप करने के तहत दर्ज किया जाता है, और इनमें खासी लंबी सजा का भी इंतजाम है। बहुत से ऐसे मामले रहते हैं जिनमें ऐसी शिकायतकर्ता लडक़ी या महिला, ऐसे लडक़े या आदमी के साथ वर्षों तक लिव इन रिलेशनशिप में भी रहती है, लेकिन शादी न होने पर वे रिपोर्ट लिखवाती हैं, और कानून में उसकी गुंजाइश है इसलिए ऐसे लडक़े या आदमी की गिरफ्तारी में अधिक समय भी नहीं लगता। इस बारे में कुछ प्रदेशों के हाईकोर्ट ने समय-समय पर शक जाहिर किया है कि क्या सचमुच ऐसे मामलों को बलात्कार मानना चाहिए, या फिर यह बलात्कार के दायरे से बाहर रखना चाहिए। हमने इस अखबार में ऐसे मामलों को लेकर साफ-साफ लिखा है कि इन्हें बलात्कार मानना गलत होगा और ऐसा लिखने पर बहुत सी महिला आंदोलनकारियों ने हमारी आलोचना भी की है कि यह महिला विरोधी नजरिया है। ताजा मामला दिल्ली का है जिसमें एक नाबालिग को शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार किया गया था, और उसकी रिपोर्ट पर मामला दर्ज हो गया है।

भारत में महिला को कानून में खास हिफाजत मुहैया कराई गई है, और इसलिए इन मामलों में महिला के बयान को ही सुबूत मान लिया जाता है, और इनमें बलात्कार या सेक्स  शोषण जैसे मामले रहते हैं। जिस समाज में महिला सदियों से कुचली चली आ रही है, वहां पर उसे बराबरी का दर्जा देने या सुरक्षा देने के लिए ऐसा कानून जरूरी भी था। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या समाज के किसी एक कमजोर तबके को उसका जायज हक दिलाने के लिए कानून ऐसा बनाया जाए जिसका एक बड़ा बेजा इस्तेमाल भी हो सकता हो? दिल्ली की जिस घटना को लेकर आज इस मुद्दे पर यहां लिखा जा रहा है उसमें तो शिकायत करने वाली लडक़ी नाबालिग है और इसलिए उसके साथ किसी बालिग का देह संबंध, अनुमति से बनाना भी जायज नहीं है, और कानूनन जुर्म है। इसलिए जो कुछ हम लिखने जा रहे हैं वह इस मामले पर लागू नहीं होता है लेकिन दूसरे बहुत से ऐसे मामले हैं जिनके बारे में एक मानवीय और सामाजिक नजरिए से सोचने की जरूरत है।

यह कोई नई बात नहीं है कि शादी के पहले लोगों के सेक्स संबंध बनें, हिंदुस्तान जैसे दकियानूसी समाज में भी लंबे समय से ऐसा चले आ रहा है और इसके पीछे दो वजहें हैं। एक तो किसी लडक़ी या महिला की अपनी शारीरिक जरूरतें रहती हैं जिन्हें पूरा करने के लिए वह किसी से संबंध बना सकती है। दूसरी बात यह कि शादी हो जाने की एक उम्मीद से भी वह किसी आदमी के सामने समर्पण कर सकती है कि शायद इसके बाद शादी हो जाए। यह दूसरी वजह ऐसी है जो कि भारत की सामाजिक व्यवस्था से पैदा हुई है जहां पर किसी भी लडक़े या लडक़ी के बालिग हो जाने पर उसके शादी कर लेने की सामाजिक उम्मीद एक बहुत बड़ा पारिवारिक दबाव बना देती है। 20-25 बरस के होते ही परिवार से लेकर पड़ोस तक, और रिश्तेदारों तक के दबाव पडऩे लगते हैं कि कब हाथ पीले हो रहे हैं, कब शादी हो रही है। और चूँकि लडक़ी की शादी उसके परिवार पर एक बड़ा आर्थिक बोझ भी रहती है, इसलिए भी लडक़ी पर यह मानसिक दबाव रहता है कि वह किस तरह अपने परिवार का बोझ कम कर सकती है। इसके अलावा पारिवारिक स्तर पर तय हुई शादी में लडक़ी की कोई मर्जी तो रहती नहीं है, और जो लडक़ी अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है, वह भी ऐसी शादी अपने बूते पर करने के लिए कई बार किसी लडक़े के सामने उसके सुझाये अपने बदन को खड़ा कर देती है। कुल मिलाकर यह कि हिंदुस्तान में जब शादी की उम्मीद में किसी लडक़ी या महिला को किसी के सामने एक समझौता करना पड़ता है, तो वह निजी जरूरत का कम रहता है पारिवारिक और सामाजिक जरूरत का अधिक रहता है। इसलिए इस बात को समझने की जरूरत है कि इस देश में शादी को जितना जरूरी करार दिया जाता है, उसकी वजह से भी लड़कियों पर शादी का रास्ता निकालने का एक दबाव बनता है।

दूसरी बात को भी समझने की जरूरत है कि लडक़े-लड़कियों के बीच या औरत-मर्द के बीच बिना शादी के भी प्रेम संबंध बनते हैं, जो देह संबंध तक पहुंचते हैं, जो पूरी तरह से दोनों की सहमति के रहते हैं। हो सकता है कि इस बीच किसी एक ने दूसरे से शादी का वायदा किया हो, और यह भी हो सकता है कि ऐसा वायदा करते समय सच में ही उसकी नीयत आगे चलकर शादी करने की रही हो, लेकिन बाद में किसी वजह से शादी ना हो पाना, या बाद में मन का बदल जाना या साथी का शादी के लायक न लगने लगना भी हो सकता है। और ऐसे इसे देह संबंध बनाने के लिए दिया गया झांसा मान लेना ज्यादती की बात होगी। बहुत से मामलों में तो सगाई होने के बाद भी शादी टूट जाती है और इस दौर में अमूमन न तो कोई देह संबंध बनता है न कुछ और। तो इसे क्या कहा जाए? लोगों के विचार समय के साथ-साथ सचमुच बदल भी सकते हैं। इसलिए अगर प्रेम संबंध और देह संबंध को अनिवार्य रूप से शादी में बदलने की शर्त रख दी जाए, तो ऐसी शर्त की गारंटी इन संबंधों की शुरुआत में ही कौन दे सकते हैं? इसलिए यह सिलसिला कुछ ज्यादती का लगता है. दो बालिग लोगों के बीच आपसी सहमति से प्रेम हो, आपसी सहमति से देह संबंध बने, और उसके बाद उन दोनों के बीच शादी को लेकर अगर कभी कोई बात हुई थी तो उसे पूरा न होने की नौबत आने पर इस संबंध को बलात्कार करार दे देना, यह इंसाफ की बात तो नहीं लगती।

महिलाओं के अधिकारों को लेकर लडऩे वाले लोगों को यह बात खटक सकती है लेकिन अखबार में लगातार महिलाओं के अधिकारों के लिए लिखते हैं, और बहुत से मुद्दे ऐसे भी उठाते हैं जो कहीं चर्चा में नहीं रहते, फिर भी यह बात लगती है कि इंसाफ को किसी एक तबके के अधिकारों से भी ऊपर मानना चाहिए, और किसी तबके के हक इंसाफ के नजरिए से ही तय होने चाहिए। अगर लोग प्रेम संबंध और देह संबंध बनाते हुए इसी तनाव और फिक्र में रहेंगे कि उनके साथी आगे चलकर उन्हें बलात्कार में जेल भेज सकते हैं, तो इससे लोगों के संबंधों में शुरू से ही एक अविश्वास पैदा हो सकता है, जो कि प्रेम और सेक्स दोनों को खराब कर सकता है। इस बारे में अधिक विचार-विमर्श की जरूरत है, लोगों के बीच सार्वजनिक बहस होनी चाहिए कि क्या शादी के वायदे के बिना कोई संबंध बन ही नहीं सकते या शादी का वायदा करने के बाद लोगों का अपना इरादा बदलने का हक़ खत्म हो जाता है? और अगर लोग अपना इरादा बदल लें, तो क्या पहले का वह आपसी सहमति का बालिग रिश्ता बलात्कार करार दिया जाए?

इस बारे में सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए

सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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