वास्तु अनुसार घर का मुख्य द्वार

 वास्तु अनुसार घर का मुख्य द्वार


                        (डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज) 

कभी कभी वास्तु के दो-चार टिप्स जानकर लोग स्वयं को वास्तुविद् घोषित कर देते हैं और किसी के भी मकान या  दुकान में बिना जिज्ञासा के भी सलाह देने लगते हैं। ऐसे लोग प्रायः दोष ही गिनाते हैं। जिस मकान या दुकान में बदलाव संभव ही नहीं है, उसमें दोष बता देने से गृहस्वामी उद्विग्न रहने लगता है, उसके मन में यह बात घर कर जाती है कि उसका मकान/दुकान सही नहीं है। इस कारण वह अपना कार्य निर्वाध और निश्चिन्तता पूर्वक सम्पन्न नहीं कर पाता है।
पहले तो हमें मुख्य द्वार की दिशा देखना आना चाहिए अन्यथा भ्रमित हो जाते हैं। द्वार पर बाहर की ओर मुख करके खड़े हो जाने पर हमारा मुख जिस दिशा की ओर होता है वह द्वार का दिशा-मुख कहलाता है। हम मुख्य द्वार पर खड़े होकर बाहर की ओर देख रहे हैं, हमारा मुख पूर्व की ओर है तो वह पूर्वाभिमुख द्वार कहलायेगा। इसी तरह अन्य दिशाओं का समझना चाहिए।
मकान का मुख्य द्वार बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह बात सही है कि पूर्व अथवा उत्तर में स्थित द्वार सर्वोत्तम माना जाता है तथा वह सुख-समृद्धि देने वाला होता है। लेकिन कई बार जाने अनजाने में या मजबूरी के चलते मुख्य द्वार दक्षिण या पश्चिम में करना पड़ता है। दक्षिण या पश्चिम में मुख्य द्वार वाले अनेक लोग भी बहुत सुखी व समृद्ध देखे जाते हैं। मुख्य द्वार के संबंध में एक महत्वपूर्ण बात ध्यान देने योग्य है, वह है कि जिस ओर राजमार्ग हो अर्थात् मुख सड़क हो उसी ओर मकान/दुकान का मुख्य द्वार बनाना चाहिए, चाहे कैसा भी वास्तुविद् आपको कोई भी सलाह दे, पर मुख्य सड़क जिधर हो उसी ओर मुख्य द्वार बनाना चाहिए, चाहे दक्षिणाभिमुख हो या पश्चिमाभिमुख हो।
मुख्य द्वार निर्माण करवाते समय एक-दो बातें और ध्यान रखना चाहिए- यदि पूर्व दिशा की दीवार में मुख्य द्वार बनवा रहे हैं तो वह उत्तर की ओर झुका होना चाहिए। ‘झुका होने’ से मतलब है पूरी दीवार का दक्षिण की ओर का आधा भाग छोड़ कर उत्तर दिशा की ओर के आधे भाग मंे कहीं भी द्वार होना चाहिए। उत्तर दिशा की दीवार में मुख्य द्वार बनवायें तो वह पूर्व की ओर झुका हो। पश्चिम में बनवाने पर उत्तर की ओर झुका हो और दक्षिण में बनवाने पर पूर्व की ओर झुका हो।
  कहते हैं घर के मुख्य द्वार से लक्ष्मी का प्रवेश होता है और सभी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा भी वहीं से आती है, इसलिए मुख्य द्वार के बाहर गंदे पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। यह आपके घर में वास्तुदोष होने का मुख्य कारण माना जाता है। अगर गलती से गंदे पानी का जमाव घर के पश्चिम दिशा में हो तो धन का नुकसान होने की आशंका बढ़ जाती है।
इसके अलावा घर के मुख्य द्वार के सामने भूलकर भी कांटेदार पौधे नहीं लगे होने चाहिए और न ही आपके घर से ऊंचे वृक्ष होने चाहिए। ऐसा होने से आपके शत्रुओं में इजाफा होता है और आपकी तरक्की रुक जाती है। इसके अलावा परिवार में मतभेद होते हैं और सेहत भी बिगड़ी रहती है।
यही नहीं मुख्य द्वार के सामने कभी भी ऐसे डस्टबिन न रखें कि आते-जाते आपकी नजर उस पर पड़े। इसके अलावा घर के सामने कूड़े का ढेर भी नहीं लगा होना चाहिए। यह कष्टदायी होता है और धन हानि को बढ़ावा देता है। इसके अलावा आपके घर के ठीक सामने यदि बिजली का खंबा होता है तो भी आपकी तरक्की में बाधा उत्पन्न होती है। ऐसा होने लक्ष्मी के आपके घर में प्रवेश में भी बाधा आती है।
वास्तु के जानकारों के अनुसार अक्सर देखने में आता है कि लोग सजावट के लिए अपने घर के आगे बेल वाले पौधे लगा लेते हैं और बेल को घर के सबसे सामने की दीवार पर चढ़ा देते हैं। वास्घ्तु में इसे दोष माना गया है। इससे आपके शत्रुओं की संख्या बढ़ती है और विरोधी आपके खिलाफ साजिश रचने लगते हैं। माना जाता है कि घर के सामने की दीवार पर बेल चढ़ने से पड़ोसियों से भी खटपट रहती है और घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है।
इसके साथ ही कई बार ऐसा भी देखा गया है कि सड़क निर्माण के बाद आपके मुख्य द्वार से ऊंची हो जाती है। ऐसी सड़क का होना बहुत ही कष्टदायी होता है। इसे एक बड़ा वास्तुदोष मान जाता है। यदि आपका मुख्य द्वार भी ऐसा हो गया है तो बेहतर होगा कि मरम्मत करवाकर इसे सही करवा लें और मुख्य द्वार को सड़क से ऊंचा करवा लें।
द्वार का अपने आप खुलना या बंद होना अशुभ है। द्वार के अपने आप खुलने से उन्माद रोग होता है और अपने आप बंद होने से दुख होता है।  मुख्य द्वार के सामने वृक्ष होने से गृहस्वामी को अनेक रोग होते हैं। कुआं होने से मृगी तथा अतिसार रोग होता है। खंभा एवं चबूतरा होने से मृत्यु का भय होता है। बावड़ी होने से अतिसार एवं संन्निपात रोग होता है। कुम्हार का चक्र होने से हृदय रोग होता है। शिला होने से पथरी रोग होता है। भस्म होने से बवासीर रोग होता है। 
यदि आपको लगता है कि आपका दक्षिण या पश्चिम मुखी मकान दुष्प्रभाव दे रहा है तो नीचे दर्शाये गये कुछ उपाय करने से दुष्प्रभाव से बचाव होता है।
1. दक्षिण दिशा में नीम का एक पेड़ लगवाएं। 2. दक्षिण की तरफ दरवाजा हो तो एक आदमकद दर्पण लगवाया जा सकता है जिसमें प्रवेश करने वाले वयक्ति का प्रतिबिम्ब दिखाई दे। 3. दक्षिण की तरफ द्वार हो तो पश्चिम, उत्तर, पूर्व और ईशान की ओर खिड़किया लगवाना चाहिए इससे दक्षिण के बुरे प्रभाव बंद होते हैं। 4. दक्षिण दिशा के दोष से मुक्ति पाने के लिए गणेश जी की पत्थर की दो मूर्तियां लें जिनकी पीठ आपस में जो दें। इसी जुड़ी गणेश प्रतिमा को मुख्य द्वार के बीचोंबीच चौखट पर फिक्स कर दें, ताकि एक गणेश जी अंदर को देखें और एक बाहर को।
मेन डोर के लिए सॉफ्ट कलर्स का इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे वाइट, सिल्वर या वुड कलर. वास्तु के मुताबिक, गहरे रंग जैसे काला, लाल और गहरे नीले का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ध्यान रहे कि मेन एंट्रेंस हमेशा घड़ी के घूमने की दिशा और अंदर की ओर खुलने चाहिए।
जो 10-12 वर्ष से अधिक पुराने मकान हैं और उनमें निवास करने वाले दिनानुदिन सुख-समृद्धि प्राप्त कर रहे हैं तो लाख किसी के सलाह देने पर भी उन्हें वास्तु में फेर-बदल नहीं करवाना चाहिए। क्योंकि जमीन में अन्दर प्राकृतिक रूप से बहने वाले पानी की दिशा के कारण भी वास्तु अनुकूल या प्रतिकूल होता है।

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