सचिन पायलट ने किया है कर्नल बाबा के अरमानों का मर्डर

 पूर्व विधायक व फिल्मकार डॉ.भैरों सिंह गुर्जर की कलम से गुर्जर समाज को खरी खरी..


*विजय बैसला के बढ़ते कद से सचिन पायलट की बौखलाहट उजागर हुई*


*सचिन पायलट ने किया है कर्नल बाबा के अरमानों का मर्डर*



*एक मुस्लिम महिला से शादी करने वाला अब गुर्जरों को अक्कल सिखाएगा क्या?*



*पुष्कर में बसी गुर्जरों के पूर्वजों की आत्माएं सचिन पायलट को माफ नहीं करेगी*

*पायलट खानदान अब तक कर चुका है कई गुर्जर राजनीतिज्ञों की राजनीतिक हत्या*

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यदि आपकी रगों में गुर्जर खानदान का खून बह रहा है व आप एमबीसी के सदस्य हैं तो यह आलेख आपके लिए है, पढ़कर के सच्चे दिल से मनन कीजिएगा क्या मैं गलत हूं? सिर्फ चमचागिरी या उकसावे की नियत से इस आलेख को पढ़कर खामखां कुटिल राजनेताओं की चाल के शिकार होने से बच जाएंगे।

आप सभी जानते हैं सचिन पायलट के पिताजी राजेश पायलट उत्तर प्रदेश से आकर के राजस्थान की राजनीति में जमे थे परंतु राजेश पायलट में कुछ खूबियां थी जिसकी वजह से राजस्थान के गुर्जरों ने उन्हें सिर माथे पर बिठा कर के रखा लेकिन उनके स्वर्गवासी होते ही सबसे पहले उनकी धर्मपत्नी रमा पायलट को सांसद बनाया गया। रमा पायलट राजनीति में असफल सिद्ध हुई और उसके बाद जब स्वर्गीय राजेश पायलट के सुपुत्र सचिन पायलट एक कुटिल चाल के साथ राजस्थान की राजनीति में अपने पैर जमाने लगे तो राजस्थान का गुर्जर सावधान हो गया। आखिर यह हो क्या रहा है? क्या राजस्थान की गुर्जरियों ने गुर्जर पैदा करने बंद कर दिए जो कभी उत्तर प्रदेश से, कभी हरियाणा से, कभी दिल्ली से आकर के राजस्थान में सांसद व विधायक बन जाते हैं और राजस्थान के गुर्जर समाज को आपस में लड़ा कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते हैं। हे गुर्जरो, मेरे समाज के सरदारों व वीरांगनाओं मेरे खुले आलेख को दिल से पढियेगा और मनन कीजिएगा।

राजस्थान का गुर्जर समाज मुझे इस बात का जवाब दे कि जब स्वर्गीय कर्नल किरोड़ी सिंह जी बैंसला राजस्थान के गुर्जर समाज के लिए, राजस्थान के गुर्जर युवाओं के लिए, राजस्थान के गुर्जर बेरोजगारों के लिए, समस्त एमबीसी के बेरोजगारों के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे थे तब क्या एक दिन भी सचिन पायलट ने कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला जी के विचारों का समर्थन किया था? लोकसभा या विधानसभा में राजस्थान के गुर्जरों के आरक्षण की मांग उठाई थी? क्यों नहीं उठाई? वे अपने आप को गुर्जर नेता साबित करना चाहते हैं वे अपने आपको राजस्थान का भावी मुख्यमंत्री समझते हैं, राजस्थान की धरती पर उत्तर प्रदेश से आकर राजनीति करते हैं तो क्या उनका धर्म और कर्तव्य नहीं बनता था कि कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला जी के आंदोलन की बात को लोकसभा और विधानसभा में उठा करके उन्हें सहयोग करते?

*(आलेख के बीच में मैं आप सभी कोई स्पष्ट कर दूं कि स्वर्गीय राजेश पायलट जी को मैंने हमेशा अपना बड़ा भाई समझा था तथा जब सचिन पायलट व सारिका पायलट मात्र 3 - 4 वर्ष के थे तो मैंने इन्हें गोद में खिलाया है और मैं पूरा हक रखता हूं कि इन्हें अपनी बात कहूं।)*

सचिन पायलट ने कभी भी कर्नल बैसला जी के विचारों से, उनके आरक्षण आंदोलन से सहमति नहीं रखी क्योंकि सचिन पायलट इस बात को जानते थे राजस्थान का गुर्जर में यदि राजनीतिक चेतना आ गई तो उनका राजनीतिक धरातल खिसक जाएगा। इस वजह से वह सदैव कर्नल बैसला जी के आरक्षण आंदोलन के विरोध में कान भरते रहे। 20 वर्षों की लड़ाई के बाद कर्नल बैसला जी का आरक्षण आंदोलन सफल रहा और राजस्थान के गुर्जरों को उनका हक मिला। राजस्थान के गुर्जर बेरोजगार प्रशासनिक पदों व राजकीय सेवाओं में जगह-जगह चयनित होने लगे तो सचिन पायलट के होश फाख्ता हो गए। वैसे तो धरती पर कोई अमर नहीं आया है लेकिन कर्नल बैसला जी ने अपना जीवन पहले तो देश की सेवा को समर्पित किया और एक सैनिक के नाते देश की सीमाओं की रक्षा की उसके बाद अपना जीवन राजस्थान के गुर्जर समाज सहित एमबीसी समाज को समर्पित कर दिया और आखिरकार वे तब तक जीवट के साथ लड़ते रहे जब तक उनकी सांसे थम नहीं गई। आज का आरक्षण केवल और केवल मात्र कर्नल बैसला जी की ताकत से ही मिला है किसी भी राजनीतिक नेता या किसी राजनीतिक पार्टी की शख्सियत ने हमें आरक्षण की कोई सौगात नहीं दी है यह कर्नल बैसला जी की हिम्मत थी जो आज राजस्थान में हमारे बेरोजगार आरक्षण प्राप्त करके सुरक्षित हो गए हैं।

आज कर्नल बैंसला तो हमारे बीच में नहीं रहे परंतु उनके द्वारा दिलाए हुए आरक्षण के ऊपर अभी तक तलवार लटक रही है। जब तक संविधान की धाराओं में इस आरक्षण को लिख नहीं दिया जाएगा तब तक कोई भी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय हमारे आरक्षण को कभी भी समाप्त कर सकता है। 20 वर्षों के बाद 20 वर्षों की लड़ाई के बाद प्राप्त हमारी सफलता को कोई भी न्यायालय चंद सेकंड के फैसलों में चौपट कर सकता है। इस बात को कर्नल बैंसला के सुपुत्र विजय बैंसला वह उनके परिवार ने भाग्ंप लिया तथा कर्नल बैंसला के सपनों को आगे बढ़ाने के लिए जब विजय बैंसला ने बागडोर अपने हाथ में ली और समस्त राजस्थान का दौरा करके एमबीसी समाज को जागृत किया कर्नल बैसला जी की अस्थियों का एमबीसी समाज ने राजस्थान के कोने कोने में सच्चे मन से श्रद्धा पूर्वक स्वागत करके नमन किया और उसकी पूर्णाहुति 12 सितंबर को पुष्कर में की जा रही थी अस्थि विसर्जन होना था और पूरे हिंदुस्तान को एक संदेश जाना था कि कर्नल बैंसला नहीं रहे तो क्या हुआ कर्नल बैंसला के सपनों को ताकत देने के लिए उनके सुपुत्र विजय बैंसला आगे आ गए हैं और राजस्थान के एमबीसी समाज की लड़ाई जारी रहेगी तो सचिन पायलट के कान खड़े हो गए और सचिन पायलट ने वह सब कुछ कर दिया जिससे राजस्थान के गुर्जरों सहित राजस्थान के एमबीसी समाज के सपनों को कुचलने का कुटिल खेल पूरा कर दिया।

स्वर्गीय कर्नल बैंसला के पुत्र विजय बैंसला ने जो संदेश हिंदुस्तान भर की राजनीतिक पार्टियों को देना चाहा और यह बताना चाहा कि राजस्थान में गुर्जर समाज या एमबीसी समाज अब ताकतवर है अपना हक मांगने लगे हैं वे अब राजनीतिक सोच में भी जागृत हो गए हैं और यह बताया कि 75 सीटों पर वे अपना हक रखते हैं मात्र छह सात सीटों पर अब संतुष्ट नहीं रहेंगे और राजस्थान में सियासत करने वाली राजनीतिक पार्टियों ने भी इसको बात को समझ लिया की राजस्थान का गुर्जर समाज अन्य बड़ी कौम जैसे जाट और राजपूतों से कहीं कमजोर नहीं है, गुर्जरों का उनको हक देना पड़ेगा लेकिन कहीं यह हक विजय बैसला के हाथों गुर्जरों को नहीं मिल जाए बस इसी खेल को समाप्त करने के लिए पुष्कर में सचिन पायलट ने अपने चमचों और चहेतो से जो हंगामा करवाया इस हंगामे ने राजस्थान के गुर्जर समाज व समस्त एमबीसी समाज के सपनों को चौपट कर दिया।

राजस्थान में किसी भी पार्टी से कोई सांसद या विधायक बनता है तो राजस्थान के गुर्जरों की ताकत पर बनता है वे किसी सचिन पायलट जैसे नेता की ताकत से टिकट नहीं लाते हैं या सचिन पायलट जैसे नेताओं के कहने से समाज उन्हें वोट नहीं देता है समाज उन नेताओं को स्वीकार करता है तब उन्हें विधायक व सांसद बनाता है। आखिर सचिन पायलट को आगे बढ़ते राजस्थान के जाए जन में गुर्जरों से नफरत क्यों है?

*(मैं आपको एक दृष्टांत देना चाहता हूं जब 1990 में राजस्थान की कांग्रेस पार्टी ने मुझे मेरे पैतृक की स्थान बांदीकुई से विधानसभा का टिकट दिया था और मैं चुनाव लड़ा था तो राजेश पायलट जी के कान खड़े हो गए थे, वे नहीं चाहते थे कि दौसा जिले से कोई ऐसा गुर्जर राजनीति में आ जाए जो तेज तर्रार हो और उनके लिए खतरा उत्पन्न कर दे। बस उन्होंने जनता दल से गुर्जर को खड़ा किया, निर्दलीय रूप से एक मीणा व बैरवा को खड़ा किया तथा इस भैरों सिंह गुर्जर को 2300 वोट से 1990 में कांग्रेस के टिकट पर हरवा दिया था। यही नहीं उसके बाद मुझे जब कांग्रेस पार्टी ने 1993 में खारची-मारवाड़ जंक्शन विधानसभा क्षेत्र से दोबारा कांग्रेस का टिकट दिया तो यहां पर अपने शिष्य माधव सिंह दीवान व लक्ष्मण सिंह रावत के मार्फत मेरी खिलाफत करवाकर खारची से भी मुझे चुनाव हरवाया। वह तो मैं था जो आज तक चुप हो करके बैठा हूं, मेरी जगह कोई और राजनेता होता तो अब तक राजस्थान के गुर्जरों में घूम घूम कर के पायलट खानदान की असलियत उजागर कर दी होती।)*

*हे मेरे गुर्जर समाज के वीर वीरांगनाओं मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हमारे महानायक मसीहा कर्नल बैसला जी के स्वर्गवास के बाद विजय बैसला के बढ़ते हुए कद को देख कर के सचिन पायलट को अपनी कुर्सी डगमगाती दिख रही थी, उन्हें लग गया कि शायद राजस्थान की जनता उन्हें वापस उत्तर प्रदेश का रास्ता नहीं दिखा दे, वैसे भी उनके कर्म ऐसे हैं कि जिस थाली में खाया उसी में छेद किया उन्होंने नेहरू गांधी खानदान को चैलेंज करते हुए राजस्थान से विधायक तोड़कर राजस्थान की काँग्रेस सरकार गिरानी चाही, यदि वे सफल हो जाते तो मुख्यमंत्री बनते परंतु वह असफल हो गए और आज कांग्रेस आलाकमान की नजरों में वह मात्र दो कौड़ी के नेता बनकर रह गए हैं। भारतीय जनता पार्टी भी सचिन पायलट की असलियत समझ गई उनके लाख के गिड़गिड़ाने के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें कोई अहमियत नहीं दी तथा बीजेपी में शामिल नहीं किया इसलिए सचिन पायलट नहीं चाहते कि राजस्थान का कोई भी गुर्जर अपना कद राजनीति में आगे बढ़ाएं तो फिर विजय बैंसला को वे कैसे बर्दाश्त कर सकते थे? आज राजस्थान का गुर्जर इस बात को जानता है कि जो सचिन पायलट कभी गुर्जरों का नहीं हुआ अरे वे गुर्जरी से शादी भी नहीं कर सके किसी हिंदू महिला से शादी नहीं कर सके उन्होंने जम्मू-कश्मीर के हिंदुस्तान को आंख दिखाने वाले परिवार फारूक अब्दुल्ला की बेटी से शादी की एक मुस्लिम महिला से शादी की वह भी गुर्जर समाज ने बर्दाश्त किया और सचिन पायलट को अपनी सिर आंखों पर बिठा के रखा लेकिन आज असलियत उजागर हो गई है। पुष्कर... जिस पुष्कर में हमारे गुर्जर समाज के दिवंगतों की आत्मा की बसती है वहां उनकी अस्थियों का विसर्जन होता है वे आत्माएं जो पुष्कर में बसती है सचिन पायलट को कभी माफ नहीं करेगी क्योंकि राजस्थान के गुर्जरों व एमबीसी के मसीहा के अस्थि विसर्जन में उन्होंने जिस तरह से विघ्न पैदा किया और उनके परिवार को बदनाम करने के लिए जो कुटिल चाल चली वह चाल सचिन पायलट का राजनीतिक कैरियर तबाह करके रख देगी। सचिन पायलट साबित कर सकते हैं क्या कि उन्होंने राजनीति में किसका कद आगे बढ़ाया है आज तक सिवाय खुद के फायदे के उन्होंने राजस्थान के गुर्जरों को दिया ही क्या है? पुष्कर के अंदर किसी एक राजनीतिक पार्टी का जमावड़ा नहीं था मात्र एमबीसी समाज और गुर्जरों का जमावड़ा था और वहां पर प्रत्येक राजनीतिक पार्टी के नेता गुर्जरों और एमबीसी समाज को अपना संदेश देना चाहते थे। यहां तक कि राजस्थान की सरकार भी शायद गुर्जरों को एमबीसी के हित की कोई घोषणा कर सकती थी, कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला जी के नाम से विश्वविद्यालय बन सकता था। बैसला जी के सपनों को साकार करने के लिए और भी घोषणा हो सकती थी लेकिन जिस तरह का माहौल सचिन पायलट ने तैयार करवा दिया समस्त राजस्थान के गुर्जरों के सपनों पर पानी फिर गया। हिंदुस्तान भर से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, दिल्ली से जो विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग पुष्कर में गुर्जरों व एमबीसी के जन सैलाब में अपना संदेश देने के लिए आए थे स्वयं संदेश लेकर के गए हैं कि राजस्थान के गुर्जरों में एकता नहीं है और ये एकता क्यों नहीं है क्योंकि सचिन पायलट ने अपने चमचों ने यह साबित करवा दिया कि सचिन पायलट के सिवाय राजनीति में किसी और को आगे नहीं बढ़ने देंगे। समाज में किसी दूसरे नेता को ताकतवर नहीं बनने देंगे और यही अहंकार अब सचिन पायलट को ले डूबेगा। आने वाला भविष्य आने वाला समय बताएगा कि सचिन पायलट तुमने महान कर्नल बाबा के सपनों का खून किया है जिन कर्नल बाबा की अस्थियों के विसर्जन में विघ्न पैदा किया है वे तुम्हें श्राप देती है कि तुम राजनीति में अब सफल नहीं हो सकते, तुम्हारा राजनीति में अल्प समय बचा है जिस पुष्कर की धरा पर मंच पर कई बड़े गुर्जर संत साधु व सवाई भोज के सेवक उपस्थित थे उनके सामने इस तरह की गुर्जर समाज की तोहीन स्वर्गीय बैसला जी के परिवार की तोहीन अब बर्दाश्त नहीं होगी।*

इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देता हूं और हे मेरे राजस्थान के गुर्जर वीर वीरांगनाओं आपसे निवेदन करता हूं कि मेरे इस आलेख पर मनन कीजिएगा सोचिए गा विचार ये गा ना तो मुझे चुनाव लड़ना है और ना मुझे राज्य स्तरीय राष्ट्रीय स्तर की कोई नेतागिरी करनी है लेकिन मेरे गुर्जर समाज के विकास में कोई बाधा डालेगा चाहे वह कितना ही बड़ा गुर्जर क्यों नहीं हो कितना ही बड़ा नेता क्यों नहीं हो तो मैं खरी खरी कहने से कभी नहीं छोडूंगा और वही बात मैंने आज आपके सामने रखी है आपसे फिर निवेदन करता हूं कि कर्नल बैसला जी के सपनों को सिर्फ विजय बेस लाइ साकार कर सकते हैं और हमें विजय बैंसला के नेतृत्व में एक होकर के आरक्षण की अधूरी लड़ाई को पूरा करना है।

यदि मेरी बात समाज को उचित प्रतीत नहीं लगी हो तो मैं आपके सामने हाजिर हूं आप मेरा सिर कलम कर दीजिए लेकिन कम से कम कर्नल बाबा बैसला जी के अरमानों का उनके सपनों का एक बाहरी गुर्जर नेता के हाथों कत्ल मत होने दीजिए।

जय गुर्जर...

जय देवनारायण...

जय बगड़ावत.......

🙏🙏🙏

आपका एक तुच्छ सेवक

डॉ.भैरों सिंह गुर्जर

पूर्व विधायक व फिल्मकार

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