15 मई को आचार्य हस्तीमल महाराज की 33 वीं पुण्यतिथि

 15 मई को आचार्य हस्तीमल महाराज की 33 वीं पुण्यतिथि,  

महोत्सव के रूप में मनाने का ले संकल्प - ज्योतिषी दिलीप नाहटा 



ब्यावर । आचार्य 1008 श्री हस्ती मल जी महाराज साहब जैन इतिहास में जाने माने संत हुए हैं । गौरतलब है कि जैन आचार्य 1008 श्री हस्ती मल जी महाराज साहब का जन्म राजस्थान में जोधपुर जिले में स्थित पीपाड़ शहर में हुआ था । इन्होने मात्र 10 वर्ष की बाल्यकाल अवस्था में ही अजमेर में 24 वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के बताए गए अहिंसा , अचौर्य , अपरिग्रह , ब्रह्मचर्य एवं जियो और जीने दो के सिद्धांतों को अपनाकर संयम साधना के पथ को अंगीकार कर लिया था यानी उस समय के आचार्य 1008 श्री शोभा चंद  महाराज  के समक्ष 10 वर्ष की आयु में ही जैन भागवती दीक्षा को अंगीकार कर जैन मुनि बन गए थे और केवल मात्र 20 वर्ष की युवा अवस्था में ही जोधपुर में आचार्य पद पर सुशोभित कर दिए गए थे । कहा जाता है कि जैन इतिहास में आचार्य हस्ती मल  महाराज  बहुत ही गुणवान , ऊर्जावान , पहुंचवान , लब्धिधारी , ज्योतिष विद्या के प्रखंड विद्वान , अखंड बाल ब्रह्मचारी एवं वचन सिद्ध चमत्कारिक महापुरुष हुए थे , कहते हैं कि भगवान महावीर स्वामी के निर्माण के 2600 वर्षों के भीतर में भारत भूमि में ऐसे कुछ गिने - चुने ही जैन आचार्य भगवत एवं महापुरुष हुए हैं  जिन्होंने 72 वर्षों तक भगवान महावीर के संयम के सिद्धांतों का पालन किया हो एवं जो 62 वर्षों तक जैन आचार्य के पद पर भी सुशोभित रहे हो , इसके अलावा सैकड़ों लोगों से ऐसा भी सुना गया है कि जिस भी व्यक्ति ने उस समय आचार्य हस्ती मल  महाराज  से दिल से जैन मांगलिक सुना , उस मांगलिक के चमत्कार से उनके संकट , उनकी तकलीफे एवं उनकी लाइलाज बीमारियां जैसे कैंसर , अस्थमा एवं टीबी कुछ ही दिनों में गायब हो जाया करती थी , ऐसा माना जाता है कि उन्होंने शरीर एवं आत्मा की भीतरी अवस्था को समझ लिया था यानी आत्मा के भेद ज्ञान के रहस्य को भी समझ लिया था , उन्होंने 72 वर्षों तक 24 वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के बताए गए संयम , अहिंसा अचौर्य , अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य एवं जियो और जीने दो के सिद्धांतों का पालन किया था और अपनी आयु की अंतिम अवस्था का पूर्वाभास होने के बाद निमाज गांव में उनकी उस समय चल रही 82 वें वर्ष की आयु में जैन आगमों में प्रतिपादित स्वेच्छीक संलेखना यानी स्वेच्छीक संथारे को अंगीकार करके लगभग 13 दिनों के बाद पंडित मरण से वैशाख शुक्ला अष्टमी के दिन 21 अप्रैल 1991 को शाम 08 बजकर 15 मिनिट पर निमाज गांव में इस नश्वर देह को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए इस भू लोक से विलीन हो गए थे , लेकिन आपके जाने के 33 वर्षों के बाद भी वें न केवल जैन समाज तक अपितु भारत वर्ष के हर धर्म जाति के जनमानस के ह्रदय के अंतःकरण में उनका नाम आज भी गुंजायमान हो रहा है , राजस्थान में अजमेर जिले में स्थित ब्यावर शहर के एस्ट्रोलॉजर एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ दिलीप नाहटा का मानना है कि उनकी 33 वीं पुण्यतिथि पर उनके चरणों में सच्चे रूप से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आज हम अपनी आत्मा में ये विचार करें की हे गुरुवर , आपकी कृपा मेरी आत्मा पर ऐसी बरसाना की इस जीवन के बाद 84 लाख जीवा योनियों से मैं मुक्त हो जाऊं गुरुवर और मैं इस भव भवान्तर के चक्रव्यूह से निकलकर एक दिन मैं भी मोक्षगामी बन जाऊं गुरुवर यानी सिद्ध , बुद्ध और मुक्त होकर परम सिद्ध गति को प्राप्त हो जाऊं गुरुवर यानी हे गुरुवर मैं भी अजर अमर पद को प्राप्त करके सिद्ध शिला पर हमेशा हमेशा के लिए स्थिर हो जाऊं गुरुवर यानी मैं भी मुक्ति का राही हूं गुरुवर और मुझे भी मुक्त होने की राह दिखाना गुरुवर , मैं आपके चरणों में वंदन एवं नमन करते हुए आपसे विनती एवं प्रार्थना करता हूं गुरुवर , ऐसी अप्रत्यक्ष रूप से कृपा दृष्टि मेरी आत्मा पर बरसाना गुरुवर , इसी शुभ भावना के साथ हम सच्चे रूप से उनकी 33 वीं  पुण्यतिथि बना पाएंगे , अंतिम कड़ी में राजस्थान में अजमेर जिले में स्थित ब्यावर शहर के एस्ट्रोलॉजर एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ दिलीप नाहटा ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह भी बताया की अभी तक वें हजारों ज्योतिषीय किताबों का अध्ययन कर चुके हूं मगर फिर भी ज्योतिषय ज्ञान को गुरु के आशीर्वाद के बिना अधूरा ही मानते है , नाहटा का यह भी मानना है कि गुरु के सामने हर व्यक्ति तुच्छ एवं बोना ही होता है एवं केवल गुरु भक्ति के माध्यम से एवं गुरु के आशीर्वाद से ही जीवन के हर कार्य असंभव से संभव हो जाते हैं , नाहटा का मानना है की कहीं ना कहीं इन्हीं गुरुवर के आशीर्वाद की अप्रत्यक्ष रूप से कृपा दृष्टि उन्हें मिली होगी , इस कारण वें साल 2013 में विश्व की पहली हस्तरेखा मशीन बना पाएं है , जिसका नाम "गुरु हस्ती हस्तरेखा लैब , पार्ट नंबर -- वन" रखा गया है एवं साल 2023 में भी विश्व की पहली भविष्यवाणी मशीन भी बना पाएं हैं , जिसका नाम "गुरु हस्ती मैग्नेटिक भविष्यवाणी लैब , पार्ट नंबर -- वन" रखा गया है , नाहटा ने पिछले 12 वर्षों के दौरान मिली इन सभी उपलब्धियों को एवं अभी तक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीयस्तर की 400 से अधिक सत्य साबित हो चुकी भविष्यवाणियों को भी अपने इष्ट गुरु जैन आचार्य 1008 श्री हस्ती मल जी महाराज साहब के चरण कमलों में एवं उनके निमाज गांव स्थित समाधि स्थल पर समर्पित की है , इसके अलावा नाहटा ने पिछले 12 वर्षों के दौरान देशभर के लगभग 10 हजार लोगों को न केवल मांसाहार एवं शराब के सेवन से छुटकारा दिलवाया है , अपितु हमेशा हमेशा के लिए उन्हें पूर्ण रूपेण अहिंसक भी बनाया है , नाहटा का कहना है कि कोई माने या ना माने ये सब ईस्ट गुरु हस्ती मल जी महाराज साहब की कृपा दृष्टि से ही संभव हो पा रहा है एवं नाहटा ने ये भी कहां है कि गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा भक्ति एवं प्रगाढ़ आस्था एवं समर्पण उनके श्री चरणों में जीवन के अंतिम समय तक एवं अंतिम क्षण तक एवं अंतिम श्वास तक रहेगी , नाहटा ने अपने उद्बोधन में कहा है की 15 मई  को आ रही उनकी 33 वीं पुण्यतिथि पर उनके बताए हुए मार्ग का जैसे -- "गुरु हस्ती के दो फरमान -- सामायिक स्वाध्याय महान" के सिद्धांतों का अनुसरण करके इसे अपने जीवन में अधिक से अधिक उतारने का प्रयास करेंगे एवं लोग अहिंसक बनने की भावना रखेंगे एवं अहिंसक बनाने के भी भावना रखेंगे , तभी हम उनकी 33 वीं पुण्यतिथि को यादगार बनाकर एक महोत्सव के रूप में बना पाएंगे ।

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