महावीर जयंती पर एस्ट्रोलॉजर दिलीप नाहटा का विशेष लेख
महावीर जयंती पर एस्ट्रोलॉजर दिलीप नाहटा का विशेष लेख
भगवान महावीर के अनेकांत में एकता एवं अपरिग्रह के सिद्धांतों को अपनाने के बारें में प्रधानमंत्री मोदी ने दिया देश एवं दुनिया को महत्वपूर्ण संदेश
आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले यानी ईशा से 599 वर्ष पूर्व में भारत देश के बिहार राज्य की प्रसिद्ध नगरी वैशाली के निकट बसे कुंडलपुर में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जैन धर्म के अंतिम 24 वें तीर्थंकर वीर प्रभु महावीर का जन्म हुआ था , वीर प्रभु महावीर ने 30 वर्ष की आयु में यानी ईशा से 569 वर्ष पूर्व में गृहस्थ जीवन का त्याग करके मिगसर वदी दशमी के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की थी , अब वें पांच महावत को अंगीकार करके श्रमण यानी साधु बन गए थे ।।
वीर प्रभु महावीर ने 30 वें वर्ष की आयु में दीक्षा लेते ही कठोर तपस्या शुरू की थी , जो की उनके 42 वें वर्ष तक निरन्तर चलती रही , वीर प्रभु महावीर ने 12 वर्ष 06 माह 25 दिन की कुल तपस्या की थी अर्थात तपस्या के 4515 दिन में से 349 दिन ही भोजन किया था और 4166 दिन उपवास किये थे , उपरोक्त 12 वर्ष 06 माह 25 दिन की कठोर तपस्या एवं साधना के बाद वीर प्रभु महावीर को ईशा से 557 वर्ष पूर्व में बिहार राज्य में जांभीय गांव के निकट ऋजुबालिका नदी के किनारे श्यामक गाथापति के चावलों के खेत में शालवृक्ष के नीचे गोदोहन आसन में दो दिन की तपस्या में वैशाख शुक्ला दशमी के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी , अब वें हथेली की भांति पूरे ब्रह्मांड के जीवों को देखने लगे थे , वें नर से नारायण बन गए , अब वें केवली बन गए थे अर्थात सर्वज्ञ सर्वदर्शी हो गए थे , वीर प्रभु महावीर को केवल ज्ञान प्राप्त होते ही इंद्र का आसान भी कंपित हुआ , उसी समय इंद्र ने देव -- देवियों के साथ आकर समवसरण की रचना की थी ।।
इसके अलावा जब वीर प्रभु महावीर का अंतिम 42 वां चातुर्मास बिहार राज्य के नालंदा जिले के पावापुरी में चल रहा था , उस समय उनकी आयु 72 वर्ष की चल रही थी , उस समय नालंदा के राजा हस्तीपाल की पौषधशाला में काशी के 09 मल्लवी गणराज्य के राजा एवं कौशल के नो लिच्छवी गणराज्य के राजा यानी कुल 18 गणराज्य के राजा पौषध उपवास करके एवं भारी भीड़ वीर प्रभु महावीर की देशना यानि प्रवचन सुन रही थी ।।
ईशा से 527 वर्ष पूर्व में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात ठीक 12:00 बजे स्वाति नक्षत्र में बेले की तपस्या के साथ वह दिव्य ज्योति इस देह को छोड़ करके हमेशा हमेशा के लिए मनुष्य लोक से विलीन हो गई थी , जिनका प्रकाश असंख्य लोगों के अंतकरण को प्रकाशित कर रहा था ।।
निर्वाण महोत्सव मनाने के लिए हर देवी देवताओं का पृथ्वी पर भारी आगमन हुआ , देवी देवताओं के विमानों की ज्योति से कार्तिक अमावस्या की रात पृथ्वी जगमगा उठी थी , संपूर्ण प्राणी जगत में क्षणभर के लिए सुख की लहर दौड़ गई थी एवं 09 मल्लवी गणराज्य के राजा एवं कौशल के नो लिच्छवी गणराज्य के राजाओं ने यानी कुल 18 गणराज्य के राजाओं ने एवं जनता ने दीप जलाए , जैन परंपरा के अनुसार उसी दिन की स्मृति में भी दीपावली का पर्व मनाया जाता है ।।
प्रातः होते ही पावापुरी के जल मंदिर में वीर प्रभु महावीर का दाह संस्कार हुआ था , कहते हैं भगवान महावीर का पूरा शरीर कपूर की तरह उड़ गया था , केवल बाल और नाखून शेष बचे थे , उनके दाह संस्कार में काफी भीड़ थी , दाह की राख उठाते उठाते लोग मिट्टी उठाने लगे थे और वहां एक गड्ढा बन गया था , जिसे बाद में तालाब का रूप ले लिया था और इसी तालाब के बीच में ही कमल सरोवर का जल मंदिर बनाया गया है , यह जल मंदिर हमेशा कमल के फूलों से भरी झील से गिरा रहता है और आज भी करीब ढाई हजार वर्षों के बाद भी दीपावली के दिन अमावस्या की रात्रि को ठीक 12 बजे चंद्रमा की सीधी किरनें रोशनी के रूप में महावीर के इन्हीं पद चिन्हों पर डायरेक्ट सीधी पड़ती है , जिसे देखने के लिए पावापुरी तीर्थ के इस जल मंदिर में हजारों लोग दर्शन करने के लिए एकत्रित होते हैं ।।
वीर प्रभु महावीर का निर्माण हुआ उसी दिन से पंचम आरा लगने में 03 वर्ष 08 माह 15 दिन शेष थे , वह सूर्य पुंज क्षितिज के उस पार चला गया था , जो अपने रश्मि पुंज से जनमानस को आलोकित कर रहे थे , भगवान महावीर संसार की एक दिव्य विभूति थे , उनके चले जाने से संसार शोभाविहीन हो गया ।
आज आवश्यकता इस बात की है कि प्रभु महावीर के उपदेशों को घर-घर में पहुंचाया जाए यानी प्रभु महावीर के पाँच प्रमुख संदेश निम्न थे , अहिंसा , सत्य , अपरिग्रह , अचौर्य ( अस्तेय ) , ब्रह्मचर्य , उपरोक्त उपदेशों के बाद वह ज्योति पुंज भले ही इस संसार से विलुप्त हो गई हो , जिसका प्रकाश मानव के मस्तिष्क एवं हृदय के अंतकरण को प्रभावित कर रहा था , वह महामानव प्रत्येक रूप से हमें संदेश देकर इस पृथ्वी से हमेशा हमेशा के लिए विलीन हो गया था , जिसके सिद्धांत एवं उपदेश हमारे विचारों को बदलने में सक्षम थे ।।
बुधवार 9 मार्च को विज्ञान भवन में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी दुनिया को हर तरह के युद्ध को रोकने एवं हर तरह की तासदी से बचाने के लिए यानी हिंसा से बचने के लिए अहिंसा के मार्ग पर चलने पर महत्वपूर्ण जोर दिया है एवं अनेकांत में एकता के सिद्धांत पर जोर दिया एवं अपरिग्रह के सिद्धांत पर जोर दिया है , भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया ये अब तक का सबसे बड़ा संदेश माना जा है , जिसे भारतीय जनमानस द्वारा एवं संपूर्ण विश्व द्वारा पूर्ण रूपेण अपनाया जाना चाहिए ।।
राजस्थान में ब्यावर जिले के एस्ट्रोलॉजर एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ दिलीप नाहटा ने प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा दिए गए इस महत्वपूर्ण भाषण को दुनिया के लिए बहुत बड़ा संदेश बताया है , जिसे भारत के हर व्यक्ति को अपनाना चाहिए , वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में जोर देकर कहां है कि महावीर द्वारा दिए गए अपरिग्रह के सिद्धांत एवं अनेकांत में एकता के सिद्धांत को अपनाकर एवं नवकार महामंत्र के संदेश को अपनाकर भारत विश्व में शांति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है , ज्ञात रहे की ब्यावर के एस्ट्रोलॉजर एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ दिलीप नाहटा पिछले 12 वर्षों से विश्व की पहली हस्तरेखा मशीन से इंसान के भविष्य के बारे में सटीक भविष्यवाणीयां करके ज्योतिष के माध्यम से हजारों लोगों को अहिंसक बना चुके हैं एवं देश में एकता एवं अखंडता एवं शांति बनाने के लिए महावीर के सिद्धांतों पर काफी जोर देते आ रहे हैं ।।
नाहटा का यह भी कहना है कि आज आवश्यकता इस बात की एक ही हम सभी भगवान महावीर के अहिंसावादी सिद्धांत को अपना कर एवं अनेकांत में एकता के सिद्धांत को अपनाकर संपूर्ण राष्ट्र को स्वर्ग बनाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं , उनके मार्ग का पूरी तरह से ना सही किंतु आंशिक रूप से भी अनुसरण करेंगे तो ही हम एक अच्छा संसार एवं एक अच्छा भारत बना सकेंगे , आज जरूरत है संचार माध्यमों की जो भगवान महावीर के उपदेशों को घर-घर तक पहुंचाएं , तभी हम यह कह सकेंगे कि हम महावीर एवं बुद्ध एवं राम एवं कृष्ण की संतान है और वे हमारे आदर्श थे ।
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